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Diwali Special: दिवाली पर मिट्टी के डेकोरेटिव आइटम और रंगीन दीयों से रोशन होगी गुलाबी नगरी

जयपुर में दिवाली की खुशी और घरों को सजाने का उत्साह इस बार काफी ज्यादा है. दरअसल, एक लंबे वक्त के बाद लोग कोरोना महामारी के कारण बने उदासी और के डर के माहौल से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. इसके चलते दीवाली की तैयारियों में बाजार गुलजार हो चुके हैं.... रंगीन दियों की डिमांड बढ़ गई है....

Jaipur News, Diwali 2020, रंगीन दीये,  जयपुर में दीवाली
दिवाली पर इस साल हो रही रंगीन दियों की मांग
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Published : Nov 12, 2020, 2:31 PM IST

जयपुर. आधुनिकता के इस दौर में भी दिवाली पर मिट्टी के दीये गुलाबी नगरी के लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं. आमतौर पर शहरों के आस-पास गांवों में दीये बनते हैं. गुलाबी नगरी में इस बार की दिवाली बहुत खास मानी जा रही है. ऐसे में रंगीन दियों की डिमांड बढ़ गई है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फॉर वोकल अभियान के तहत आमजन इसमें पूरी तरह से भागीदारी भी निभा रहे हैं.

दिवाली की खुशी और घरों को सजाने का उत्साह इस बार काफी ज्यादा है, क्योंकि एक लंबे वक्त के बाद उदासी और डर के माहौल के बीच लोगों में रोशनी की किरण जगी है. इसी के चलते दीवाली की तैयारियों में बाजार गुलजार हो चुके हैं. वहीं, शहरवासी लोकल फॉर वोकल की थीम पर अपने घर को सजाने के लिए मिट्टी से बने दीये, डेकोरेटिव आइटम और मूर्तियां खरीद रहे हैं. ग्राहकों का इसके प्रति बढ़ते रुझान से कारीगरों के चेहरों भी खिल उठे हैं. आलम ये है कि कोरोना को भूल लोग खरीददारी के लिए बाजारों का रुख कर रहे हैं.

दिवाली पर इस साल हो रही रंगीन दियों की मांग

पढ़ें: Special: दौसा पशु चिकित्सालय के वार्डों में लटक रहे ताले, डॉक्टर नहीं दे रहे ध्यान... मुश्किल में 'बेजुबान'

दिवाली पर बाजार में कई तरह के डिजाइन के मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है. इनमें विशेष रंग-बिरंगी कलाकृतियों के छोटे-बड़े और कई आकृति वाले दीये दिखाई दे रहे हैं, जिनकी कीमत 5 रुपये से लेकर 100 रुपये तक है. ये सभी अपनी कलाकृतियों की वजह से शहरवासियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. ये अधिकांश दीये दिल्ली-गुजरात और कोलकाता से आते हैं, क्योंकि इनके लिए चिकनी मिट्टी का इस्तेमाल होता है. इसलिए गुजरात और कोलकाता की मिट्टी इन आइटम्स के लिए उपयुक्त रहती है. उसके बाद इन दीयों को जयपुर लाया जाता है और फिर कलर-पेंट करके इनकी खूबसूरती में चार चांद लगाया जाता है.

चाइनीज लाइट्स के बजाय इस दिवाली लोग मिट्टी से बने आइटम ज्यादा खरीद रहे हैं. इसी के चलते इनकी डिमांड भी कई गुना बढ़ गई है. आमजन लोकल के लिए वोकल होकर इस दिवाली देसी प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देना चाह रहे हैं. आमतौर पर दिवाली पर घर सजाने में 15-20 हजार रुपये का खर्च हो जाते थे, लेकिन इस बार मिट्टी के प्रोडक्ट किफायती दामों में खरीदकर खुद के घर के साथ-साथ इन कारीगरों का घर भी रोशन कर रहे हैं, जिससे पहले से आर्थिक तंगी से जूझ रहे कारीगरों को राहत मिल सके.

पढ़ें: Exclusive: महापौर मंजू मेहरा बोलीं- ससुर ने नर्स की नौकरी नहीं करने दी, फिर राजनीति में आजमाए हाथ...अब महापौर बनी

इस दिवाली लोग रंगीन दीयों को पसंद तो ज्यादा कर रहे हैं. लेकिन, कारीगरों को इसका पूरा मेहनताना भी नहीं मिल पाता. क्योंकि कोरोना काल में इनका काम कुछ खास नहीं चल पा रहा. ऐसे में लोग सिर्फ रंगीन दीयों की डिमांड कर रहे हैं और कोरे मिट्टी के दीयों से मुंह मोड़ रहे हैं, जिसके चलते कारीगर काफी परेशान भी है. कोरोना काल का भी असर इस बिरादरी पर इस कदर पड़ा है कि दीपावली जैसे बड़े त्योहार पर ही अब इनकी उम्मीद टिकी हुई है. ऐसे में ईटीवी भारत भी आप सब से अपील करता है कि इस दीवाली रंगीन दीयों से घर-आंगन को रोशन करने के साथ साथ कोरे दीपक भी जरूर जलाएं, जिससे कुम्हार बिरादरी के कारीगरों को उनका मेहनताना मिलेगा और दीयों की रोशनी के जैसे उनके घर भी रोशन होंगे.

