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Exclusive: कब सीखेंगे सबक?, 20 साल से नवजातों पर टूट रहा कहर

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Published : Jan 16, 2020, 11:55 AM IST

Updated : Jan 16, 2020, 12:21 PM IST

कोटा के साथ ही बीकानेर, जोधपुर सहित दूसरे अस्पतालों में नवजातों की मौत ने सभी को झकझोर कर रख दिया है. परिजन कराह उठे, लोगों का आक्रोश दिखा तो विपक्ष ने भी सरकार को घेरा. ऐसा नहीं, कि साल 2019 के आखिर में नवजातों की इतनी मौत हुई, बल्कि पिछले 20 साल से साल दर साल हालात बिगड़े हैं. चाहे सरकार किसी भी पार्टी की रही हो...बीकानेर का भी यही हाल है.

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20 सालों से बच्चों की मौत का आंकड़ा लगभग एक जैसा

बीकानेर. कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत के मामले के बाद प्रदेश के सभी बच्चों के अस्पतालों में सामने आए नवजात बच्चों की मौत के मामले को लेकर पिछले दिनों काफी हंगामा हुआ था. इतना ही नहीं बच्चों की मौत का मामला देश भर में सुर्खियों में भी रहा. उधर, विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर प्रदेश सरकार की विफलता के गुणगान करता नजर आया.

20 साल से नवजातों पर टूट रहा कहर

वहीं कांग्रेस में भी आंदोलन स्तर पर इस मामले को लेकर घमासान मचा रहा. नवजात बच्चों की मौत के मामले में तुरंत एक्शन में आई सरकार ने भी प्रदेश के हर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य और अस्पताल अधीक्षक के साथ ही बच्चा अस्पताल के जिम्मेदार लोगों को बुलाकर बैठक की. इस दौरान मॉनिटरिंग के साथ ही पिछले 20 साल के आंकड़ों को लेकर भी चर्चा की गई.

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बीते 20 सालों के आंकड़ों पर बस एक नजर...

  • बात करें बीकानेर की तो पिछले 20 सालों में नवजात बच्चों की मौत के आंकड़े लगातार एक जैसे रहते नजर आ रहे हैं
  • साल 1999 में बीकानेर में बच्चा अस्पताल में सामान्य वार्ड में मौत का आंकड़ा तीन फीसदी रहा
  • वहीं एनआईसीयू में आंकड़ा 9 फीसदी रहा
  • साल 2019 में भर्ती और जन्मे हुए बच्चों में मौत का कुल औसत 5 फीसदी रहा. इसके बाद लगातार हर साल, साल 2014 तक यह आंकड़ा इसके आसपास ही रहा
  • साल 2015 में अचानक से आंकड़ा बढ़ना शुरू हुआ और एनआईसीयू में 15.75 के सर्वाधिक औसत पर चला गया
  • साल 2019 में 1 हजार 08 नवजातों की मौत हुई और अस्पताल में भर्ती हुए बच्चों में यह औसत भी 6.12 हो गया
  • इसके बाद लगातार साल 2016 से 2019 तक एनआईसीयू में मौत का आंकड़ा बढ़ता गया, लेकिन ज्यादा बच्चों के इलाज के लिए भर्ती होने के चलते प्रतिशत में साल 2016 के प्रतिशत के आसपास ही रहा
  • हालांकि पिछले 20 सालों में नवजातों की मौत का कुल औसत 2016 में सर्वाधिक करीब 7 प्रतिशत रहा, जबकि एनआईसीयू में साल 2019 में सर्वाधिक 16.09 रहा
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    20 सालों से बच्चों की मौत का आंकड़ा लगभग एक जैसा

लेकिन आंकड़ों में कुछ यूं रहे ये साल...

  • साल 2017 में बीकानेर में 1 हजार 631
  • साल 2017 में 1 हजार 648
  • साल 2018 में 1 हजार 678
  • साल 2019 में 1 हजार 681 बच्चों की मौत इलाज के दौरान हुई है, जिसमें 20 सालों में साल 2019 में सर्वाधिक 1 हजार 681 मौत हुई है. जो साल 2018 कि तुलना में तीन और साल 2017 की तुलना में 33 फीसदी ज्यादा है

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कुल मिलाकर इस पूरे मामले में सियासतदार अपनी सियासत को चमकाने का जरिया ढूंढ रहे हैं. वहीं धरातल पर हालात कमोबेश एक जैसे ही नजर आ रहे हैं. ऐसे में केवल सरकार और विपक्ष के नाम पर जनता की सहानुभूति को लूटकर राजनीति करने वालों को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि इस संवेदनशील मुद्दे पर बजाय राजनीति के हालात को सुधारने में उनका क्या योगदान रह सकता है.

