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बाड़मेर: बालोतरा में 'मरू गंगा' बचाने को लेकर बच्चों ने दिया जागरूकता संदेश

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Published : Mar 22, 2021, 1:14 AM IST

बालोतरा में लूणी नदी अब लुप्त होने की कगार पर है. इसको लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है. इस बीच ग्रामीणों और बच्चों ने मरू गंगा बचाने को लेकर मानव श्रृंखला बनाकर जागरूकता सन्देश दिया.

Balotra news, Children awareness message
बालोतरा में 'मरू गंगा' बचाने को लेकर बच्चों ने दिया जागरूकता संदेश

बालोतरा (बाड़मेर). क्षेत्र में लूणी नदी अब लुप्त होने की कगार पर है. पाली और बालोतरा की रंगाई-छपाई इकाईयों से निकलने वाले रसायनिक पानी और कम वर्षा के चलते लूणी आज नदी की जगह रसायनिक पानी का नाला बन कर रह गई है. ये बात श्री राणी भटियाणी मंदिर संस्थान अध्यक्ष और इंटेक चैप्टर जिला संयोजक रावल किशन सिंह जसोल ने तिलवाड़ा मेला मैदान स्थित मरु गंगा बचाने के कार्यक्रम मानव श्रृंखला जागरुकता संदेश के दौरान कही. उन्होंने कहा कि लूणी नदी के बेसिन पर स्थित रंगाई-छपाई फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित पानी की वजह से यह बर्बाद हो गई है.

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उन्होंने कहा कि नदियों के किनारे हमारी संस्कृतियों का जन्म हुआ है, लेकिन आज इसी लूणी के किनारे और आस-पास के सैकड़ों गांव जहां पीने के शुद्ध पानी को तरस रहे है. वहीं हजारों बीघा जमीन बंजर हो चुकी है. ऐसे में स्कूली बच्चों का यह मानव श्रृंखला बनाकर मरू गंगा को बचाने का संदेश यकीनन आने वाले दिनों में अच्छा परिणाम लाएगी. उन्होंने कहा कि कपड़ा उद्योग के शुरू होने से पहले तक लूणी नदी बालोतरा के लिए खुशहाली की प्रतीक थी, लेकिन पश्चिमी राजस्थान की जीवनदायिनी मरू गंगा यानी लूणी नदी आज संकट में अपने वजूद को बचाने की अंतिम लड़ाई लड़ रही है.

मारू गंगा को बचाने का बच्चों ने दिया सन्देश

मरू गंगा बचाओं कार्यक्रम की शुरूआत नदी क्षेत्र में जल पूजा और आरती के साथ जसोल और तिलवाड़ा के स्कूली बच्चों ने मानव श्रृंखला बनाकर जागरुकता का संदेश देते हुए मरू गंगा को बचाने और प्रदूषण को रोकने का संकल्प लिया. स्कूली बच्चों ने एक दूजे का हाथ नहीं थामते हुए दो गज की दूरी के फांसले के साथ मुंह पर मास्क लगाकर नदी बचाने और कोरोना के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया.

संतो का संगम स्थल की पहचान बना तिलवाड़ा पशु मेला

मरू गंगा की गोद में 700 साल पहले संतों के समागम ने इसकी पवित्रता को समझा था. संतों का वो संगम स्थल, आज तिलवाड़ा पशु मेले के तौर पर दुनियां में जाना जाता है. मालाणी नस्ल के घोड़ों की खरीद फरोख्त के लिए प्रसिद्ध श्री मल्लीनाथ पशु मेला तिलवाड़ा में लगता है, जंहा हजारों की संख्या में पशु पहुंचते हैं. सन्तो के समय काल मे रावल मल्लीनाथ समाज विज्ञान और प्रकृति के प्रति उनकी सोच ने आज की प्रदूषित लूणी नदी में तब पवित्रता को समझा था. दुख की बात है कि आज की सोच ने इसके वजूद को लगभग खतरे में डाल दिया है.

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