जयपुर. स्कूल खुलने जा रहे हैं. सोमवार से कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों के लिए स्कूल के द्वार खुल जाएंगे. हालांकि एहतियात की लंबी-चौड़ी गाइड लाइन जारी की गई है. लेकिन अभिभावकों का कहना है कि सरकार ने स्कूल-कोचिंग संचालकों के दबाव में शिक्षण संस्थान खोले हैं. बच्चों पर यह ट्रायल ठीक नहीं है. उन्होंने मांग की कि स्कूल खुलने से पहले शिक्षकों और स्कूल स्टाफ का कोविड टेस्ट करवाया जाना चाहिए. ताकि संक्रमण का खतरा बच्चों तक नहीं आए. देखिए यह खास रिपोर्ट.
'बच्चों पर ट्रायल ठीक नहीं'
अभिभावकों के मन में कहीं न कहीं अपने बच्चों को कोरोना संक्रमण से खतरे से बचाने की चिंता है. ईटीवी भारत ने अभिभावकों से इस मुद्दे पर बात की तो उन्होंने खुलकर अपनी चिंता जाहिर की. कहा कि सरकार को बच्चों पर ट्रायल नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही अभिभावकों ने मांग उठाई कि स्कूल खोलने से पहले शिक्षकों और स्कूल स्टाफ की कोविड जांच भी होनी चाहिए. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी संक्रमित शिक्षक और स्कूल स्टाफ से कोरोना संक्रमण बच्चों तक नहीं पहुंचेगा.
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'सरकार ने निजी स्कूलों के दबाव में लिया फैसला'
अभिभावक अरविंद अग्रवाल का कहना है कि निजी स्कूलों के दबाव में सरकार ने स्कूल खोलने की कवायद शुरू की है. हमारे बच्चे ही क्या ट्रायल के लिए हैं. कोरोना का डर अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. टीकाकरण कार्यक्रम अभी शुरू हुआ है. बच्चों को अभी टीके भी नहीं लगाए जा रहे हैं. ऐसे में पहले स्कूल के शिक्षकों और स्टाफ का कोविड टेस्ट होना चाहिए. ताकि यह संशय खत्म हो कि स्कूल से कोरोना घर तक नहीं पहुंचेगा. क्योंकि बच्चों को बांधकर नहीं रखा जा सकता. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना सुनिश्चित करवाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा. बच्चे यदि संक्रमित होते हैं तो उनके साथ ही घर के बुजुर्गों के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो सकता है.
'कोरोना का डर अभी कायम'
अभिभावक संजय गोयल का कहना है कि फिलहाल कोरोना का डर खत्म नहीं हुआ है. वैक्सीनेशन का क्या परिणाम सामने आता है यह भी फिलहाल तय नहीं है. सरकार ने जो गाइड लाइन जारी की है उसमें कहा गया है कि बच्चों को कोरोना होने पर जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की होगी. इलाज का खर्च भी स्कूल प्रबंधन को उठाना होगा. लेकिन स्कूल प्रबंधन खुद अभिभावकों से सहमति पत्र मांग रहे हैं. इसके बाद ही बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिया जाएगा. संजय ने भी यही मांग दोहराई कि स्कूल खोलने से पहले शिक्षकों और स्कूल स्टाफ का कोविड टेस्ट होना चाहिए.
'बच्चों को संक्रमण हुआ तो जिम्मेदार कौन'
अभिभावक राजेंद्र का कहना है कि अभी तक कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. वैक्सीनेशन शुरू हो चुका है. पहले स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना का टीका लगाया जा रहा है. बच्चे अगर स्कूल जाएंगे तो वे आपस मे मिलेंगे भी. ऐसे में यदि किसी को कुछ हो जाता है तो जिम्मेदारी कौन लेगा. सरकार को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. पहले स्कूल स्टाफ और शिक्षकों का वैक्सिनेशन हो और कोविड टेस्ट हो. इसके बाद स्कूल खोलने का फैसला होना चाहिए.
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'स्कूल खोलने का फैसला जल्दबाजी में'
वहीं अभिभावक अभिषेक जैन का कहना है कि राजस्थान में 18 जनवरी से स्कूल खुलने जा रहे हैं. लेकिन इससे पहले भी कई राज्यों ने स्कूल खोलने का फैसला जल्दबाजी में लिया है. जिसके परिणाम हम सबके सामने हैं. आए दिन बच्चों और शिक्षकों के संक्रमित होने के मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे में राजस्थान सरकार का यह फैसला अभी जल्दबाजी लग रहा है.
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'ऑनलाइन सर्वे में अभिभावक स्कूल खोलने के खिलाफ'
एक अन्य अभिभावक महेश विजयवर्गीय का कहना है कि कोरोना काल में स्कूल फीस के मुद्दे पर आंदोलन करने वाले संयुक्त अभिभावक संघ ने पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वे भी करवाया. जिसमें अधिकतर अभिभावक स्कूल खोलने के फैसले के खिलाफ खड़े हैं.
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हालांकि, सरकार ने 18 जनवरी से स्कूल खोलने के लिए लंबी चौड़ी गाइड लाइन जारी की है. लेकिन अभिभावकों की चिंता अभी भी बरकरार है. अब देखना यह है कि गाइड लाइन की धरातल पर कितनी पालना होती है और अभिभावकों की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार और स्कूल प्रबंधन क्या कदम उठाते हैं.