ETV Bharat / city

स्पेशलः दो नदियों का प्रवाह रोक बनाया गया था अभेद लोहागढ़ दुर्ग, मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने टेके थे घुटने

author img

By

Published : Feb 19, 2020, 2:57 PM IST

लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण महाराजा सूरजमल ने करवाया था. इतिहासकारों की मानें तो इसके निर्माण के लिए रूपारेल और बाणगंगा नामक दो नदियों के प्रवाह को भी रोक दिया गया था. इस अभेद दुर्ग का निर्माण 8 साल में हुआ था. भरतपुर के स्थापना दिवस पर ईटीवी भारत आपको लोहागढ़ किले के निर्माण से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं से रू-ब-रू कराएगा जिनके बारे में शायद ही आपने कभी सुना हो. पढ़ें विस्तृत खबर....

Lohagarh fort, Bhatatpur news, Rajasthan news, लोहागढ़ किला, राजस्थान न्यूज, लोहागढ़ किला
लोहागढ़ किले का इतिहास

भरतपुर। आज भरतपुर का 287वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. यहां का लोहागढ़ दुर्ग भारतीय इतिहास में अजेय दुर्ग के नाम से विख्यात है. इस दुर्ग को आज तक कोई भी नहीं जीत पाया. मुस्लिम शासकों से लेकर मराठों और अंग्रेजों ने कई बार इस पर आक्रमण किए, लेकिन सभी को पराजय का मुंह देखना.

लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण महाराजा सूरजमल ने करवाया था. इतिहासकारों की मानें तो इसके निर्माण के लिए रूपारेल और बाणगंगा नामक दो नदियों के प्रवाह को भी रोक दिया गया था. इस अभेद दुर्ग का निर्माण 8 साल में हुआ था.

लोहागढ़ किले का इतिहास

भरतपुर के स्थापना दिवस पर ईटीवी भारत आपको लोहागढ़ किले के निर्माण से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं से रू-ब-रू कराएगा जिनके बारे में शायद ही आपने कभी सुना हो.

8 साल में ऐसे तैयार हुआ लोहागढ़ किला....

भरतपुर के एमएसजी कॉलेज में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर सतीश त्रिगुणायत ने बताया कि साल 1733 में कुंवर सूरजमल ने खेमकरण सोगरिया पर आक्रमण किया और फतेहगढ़ी को अपने कब्जे में ले लिया था. इसी इसी स्थान पर लोहागढ़ किले का निर्माण करवाया गया.

हालांकि लोहागढ़ किले के निर्माण को लेकर इतिहासकारों में विरोधाभास भी नजर आता है. कुछ इतिहासकार साल 1733 से तो कुछ साल 1743 से इसका निर्माण प्रारंभ होना मानते हैं. इतिहासकार उपेंद्र नाथ शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक 'जाटों का नवीन इतिहास' में लिखा गया है कि लोहागढ़ दुर्ग की नींव साल 1743 में रखी गई थी, और यह 8 साल में बनकर तैयार हो गया था.

किले के निर्माण के लिए रोक दिया गया था दो नदियों का प्रवाह....

डॉक्टर त्रिगुणायत ने बताया कि किले के निर्माण से पूर्व इस स्थान पर रूपारेल और बाण गंगा नदियों का प्रवाह था. ऐसे में लोहागढ़ किले के निर्माण से पूर्व दोनों नदियों का प्रवाह मोती झील, अजान बांध, अटल बांध और सेवर में नदियों की ओर मोड़ दिया गया था. ये कार्य आसान नहीं था लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति से ऐसा संभव हो गया. इसके बाद किले का निर्माण प्रारंभ किया गया.

यह भी पढ़ेंः परिवहन विभाग घूसकांड: खुद को बचाने के लिए सिक्योरिटी गार्ड के फोन से होती थी डील, एक डायरी में छुपे कई राज

ऐसे बना अभेद्य दुर्ग....

डॉक्टर त्रिगुणायत ने बताया कि किले के निर्माण के लिए 1500 गाड़ियां, 1000 ऊंट गाड़ियां, 500 घोड़ा गाड़ियां और 500 खच्चर बंसी पहाड़पुर और बंध बरेठा से पत्थर लेकर आते थे. किले में 8 बुर्ज और दो द्वार का निर्माण किया गया. किले के चारों तरफ सुजान गंगा नहर का निर्माण किया गया. इसकी चौड़ाई 200 फीट और गहराई 30 फीट बताई जाती है.

इस किले की दीवारें 100 फीट ऊंची और 30 फीट चौड़ी हैं. पत्थर की दीवार के आगे रेत की दीवार भी थी, जोकि युद्ध के समय दागे जाने वाले गोलों से अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती थी. गोले रेत की दीवार में धंस कर रह जाते थे जिससे किले को कोई नुकसान नहीं पहुंचता था. बताया जाता है कि किले की दीवारें इतनी चौड़ी थीं की एक साथ चार बैल गाड़ियां उससे गुजर सकती थी.

अंग्रेजों को झेलनी पड़ी 5 बार पराजय.....

डॉक्टर त्रिगुणायत ने बताया कि साल 1805 के जनवरी माह में लार्ड लेक ने भरतपुर पर आक्रमण किया था, लेकिन वे असफल रहे. इसके बाद भी अंग्रेजों ने चार बार लोहागढ़ पर आक्रमण किया, लेकिन हर बार उन्हें पराजय का मुंह ही देखना पड़ा. भारत का गौरव और कीर्ति का प्रतीक लोहागढ़ किला अंग्रेज सरकार की सैन्य शक्ति को लंबे समय तक चुनौती देता रहा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.