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Special: घर की 'लक्ष्मी' से ऐसी क्या बेरुखी, 7 साल में लावारिस मिले 739 नवजात

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Published : Nov 6, 2020, 11:06 PM IST

बेटी पैदा हो तो कहा जाता है घर में लक्ष्मी आई है. आज बेटियां रोज नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, लेकिन इसके बाद भी समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जहां लोग बेटे की चाहत में बेटियों का त्याग करने से भी पीछे नहीं हटते. यही कारण है कि प्रदेश में सात साल में 739 नवजात लावारिस मिले. देखिए ये रिपोर्ट...

Family leaving abandoned after having a daughter
बेटी होने पर लावारिस छोड़ दे रहे परिजन

जयपुर. एक ओर जहां भारत में बेटी बचाओ बेटी-पढ़ाओ अभियान को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाओं का संचालन किया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ राजस्थान में स्थिति काफी भयावह होती जा रही है. राजस्थान में प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में नवजात बच्चियां कभी सड़क किनारे तो कभी कचरे के ढेर में या फिर सुनसान जगहों पर लावारिस पाई जा रही हैं. यदि किसी की नजर बच्चों पर पड़ गई तो उनकी जिंदगी बच जाती है, नहीं तो आवारा जानवर उसे अपना शिकार बना लेते हैं.

घर की 'लक्ष्मी' से ऐसी क्या बेरुखी

हमारा देश तकनीक के दौर में काफी आगे बढ़ चुका है और बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता लेकिन अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी सोच में बेटियों को अभिशाप माना जाता है. यही कारण है कि पूरे देश में राजस्थान ऐसा राज्य है जहां पर सर्वाधिक मात्रा में नवजात बच्चियां लावारिस पाई जाती हैं. इसके साथ ही बड़ी संख्या में ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां पर जन्म से पहले ही गर्भ में बेटियों की हत्या कर दी गई है. राजस्थान में ही सर्वाधिक मात्रा में भ्रूण भी लावारिस मिले हैं. सरकार द्वारा बेटियों को बचाने और लोगों की विकृत सोच को सुधारने के लिए अनेक योजनाएं व कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं लेकिन उसके बावजूद स्थिति काफी चिंताजनक है.

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नवजात बच्चों को लावारिस नहीं, पालने में छोड़ें

सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल ने बताया कि राजस्थान में नवजात बच्चों को लावारिस स्थिति में परिजनों द्वारा छोड़कर जाने के सैकड़ों मामले सामने आते रहते हैं. इसे देखते हुए राजस्थान सरकार द्वारा शहर के अनेक अस्पतालों व विभिन्न संस्थानों में नवजात बच्चों को पालने में छोड़कर जाने की व्यवस्था की गई है. जिन बच्चों को उनके परिजनों द्वारा पालने में छोड़ दिया जाता है उसके पालन-पोषण की संपूर्ण जिम्मेदारी राजस्थान सरकार द्वारा उठाई जाती है. इसके साथ ही ऐसे लोग जो संतान हीन हैं, उन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत लावारिस बच्चों को गोद देने का काम भी सरकार कर रही है.

The condition of daughters is worrying even in the 21st century
21वीं सदी में भी बेटियां की हालत चिंताजनक

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बच्चों को लावारिस छोड़ने के पीछे दो प्रमुख कारण

सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल ने बताया कि राजस्थान में बड़ी संख्या में नवजात बच्चों को परिजनों द्वारा लावारिस छोड़ने के पीछे दो प्रमुख कारण हैं. जिसमें पहला कारण बेटे की चाह रखना है. बेटे की चाह रखने वाले परिजनों के यहां अगर बेटी पैदा होती है तो वे उसे लावारिस छोड़ देते हैं. राजस्थान में नवजात बच्चियों के लावारिस मिलने के पीछे का प्रमुख कारण बेटे की चाह ही है. इसके अलावा कई बार लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे लोग भी बच्चा होने पर उसे लोकलाज के भय से लावारिस छोड़ देते हैं. इसके साथ ही कई ऐसे प्रकरण भी सामने आए हैं, जहां पर 1 या 2 वर्ष के बच्चे भी लावारिस पाए गए हैं. जिन बच्चों को कोई जटिल बीमारी होती है या फिर उनमें किसी तरह की कोई विकृति होती है तो उन्हें भी परिजन लावारिस छोड़ देते हैं.

Daughters is being ignored in want of son
बेटे की चाहत में बेटियों की अनदेखी

वर्ष 2014 से 2019 तक राजस्थान में मिले लावारिस भ्रूण, नवजात और बच्चों की संख्या

  • भ्रूण- 668
  • नवजात बच्चे-739
  • लावारिस बच्चे-140

नवजात बच्चियों को लावारिस छोड़ना जघन्य अपराध

जयपुर पुलिस की एडिशनल डीसीपी क्राइम सुलेश चौधरी का कहना है कि ऐसे लोग जिनकी सोच काफी छोटी होती है, वह ही नवजात बच्चियों को लावारिस छोड़ने का जघन्य अपराध करते हैं. ऐसी नवजात बच्चियां जो पुलिस को लावारिस स्थिति में मिलती हैं उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाता है. इसके साथ ही तमाम कानूनी प्रक्रिया के तहत नवजात बच्ची को लावारिस छोड़ कर जाने वाले अज्ञात परिजनों के विरोध प्रकरण दर्ज किया जाता है. यदि बच्ची को लावारिस छोड़ कर जाने वाले परिजनों की जानकारी पुलिस के हाथ लगती है तो फिर उनके खिलाफ आईपीसी की विभिन्न कठोर धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जाती है. वहीं लावारिस मिली नवजात बच्ची को सामाजिक कल्याण विभाग के सुपुर्द कर दिया जाता है.

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