जयपुर. आधुनिकता के इस दौर में भी दिवाली पर मिट्टी के दीये गुलाबी नगरी के लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं. आमतौर पर शहरों के आस-पास गांवों में दीये बनते हैं. गुलाबी नगरी में इस बार की दिवाली बहुत खास मानी जा रही है. ऐसे में रंगीन दियों की डिमांड बढ़ गई है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फॉर वोकल अभियान के तहत आमजन इसमें पूरी तरह से भागीदारी भी निभा रहे हैं.

दिवाली की खुशी और घरों को सजाने का उत्साह इस बार काफी ज्यादा है, क्योंकि एक लंबे वक्त के बाद उदासी और डर के माहौल के बीच लोगों में रोशनी की किरण जगी है. इसी के चलते दीवाली की तैयारियों में बाजार गुलजार हो चुके हैं. वहीं, शहरवासी लोकल फॉर वोकल की थीम पर अपने घर को सजाने के लिए मिट्टी से बने दीये, डेकोरेटिव आइटम और मूर्तियां खरीद रहे हैं. ग्राहकों का इसके प्रति बढ़ते रुझान से कारीगरों के चेहरों भी खिल उठे हैं. आलम ये है कि कोरोना को भूल लोग खरीददारी के लिए बाजारों का रुख कर रहे हैं.

दिवाली पर इस साल हो रही रंगीन दियों की मांग

पढ़ें: Special: दौसा पशु चिकित्सालय के वार्डों में लटक रहे ताले, डॉक्टर नहीं दे रहे ध्यान... मुश्किल में 'बेजुबान'

दिवाली पर बाजार में कई तरह के डिजाइन के मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है. इनमें विशेष रंग-बिरंगी कलाकृतियों के छोटे-बड़े और कई आकृति वाले दीये दिखाई दे रहे हैं, जिनकी कीमत 5 रुपये से लेकर 100 रुपये तक है. ये सभी अपनी कलाकृतियों की वजह से शहरवासियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. ये अधिकांश दीये दिल्ली-गुजरात और कोलकाता से आते हैं, क्योंकि इनके लिए चिकनी मिट्टी का इस्तेमाल होता है. इसलिए गुजरात और कोलकाता की मिट्टी इन आइटम्स के लिए उपयुक्त रहती है. उसके बाद इन दीयों को जयपुर लाया जाता है और फिर कलर-पेंट करके इनकी खूबसूरती में चार चांद लगाया जाता है.

चाइनीज लाइट्स के बजाय इस दिवाली लोग मिट्टी से बने आइटम ज्यादा खरीद रहे हैं. इसी के चलते इनकी डिमांड भी कई गुना बढ़ गई है. आमजन लोकल के लिए वोकल होकर इस दिवाली देसी प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देना चाह रहे हैं. आमतौर पर दिवाली पर घर सजाने में 15-20 हजार रुपये का खर्च हो जाते थे, लेकिन इस बार मिट्टी के प्रोडक्ट किफायती दामों में खरीदकर खुद के घर के साथ-साथ इन कारीगरों का घर भी रोशन कर रहे हैं, जिससे पहले से आर्थिक तंगी से जूझ रहे कारीगरों को राहत मिल सके.

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इस दिवाली लोग रंगीन दीयों को पसंद तो ज्यादा कर रहे हैं. लेकिन, कारीगरों को इसका पूरा मेहनताना भी नहीं मिल पाता. क्योंकि कोरोना काल में इनका काम कुछ खास नहीं चल पा रहा. ऐसे में लोग सिर्फ रंगीन दीयों की डिमांड कर रहे हैं और कोरे मिट्टी के दीयों से मुंह मोड़ रहे हैं, जिसके चलते कारीगर काफी परेशान भी है. कोरोना काल का भी असर इस बिरादरी पर इस कदर पड़ा है कि दीपावली जैसे बड़े त्योहार पर ही अब इनकी उम्मीद टिकी हुई है. ऐसे में ईटीवी भारत भी आप सब से अपील करता है कि इस दीवाली रंगीन दीयों से घर-आंगन को रोशन करने के साथ साथ कोरे दीपक भी जरूर जलाएं, जिससे कुम्हार बिरादरी के कारीगरों को उनका मेहनताना मिलेगा और दीयों की रोशनी के जैसे उनके घर भी रोशन होंगे.

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