Intro:हाल ही में प्रदेश के कोटा के साथ ही बीकानेर जोधपुर सहित अन्य अस्पतालों में नवजात बच्चों की मौत के मामले ने काफी तूल पकड़ा और विपक्ष ने भी सरकार को इस मुद्दे पर घेरने का प्रयास किया। लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 20 सालों में चाहे सरकार किसी भी पार्टी की रही हो मौत का आंकड़ा लगभग एक समान ही रहा है।


Body:बीकानेर। प्रदेश के कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत के मामले के बाद प्रदेश के सभी बच्चा अस्पतालों में सामने आए नवजात बच्चों की मौत के मामले को लेकर पिछले दिनों काफी हंगामा हुआ और राजस्थान में बच्चों की मौत का मामला पूरे देश में सुर्खियों में रहा उधर विपक्ष भी इस मुद्दे को प्रदेश सरकार की विफलता से जोड़ता नजर आया। वहीं कांग्रेस में भी आंदोलन स्तर पर इस मामले को लेकर घमासान मचता दिखाई दिया। नवजात बच्चों की मौत के मामले में तुरंत एक्शन में आई सरकार ने भी प्रदेश के हर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य और अस्पताल अधीक्षक के साथ ही बच्चा अस्पताल के जिम्मेदार लोगों को बुलाकर बैठक की और इस दौरान मॉनिटरिंग के साथ ही पिछले 20 साल के आंकड़ों को लेकर भी चर्चा की।


Conclusion:बात करने बीकानेर की तो पिछले 20 सालों के नवजात बच्चों की मौत के आंकड़े लगातार एक जैसे रहते नजर आ रहे हैं। साल 1999 में बीकानेर में बच्चा अस्पताल में सामान्य वार्ड में मौत का आंकड़ा तीन फीसदी रहा तो वही एनआईसीयू में आंकड़ा 9 फीसदी रहा। इस साल पूरे साल में भर्ती और जन्मे हुए बच्चों में मौत का कुल औसत 5 फीसदी रहा। इसके बाद लगातार हर साल साल 2014 तक यह आंकड़ा इसके आसपास ही रहा। साल 2015 में अचानक से आंकड़ा बढ़ना शुरू हुआ और एनआईसीयू में 15.75 के सर्वाधिक औसत पर चला गया। इस साल 1008 नवजातों की मौत हुई और अस्पताल में भर्ती हुए बच्चों में यह औसत भी 6.12 हो गया। इसके बाद लगातार साल 2016 से 2019 तक एनआईसीयू में मौत का आंकड़ा बढ़ता गया लेकिन ज्यादा बच्चों के इलाज के लिए भर्ती होने के चलते प्रतिशत में 2016 के प्रतिशत के आसपास ही रहा। हालांकि पिछले 20 सालों में नवजातों की मौत का कुल औसत 2016 में सर्वाधिक करीब सात प्रतिशत रहा है जबकि एनआईसीयू में 2019 में सर्वाधिक 16.09 रहा है। लेकिन आंकड़ों में 2017 में बीकानेर 1631, 2017 में 1648, 2018 में 1678 औऱ 2019 में 1681 बच्चों की मौत इलाज के दौरान हुई है। जिसमें 20 सालों में 2019 में सर्वाधिक 1681 मौत हुई है जो 2018 कि तुलना में तीन और 2017 की तुलना में 33 ज्यादा है।

कुल मिलाकर इस पूरे मामले में सियासतदार अपनी सियासत को चमकाने का जरिया ढूंढ रहे हैं तो वहीं धरातल पर हालात कमोबेश एक जैसे ही नजर आ रहे हैं ऐसे में केवल सरकार और विपक्ष के नाम पर जनता की सहानुभूति को लूट कर राजनीति करने वालों को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि इस संवेदनशील मुद्दे पर बजाय राजनीति के हालात को सुधारने में उनका क्या योगदान रह सकता है।

पीटीसी अरविन्द व्यास बीकानेर
Last Updated : Jan 16, 2020, 12:21 PM IST
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