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अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद: विशेषज्ञ से जानें आखिर क्या है पूरा मामला, और नया क्या है जो आपने अबतक नहीं जाना

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Published : Oct 19, 2019, 4:17 PM IST

अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में लंबी-चौड़ी बहस के बाद आप यह समझना चाह रहे है कि इसके क्या कानूनी पक्ष है तो इसके लिए ईटीवी भारत की टीम ने विशेषज्ञ रमन नंदा से खास बातचीत की. जहां नंदा ने आसान शब्दों में कुछ सवालों के जवाब देकर मामले को समझाना चाहा.

Ayodhya Ram Janmabhoomi dispute, अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद

जयपुर. अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद अब निर्णायक मोड़ पर है और इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट कभी भी फैसला सुना सकता है. अयोध्या विवाद में एक लंबी कानूनी लड़ाई चली है. इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट भी इसी मसले को लेकर अपना फैसला सुना चुका है. ऐसे में इस पूरे विवाद को लेकर क्या कानूनी पक्ष रहे. इसके बारे में विशेषज्ञ क्या कहते है, यह जानना बहुत जरूरी है.

ईटीवी भारत ने इस मसले के तमाम कानूनी पक्ष जानने के लिए विश्लेषक रमन नंदा से खास बातचीत की. नंदा ने ईटीवी की ओर से प्रश्नों पर खुलकर जवाब देते हुए तमाम कानूनी पक्षों को बड़े आासानी से समझाया. चलिए इसी क्रम में हम आपकों बताते है कि क्या प्रश्न थे और उनका क्या जवाब रहा.

सवाल: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इलाहबाद हाईकोर्ट का क्या असर होगा?
जवाब: इलाहबाद कोर्ट के फैसले के बाद ही सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई थी. इलाहबाद हाईकोर्ट ने पाया कि इस टाइटल विवाद में तीन पार्टियां अधिकारी है. जिसमें रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पार्टी है, और इसे देखते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने पार्टिशियन का फैसला सुना दिया था.

इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले का होगा यह असर

जिसमें दो तिहाई भाग हिन्दू पक्षकारों को तो वहीं एक तिहाई मुस्लिम पक्षकारों के हक में दिया. लेकिन अपील के बाद अब सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना होगा कि कौनसी पार्टी को मालिक घोषित किया जाए. साथ ही सुप्रीम कोर्ट को तय करना होगा कि इलाहबाद हाईकोर्ट का फैसला यदि सही था तो किस हद तक सही था और गलत था तो किस हद तक गलत था.

सवाल: कौनसी दलीलें अब तक दी गई है, जिसे देखकर लगता है कि यह फैसला जल्द आ जाएगा और कौनसे साक्ष्य महत्वपूर्ण रहे?

जवाब: आज ऐसे बहुत से कानून है जो पहले से अलग है, या अब नए बने है. चूंकि तथ्य ऐतिहासिक है तो उन पर क्या समसामायिक कानून के हिसाब से फैसले होंगे, यह सब सुप्रीम कोर्ट को देखना होगा. क्योंकि मामला मुगलकाल से भी जुड़ा है. विवादित ढांचे को ध्वस्त होने के बाद खुदाई में बहुत सारे तथ्य सामने निकलकर आए, जिनमें यह देखा गया कि वहां कितने लेयर थे. खुदाई में पाया गया कि 7 से 8 फीट चौड़ी दीवार थी. जिस पर वो ढांचा खड़ा था और इसीलिए वहां मस्जिद बनाने से पहले नींव डालने की जरूरत नहीं पड़ी होगी. लेकिन इन सब पर मुस्लिम पक्षकारों ने सवाल खड़ा किया

दलीलें जिनसे अब फैसला निर्णायक होगा

मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि खुदाई के दौरान काम कर रहे मजदूर हिंदू रहे, इसलिए कहा जा सकता है कि वे सबूतों का निर्माण कर दें. जिस पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने गौर किया और कहा कि खुदाई में काम करने वाले मजदूरों में मुस्लिम अनुपात भी होना चाहिए. साथ ही एक फैसला यह भी हुआ कि हिन्दू और मुस्लिम पक्षकार अपना एक मनोनित आर्कियोलॉजिकल इतिहास विशेषज्ञ खुदाई के दौरान मौजूद रख सकते है. साथ ही दिन भर की खुदाई के बाद जो भी मिलेगा, उसको रजिस्टर में लिखा जाएगा और उस पर दोनों के साइन होंगे.

