इस बार 17 दिन का होगा श्राद्ध पक्ष, पूर्णिमा का श्राद्ध आज...जानिए क्या है पितृ पक्ष का महत्व

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Published : Sep 20, 2021, 8:54 AM IST

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इस साल पितृ पक्ष (श्राद्ध) 20 सितंबर से शुरू होकर छह अक्टूबर तक रहेगा. इस बार श्राद्ध 17 दिन के होंगे. मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.

जयपुर. इस साल पितृ पक्ष (श्राद्ध) 20 सितंबर से शुरू होकर छह अक्टूबर तक रहेगा. इस बार श्राद्ध 17 दिन के होंगे. मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण किया जाता है और पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है. अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है. इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है.

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आचार्य पंडित श्रीराम गुर्जर बताते हैं कि 20 सितंबर से शुरू होने वाला पितृ पक्ष इस बार 17 दिन का होगा. इस बार द्वितीया तिथि वृद्धि के कारण 17 दिन श्राद्ध होंगे. इस दौरान शुभ व मांगलिक कार्यों पर रोक रहेगी. शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष की किसी तिथि में वृद्धि होना शुभ नहीं है. पितृ पक्ष में प्रतिदिन स्नानोपरांत दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों के नाम से जल का अर्घ्य देना चाहिए.

पौराणिक और शास्त्रोक्त वर्णन के अनुसार, पितृलोक में जल की कमी है. इसलिए पितृ तर्पण में जल अर्पित करने का बड़ा महत्व है. जो भी व्यक्ति पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक पितरों के निमित्त श्राद्ध करता है. उसकी श्रद्धा और आस्था भाव से तृप्त होकर पितृ उसे शुभ आशीर्वाद देकर अपने लोक को चले जाते हैं. भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (20 सितंबर) से श्राद्ध की शुरुआत हो रही है और आश्विन महीने की अमावस्या को (6 अक्टूबर) को पितृ पक्ष समाप्त होगा.

जानिए क्या होता है श्राद्ध

श्राद्ध के दौरान जो हम दान पूर्वजों के नाम से देते हैं, वही श्राद्ध कहलाता है. शास्त्रों के अनुसार जिनका देहांत हो चुका है वे सभी इन दिनों में अपने सूक्ष्म रूप के साथ धरती पर आते हैं और अपने परिजनों का तर्पण स्वीकार करते हैं. श्राद्ध के बारे में हरवंश पुराण में बताया गया है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध करने वाला व्यक्ति दोनों लोकों में सुख प्राप्त करता है.

पितृ पक्ष के बारे में पौराणिक कथा

महाभारत के युद्ध में कर्ण का निधन हो गया था और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें रोजाना खाने की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए. इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा. तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों के लिए दान नहीं दिया. तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानते हैं. इस पर देवराज इंद्र ने उन्हें 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वह अपने पूर्वजों के निमित्त भोजन दान कर सके. तब से इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है.

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