जयपुर. कोरोना की दूसरी लहर के चलते प्रदेश में संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए राज्य सरकार ने लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन के चलते लोग अपने घरों में ही कैद हैं. कोरोना को लेकर लोगों के मन में एक विचित्र सा भय हैं. लोग कहीं ना कहीं अंदर से डरे हुए हैं और उनमें काफी नकारात्मकता देखने को मिल रही है. इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम ने ACB एडीजी दिनेश एमएन से खास बातचीत की और साथ ही उनसे अनेक महत्वपूर्ण टिप्स जानें.
नकारात्मक बातों से दूर रहें और उम्मीद ना छोड़ें
लॉकडाउन में घरों में बंद युवाओं में असंतोष देखा जा रहा है. कोई अपने कैरियर को लेकर, तो कोई पढ़ाई को लेकर, तो कोई नौकरी और अन्य कारणों को लेकर चिंतित है. वहीं सबसे बड़ी चिंता का कारण कोरोना का संक्रमण है. जिसने लोगों के मन में एक विचित्र सा भय पैदा कर दिया है. इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम ने युवाओं के आदर्श एडीजी दिनेश एमएन से बातचीत की.
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एडीजी दिनेश एमएन ने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि कोरोना संक्रमण का जो दौर चल रहा है, वह काफी घातक है. प्रत्येक व्यक्ति का कोई ना कोई रिश्तेदार या जानकार या फिर परिवार का कोई सदस्य इसकी चपेट में आया है. कोरोना को लेकर काफी नकारात्मक उदाहरण हमारे सामने हैं लेकिन इसके साथ ही सकारात्मक उदाहरण भी हमारे सामने है. अनिश्चितता इस दौर में हमें कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी है और जो सकारात्मक उदाहरण है उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.
परिवार के साथ वक्त बिताएं
कोरोना संक्रमित 100 लोगों में से 99 लोग सही हो रहे हैं केवल 1% ही ऐसे लोग हैं जो काफी तकलीफ पा रहे हैं. ऐसे में हम केवल उन 1% लोगों के बारे में सोच कर खुद के मन में नकारात्मक विचार क्यों लाएं. नकारात्मक विचार लाने से मनुष्य की इम्यूनिटी भी कमजोर होती है तो ऐसे में मनुष्य को सकारात्मक सोच रखनी चाहिए और खुश रहना चाहिए. सकारात्मक सोच रखें और यह विचार करें कि उन्हें अपने परिवार के साथ बिताने के लिए 24 घंटे रोजाना मिल रहे हैं. ऐसे में वह अपने परिवार के सदस्यों को प्यार दें, उनके साथ वक्त बिताएं, इम्यूनिटी बढ़ाने वाला खाना खाए और प्रसन्न रहें.
युवाओं के लिए संदेश
कोरोना संक्रमण की स्थिति सही होने पर इकोनॉमी में बूम आएगा और लोगों को नौकरियां भी मिलेगी. इसके साथ ही ऐसे स्टूडेंट्स जो कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं वह भी सकारात्मक सोच रखते हुए यह सोचकर अपनी तैयारी को लगातार जारी रखें कि उन्हें खुद को तराशने का कुछ वक्त और मिल गया है.
अपने लक्ष्य को पाने का सपना देखते रहें
एसीबी एडीजी दिनेश एमएन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि स्टूडेंट स्कूल नहीं जा पा रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि वह पढ़ना छोड़ दें. ऑनलाइन क्लासेस में भी पढ़ाई के कई दिलचस्प तरीके मौजूद हैं, कई वीडियो हैं, जो ऑडियो वीजुअल दिखाते हैं और उनके जरिए स्टूडेंट्स किसी भी टॉपिक को बड़ी आसानी से समझ सकता है. इसके साथ ही स्टूडेंट्स अपने लक्ष्य को लेकर पूरी तरह से डेडीकेट रहें और अपने जीवन में जो लक्ष्य वो हासिल करना चाहते हैं और वह जो बनना चाहते हैं उसका सपना देखते रहे. इसके साथ ही पेरेंट्स को भी अपने बच्चों को स्ट्रेस फ्री रखने के लिए घर पर ही फिजिकल एक्टिविटी, म्यूजिक और मूवी आदि का प्रयोग करना चाहिए.
कोरोना के दौर में सबसे बड़ी समस्या अनिश्चितता
एडीजी दिनेश एमएन 1985 बैच के राजस्थान कैडर के आईपीएस ऑफिसर हैं, जोकि मूलतः कर्नाटका के रहने वाले हैं. बहुचर्चित सोहराबुद्दीन तुलसीराम एनकाउंटर में उदयपुर एसपी रहते हुए दिनेश एमएन को वर्ष 2007 से लेकर 2014 तक 7 साल जेल में बिताने पड़े. जेल में 7 साल बिताने के बाद भी उन्होंने कभी भी खुद को कमजोर महसूस नहीं होने दिया और साथ ही कभी भी नकारात्मक विचार अपने मन में नहीं लाए. यही कारण है कि जेल से बाइज्जत बरी होने के बाद उन्होंने अलग-अलग जगहों पर महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए कई बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया.
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2014 में एसीबी में आईजी के पद पर रहते हुए उन्होंने खान घूसकांड प्रकरण में सीनियर आईएएस अशोक सिंघवी को गिरफ्तार किया. एसओजी में आईजी के पद पर रहते हुए कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल का एनकाउंटर दिनेश एमएन के सुपर विजन में किया गया. इसके साथ ही एसीबी में एडीजी के पद पर रहते हुए लगातार भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई जारी है. जिसमें अब तक कई आईएएस, आईपीएस, आरएएस और आरपीएस अधिकारी पकड़े जा चुके हैं.
अपने जेल के दिनों से कोरोना के दौर की तुलना की
एडीजी दिनेश एमएम का कहना है कि जब वह जेल में थे और अब जो कोरोना का दौर चल रहा है, उसमें कुछ समानता देखने को मिल रही है. जेल में 7 साल की सजा के दौरान कई चीजों को लेकर अनिश्चितता रही कि केस में क्या होगा, जमानत मिलेगी या नहीं मिलेगी. उसी तरह की स्थिति कोरोना संक्रमण के इस दौर में लोगों में देखी जा रही है कि उन्हें कोरोना होगा या नहीं होगा, यदि कोरोना हो गया तो क्या वह सही हो पाएंगे, उन्हें अस्पताल में बेड मिल पाएगा, ऑक्सीजन मिल पाएगी, इंजेक्शन मिल पाएंगे आदि इन तमाम चीजों को लेकर लोगों में अनिश्चितता देखी जा रही. इसको दूर करने का सिर्फ एक ही उपाय है कि मनुष्य सकारात्मक सोच रखें और यह सोचे कि यदि उसे कोरोना हो भी गया तो वह उससे सही हो जाएगा.
युवाओं की लापरवाही परिवार के लिए बन सकती है बड़ी मुसीबत
एसीबी एडीजी दिनेश एमएन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि लॉकडाउन के दौरान भी जो युवा बिना किसी कारण के बाहर घूम रहे हैं, ऐसा करके ना केवल वह अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं बल्कि अपने परिवार के अन्य सदस्यों की जिंदगी को भी खतरे में डाल रहे हैं. युवाओं में काफी एनर्जी होती है. जिसे वह घर पर ही यूटिलाइज करें. घर पर रहकर ही वह अपनी पसंद की एक्टिविटी करें, योग करें, प्राणायाम करें और खुद को अपने मनपसंद कार्यों में व्यस्त रखें.