खास बात यह भी है कि इन सब के बीच गैर हिन्दू और गैर-मुस्लिम साक्ष्यों की नई थ्योरी भी सामने आई. जिस पर जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने गौर किया. और पूरे मामले को लेकर अग्रवाल ने कहा कि आस्ट्रिया के एक पादरी आए, जिन्होंने उस इलाके का दौरा किया था. और कहा था कि हिन्दू अनुयायी उस विवादित स्थल की परिक्रमा करते है. जिसको लेकर उन्होंने सिखों के एक ग्रंथ 'सखीसाहिब' का हवाला भी दिया था. जिसमें गुरू नानक अपने एक शिष्य मर्दाना के साथ अयोध्या जाते है और सरयू किनारे राम का दर्शन करते है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वहां राम की कोई मूर्ति थी.

वर्जिन लैंड पर नहीं बना था ढांचा

साथ ही जब खुदाई हुई तो ऐसे स्ट्रक्चर सामने निकलकर आए. जिनमें शिव मंदिर के होने सबूत मिले और हिन्दू पक्षकारों ने इसे सबूत के रूप में चिन्हित करवाया. खास बात यह है कि मुस्लिम पक्षकारों ने पहले तो यह माना था कि वर्जिन लैंड ( निर्माण रहित भूमि) पर ही मस्जिद का निर्माण हुआ था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे बौद्ध और जैन साहित्य से जोड़ना शुरू कर दिया.

सवाल: फैसले पर मध्यस्थता समिति का क्या कोई प्रभाव होगा?

जवाब: मध्यस्थता को लेकर कोर्ट कानूनी विषय में नहीं जाता है, लेकिन यदि दोनों पार्टियों ने मिलकर कोई राय बना ली तो वो अलग बात हो सकती है. लेकिन मध्यस्थता समिति पर कोर्ट ज्यादा ध्यान नहीं देगा और वो फैक्ट्स को अधिक महत्त्व देगा.

मध्यस्थता समिति का नहीं पड़ेगा कोई खास प्रभाव

सवाल: क्या ऐसा कोई फैक्ट जो केस में अब तक अनछुआ रहा, और आप साझा करना चाहते है?

यह जजमेंट तीन जजों के द्वारा 16 हजार पन्नों में दिया गया है. जिसमें 80 बिन्दुओं पर तीन जज को फैसला देना है. तो ऐसे में नए तथ्य तो नहीं निकलेंगे. पर हां कुछ रोचक तथ्य है जो बताएं जा सकते है, जिनमें जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कहा था कि सबूतों की बात की जाए तो वो यह तो हो नहीं सकते की वीडियो या तस्वीरों में बताया जा सके कि राम कहां पैदा हुए. लेकिन कॉमन सेंस के आधार पर इसे समझा जा सकता है. जिसमें उन्होंने बताया कि जगह का नाम रामफोर्ट है, और यह सबकों पता होता है कि फोर्ट में मौजूद ऊंचाई वाली जगह पर कोई मजदूर या कर्मचारी तो रहे नहीं होंगे, तो वहां राजा ही रहे होंगे.

वहीं अंग्रेजों के समय से ही रेवन्यू रिकॉर्ड में मस्जिद का नाम 'मस्जिद जन्म स्थान' लिखा हुआ है. जिससे जाहिर है कि यह बाबर का जन्मस्थान तो हो नहीं सकता है तो किसका होगा. इससे आम प्रचलन का भी पता चल जाता है कि वहां राम जन्म भूमि है.

Note - इस खबर की फाइल को live u से भेजा गया है.

 अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद अब निर्णायक मोड़ पर है और इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट कभी भी फैसला सुना सकता है अयोध्या विवाद में एक लंबी कानूनी लड़ाई चली है इससे पहले अलाहाबाद हाई कोर्ट भी इसी बात को लेकर अपना फैसला सुना चुका है ऐसे में इस पूरे विवाद को लेकर क्या कानूनी पक्ष रहे किस तरह की दलीलें रही और कोर्ट में संपूर्ण विवाद का क्या इतिहास रहा इन सब मसलों पर विश्लेषक रमन नंदा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की, रमन नंदा ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का जो फैसला रहा है वह साफ बताता है कि भले ही मावली में जमीन के तीन हिस्से हुए हैं पर अयोध्या में सरयू के नारे राम मंदिर की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं उन्होंने वोट प्रक्रिया का जिक्र करते हुए जस्टिस सुधीर अग्रवाल के फैसले पर भी बात की साथी पुरातत्व विद और इतिहासकारों की तब दी गई दलीलों को बताया जिसे क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान कोर्ट ने खारिज किया था
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