जयपुर. मजदूर दिवस पर इस बार लॉकडाउन कामगार श्रमिकों के लिए भारी पड़ता हुआ नजर आया. आमतौर पर इस दिन कई तरह के आयोजन के जरिए इन श्रमिकों को ना सिर्फ हौसला अफजाई मिलती है. बल्कि 1 दिन में वह सम्मान मिलता है, जिस का हकदार यह वर्ग साल भर हुआ करता है. जयपुर के आकेड़ा डूंगर इलाके में प्रवासी मजदूरों की एक कॉलोनी में जब ईटीवी भारत पहुंचा, तो इन मजदूरों का दर्द खुलकर सामने निकला.
साहब लॉकडाउन है, फैक्ट्री बंद है और घर चलाना मुश्किल हो रहा है ये शब्द मेहनतकश मजदूर के जुबां पर उनका दर्द बयां करते हैं. जयपुर के एक औद्योगिक क्षेत्र से सटे आकेड़ा डूंगर इलाके में बड़ी आबादी प्रवासी मजदूरों की है, जो लोग आसपास के कारखानों में काम करके अपने घर का गुजारा करते हैं.
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इन लोगों का दर्द यह है कि आसपास के इलाकों में स्थानीय मजदूर है, तो प्रशासन और समाजसेवी लगातार उनकी सुध लेकर उनका ख्याल रख रहे हैं. लेकिन प्रशासन की तरफ से अब तक उनका दर्द जानने के लिए कोई भी नहीं पहुंचा है. इन लोगों ने बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है कामकाज पूरी तरह से ठप हो चुका है.
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सरकार ने कहा था लेकिन फिर भी फैक्ट्री मालिक बिना काम किए मेहनताना देने के लिए तैयार नहीं है और इन हालात में घर का किराया देने के बाद राशन के लिए उनको भारी मशक्कत करनी पड़ रही है, जबकि प्रशासन का दावा था कि प्रवासी मजदूर और उनके परिवारों को लिए एक पखवाड़े का राशन सरकार मुफ्त देगी.
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इन मजदूरों की कहानी यह बयां करती है कि सरकारी दावे अकसर किताबों के लिए होते हैं, जो चंद जगहों पर मूर्त रूप ले लेते हैं. लेकिन जब दूर दराज के इलाकों की बात होती है तो इन लोगों के लिए यह दावे सिर्फ उन सपनों जैसे हैं जो सुबह आंख खुलने के साथ गुम हो जाते हैं. ये वह बड़ा वर्ग है जिनके दम पर देश की अर्थव्यवस्था टिकी होती है. अब इन लोगों ने उम्मीद ही छोड़ दी है कि किसी सरकारी मदद के दम पर इन लोगों को राशन उपलब्ध हो सकेगा.
शिकायती लहजे में यहां रहने वाले लोगों ने कहा कि अगर सरकार मदद कर रही है, तो फिर भेदभाव क्यों किया जाता है. ज्यादातर लोगों का कहना था कि वह सिर्फ अकेले नहीं रहते बल्कि उनका परिवार भी उनके साथ में है. ऐसे में बिना पैसों के घर चलाने के लिए कर्ज के सिवा कोई और चारा उनके सामने नहीं बचता है.