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मैं जयपुर का कोतवाली थाना बोल रहा हूं, मैंने गुलामी से आजादी, उर्दू से हिंदी और कलम से कंप्यूटर तक का सफर तय किया है

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Published : Aug 15, 2022, 9:38 AM IST

Kotwali police station record room
मैं जयपुर का कोतवाली थाना

भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के खास मौके पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. इस बीच आपको जयपुर के छोटी चौपड़ स्थित कोतवाली थाने की कहानी बताते हैं, जो वर्ष 1926 में अस्तित्व में आया. जिसने अंग्रेजों की गुलामी से लेकर भारत की आजादी और आजादी के बाद प्रगतिशील होते राष्ट्र की हर एक गतिविधि को बारीकी से देखा है.

जयपुर. पूरे देश में आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) के तहत स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2022) को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. पूरे भारतवर्ष में लोग, स्मारक और इतिहास से जुड़ी हुई ऐसी चीजें जिन्होंने गुलामी से लेकर आजादी तक के सफर के बदलाव को महसूस किया है, उनका जिक्र किया जा रहा है. ऐसे में यदि बात गुलाबी नगर की करें तो यहां परकोटे के हृदय में एक ऐसा पुलिस थाना मौजूद है जो राजस्थान पुलिस के अस्तित्व में आने से कई साल पहले से कार्यरत है और जो अपने आप में इतिहास के कई पहलुओं को संजोए हुए है.

हम यहां बात कर रहे हैं राजधानी के छोटी चौपड़ पर स्थित कोतवाली थाने (Kotwali police station of Jaipur) की, जो वर्ष 1926 में अस्तित्व में आया. जिसने अंग्रेजों की गुलामी से लेकर भारत की आजादी और आजादी के बाद प्रगतिशील होते राष्ट्र की हर एक गतिविधि को बारीकी से देखा और उसे रिकॉर्ड में संजोने का काम किया. यह गुलाबी नगर का एकमात्र ऐसा थाना है जिसमें 1926 से लेकर वर्तमान तक के तमाम रिकॉर्ड को सुरक्षित रखा गया है और साथ ही गुलाबी नगर में कितने तरीके के त्यौहार किस तरह से मनाए जाते थे, इसकी जानकरी भी रिकॉर्ड में मौजूद है.

मैं जयपुर का कोतवाली थाना

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उर्दू में लिखा है इतिहास- डीसीपी नॉर्थ परिस देशमुख ने बताया कि कोतवाली थाने में 1926 से लेकर अब तक का सारा रिकॉर्ड पूरे सार संभाल के साथ रखा गया है. 1926 का जो रिकॉर्ड थाने में मौजूद है वह पूरा उर्दू भाषा में लिखा हुआ है और उस रिकॉर्ड के हर एक पन्ने को संरक्षित करते हुए लेमिनेशन करवा कर फाइल में संरक्षित किया गया है. उर्दू में लिखे रिकॉर्ड में न केवल शिकायतें दर्ज हैं बल्कि आमजन से जुड़ी हुई चीजें, शहर के त्यौहार और इतिहास सभी चीजों का समायोजन देखने को मिलता है.

शुरुआती दौर में अनाज चोरी होने पर, पालतू जानवर चोरी होने पर, कलम चोरी होने पर शिकायतें उर्दू में दर्ज की जाती थी. वह तमाम शिकायतें संरक्षित करके रखी गई हैं जो आज स्वर्णिम इतिहास का एक अभिन्न अंग हैं. जहां पहले एफआईआर कलम से लिखी जाती थी वहीं अब कंप्यूटर के माध्यम से सीसीटीएनएस पर दर्ज की जाती है. अपराध के तौर तरीकों में भी काफी बदलाव हुआ है और प्रॉपर्टी ऑफेंसेस और वाहन चोरी आदि के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. 1926 में कलम से जो एफआईआर दर्ज की गई वह काफी सफाई से और सिस्टमैटिक तरीके से की गई जो न केवल जयपुर वासियों के लिए बल्कि राजस्थान पुलिस के लिए भी एक गर्व की बात है.

Kotwali police station record room
1926 से लेकर अब तक का सारा रिकॉर्ड

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वर्ष 2012 से 2013 के बीच किया गया रिकॉर्ड संधारित- कोतवाली थाने का रिकॉर्ड रूम (Kotwali police station record room) भी पहले अन्य थानों के रिकॉर्ड रूम की तरह की धूल से भरा हुआ और लाल कपड़ों में लिपटी हुई फाइल और दस्तावेजों के बंडल से अटा पड़ा था. वर्ष 2012 में पुलिस के आला अधिकारियों ने इसकी सुध ली और कोतवाली थाने का ऐतिहासिक महत्व देखते हुए यहां के रिकॉर्ड को संधारित करने का काम शुरू किया गया. 2012 से रिकॉर्ड संधारित करने का काम शुरू किया गया जो वर्ष 2013 के आखिरी में जाकर पूरा हुआ. कोतवाली थाने का रिकॉर्ड रूम अब हर वक्त रोशनी से जगमगाता रहता है.

रिकॉर्ड रूम में आज 500 से अधिक हरे और लाल रंग के रजिस्टर रखे हुए हैं. प्रत्येक रिकॉर्ड बुक पर एक सफेद स्टिकर लगाया गया है, जिसमें वर्ष, फाइलों की संख्या और इसमें शामिल दस्तावेजों का जिक्र किया गया है. वर्ष 1926 से 2009 तक के रजिस्टरों को अलग रखा गया है, क्योंकि उसमें हस्तलिखित रिकॉर्ड और उर्दू अंग्रेजी व हिंदी में लिखे हुए दस्तावेज शामिल हैं.

Kotwali police station record room
उर्दू में लिखा है इतिहास

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रिकॉर्ड रूम की सार संभाल करने वाले कॉन्स्टेबल विजय कुमार ने बताया कि 1926 में परिवादी जिस भी भाषा में अपनी शिकायत देता था उसकी शिकायत को कोतवाली थाने में उर्दू में ही दर्ज किया जाता था. वर्ष 1940 के बाद थाने में अंग्रेजी में भी एफआईआर दर्ज की जाने लगी और फिर जैसे-जैसे समय बीता उसके बाद हिंदी में एफआईआर दर्ज होने लगी. रिकॉर्ड रूम की सार संभाल और रिकॉर्ड के संधारण का काम रिकॉर्ड रूम एचएम व एलसी का रहता है. जिसे भी यह जिम्मेदारी दी जाती है वह बखूबी इस जिम्मेदारी को निभाता है. 1926 में 50 पैसे या 1 रुपए चोरी होने की एफआईआर दर्ज की जाती थी जो उस समय में एक बड़ी रकम हुआ करती थी. वर्तमान में भी चोरी की एफआईआर दर्ज की जाती है लेकिन अब बस रकम ज्यादा हुआ करती है.

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