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कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन की मांग को लेकर रामपाल जाट ने किया विधानसभा का घेराव...

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Published : Mar 28, 2022, 5:39 PM IST

Rampal Jat demands amendment in mandi act
कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन की मांग

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने सोमवार को कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन की मांग (Rampal Jat demands amendment in mandi act) को लेकर विधानसभा का घेराव किया. जाट ने कहा कि फिलहाल कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 बाध्यकारी नहीं है और किसान महापंचायत चाहती है कि इस कानून को बाध्यकारी किया जाए ताकि किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले.

जयपुर. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट सोमवार को कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को लेकर विधानसभा का घेराव करने पहुंचे. रामपाल जाट कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन की मांग कर रहे हैं, ताकि किसानों को उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले. जाट ने कहा कि उपज की नीलामी न्यूनतम समर्थन मूल्य से शुरू हो और किसानों की उपज उससे कम दाम में न बिके.

जाट ने कहा कि फिलहाल कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 बाध्यकारी नहीं है और किसान महापंचायत चाहती है कि इस कानून को बाध्यकारी किया जाए ताकि किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले. जाट ने बताया कि कृषि उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है और अधिनियम के अनुसार कृषि उपज का क्रय-विक्रय न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होने को रोका जा सकता है. यदि यह अधिनियम बाध्यकारी हो जाएगा, तो किसानों की कृषि उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर नहीं (Rampal Jat demands to make Mandi act mandatory) बिकेगी. यह अधिनियम राज्य सरकार का बना हुआ है, इसमें संशोधन भी राज्य सरकार ही कर सकती है.

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उन्होंने कहा कि आज धरने में अलग-अलग जिलों से किसान शामिल हुए हैं. खेतों में लावणी का काम चल रहा है. सरसों और गेहूं की फसल काटी जा रही है. ऐसी परिस्थिति में किसानों को विधानसभा का घेराव करने के लिए जयपुर आना पड़ा है. सरकार उपज मंडी अधिनियम में छोटा सा संशोधन कर किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नीलामी प्रक्रिया शुरू करने का रास्ता खोल सकती है. जाट ने बताया कि नहरी क्षेत्र होने के कारण गेंहू उत्पादन में गंगानगर, हनुमानगढ़, कोटा, बारां और बूंदी अग्रणी हैं. लेकिन यहां भी खरीद में असंतुलन है. गंगानगर क्षेत्र की अपेक्षा कोटा में खरीद की स्थिति कमजोर है. इसका प्रभाव उत्पादक पर आता है.

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जाट ने कहा कि भारत सरकार की अनुशंसा पर वर्ष 2022-23 के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (मोटा अनाज वर्ष) घोषित किया गया. किन्तु तब भी भारत सरकार ने अधिनियम को समाप्त करने वाली नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया. जब तक बाजरा की खरीद नीति धान एवं गेंहू जैसी नहीं हो जाती, तब तक बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा बेमानी रहेगी. इन्ही नीतियों का परिणाम है कि बाजरा का अखिल भारतीय उत्पादन खर्च 1579 रुपये प्रति क्विंटल होते हुए भी किसानों को एक क्विंटल के दाम 1200 से 1400 रुपये ही प्राप्त होते हैं, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 2250 रुपये प्रति क्विंटल से 1050 रुपये प्रति क्विंटल तक कम हैं.

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