कोरापुट के शहीद क्रांतिकारियों के वंशज को आज भी सम्मान मिलने का इंतजार

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Published : Nov 6, 2021, 5:58 AM IST

कोरापुट के शहीद क्रांतिकारी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हजारों-लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को अंग्रेजों से आजाद कराया था. लेकिन उनमें से कइयों को भुला दिया गया है. शहीदों और उनके वंशज को जो सम्मान मिलना चाहिए था, उन्हें नहीं मिला. ऐसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों की दास्तान एक बार दुनिया के सामने लाने की मुहिम ईटीवी भारत ने शुरू की है. आज हम ओडिशा के कोरापुट क्षेत्र में भारत छोड़ो आंदोलन हुए विद्रोह के आदिवासी क्रांतिकारियों के बार में बता रहे हैं.

हैदराबाद : वर्ष 1942 में, महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) का आह्वान किया. इसका उद्देश्य भारत से 200 साल पुराने ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकना था. इस जन आंदोलन में लाखों युवा और आम हिंदुस्तानी शामिल हुए. देशभर में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह हुए. इस दौरान ओडिशा के कोरापुट क्षेत्र में आदिवासी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला. यह विद्रोह कोरापुट के गुनुपुर से पापड़ाहांडी और मैथिली तक फैल गया.

क्रांतिकारी लक्ष्मण नायक के नेतृत्व में मैथिली थाने पर हमला, गुनुपुर के पास आदिवासी विद्रोह और पापड़ाहांडी में थुरी नदी के तट पर सैकड़ों आदिवासियों के बलिदान ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला कर रख दी.

कोरापुट के शहीद क्रांतिकारियों को आज भी नहीं मिली मान्यता

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा सिंह का कहना है कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कोरापुट की भागीदारी काफी उल्लेखनीय थी. यह अद्वितीय घटना थी. मुझे लगता है कि कोरापुट की घटना से 1942 में ओडिशा में स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई थी.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हजारों आदिवासियों ने बलिदान दिया, लक्ष्मण नायक जैसे क्रांतिकारी, जो जेल गए या अंग्रेजों ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया, उन्हें तो शहीद का दर्जा मिला. मगर अन्य के नाम इतिहास से गायब हो गए. आज लक्ष्मण नायक समेत अन्य शहीद क्रांतिकारियों को भी सरकारों द्वारा भुला दिया गया है.

हालांकि, लक्ष्मण नायक की जयंती और पुण्यतिथि पर अधिकारी, नेतागण और समाज के विभिन्न वर्गों के लोग वीर स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि देने उनके गांव तेंतुलिगुम्मा में पहुंचते हैं. लेकिन दुर्भाग्य से इन दो दिनों के अलावा पूरे साल इस वीर क्रांतिकारी की किसी को भी याद नहीं आती. इन वीर शहीदों की पीढ़ियां भी इन्हें भुला चुकी हैं.

नेताओं द्वारा वादे तो किए जाते हैं लेकिन विकास आज भी यहां तक नहीं पहुंच पाया है. शहीद लक्ष्मण नायक की स्मृति के रूप में मशहूर तेंतुलिगुम्मा में उनके आवास के प्रति सरकार की उदासीनता भी हैरान करने वाली है.

शहीद लक्ष्मण नायक के पौत्र मधु नायक का कहना है, 'लक्ष्मण नायक को हर कोई महान कहता और उनका गुणगान करता है, लेकिन लक्ष्मण नायक के परिवार के लिए आज तक किसी ने कुछ नहीं किया. सरकार भी परिवार की तरफ ध्यान नहीं देती. हम खेती करते हैं. सरकार की ओर से कुछ नहीं किया गया है. हमें आवास नहीं दिया गया है.'

कोरापुट के पूर्व जिला कलेक्टर गदाधर परिदा का कहना है कि मैथिली गोलीकांड के शहीदों के परिवारों को मान्यता दी जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, शहीद लक्ष्मण नायक के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन मैथिली के लोग भी यह नहीं बता पाएंगे कि ब्रिटिश पुलिस द्वारा मैथिली में की गई गोलीबारी में और कौन लोग मारे गए थे. यह अनजान शहीदों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है. इसलिए इस साल जब हम स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, शहीदों के परिवारों को मान्यता दी जानी चाहिए.

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आज जब देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, तेंतुलिगुम्मा के लोगों को उम्मीद है कि इन आदिवासी नायकों को सम्मानित किया जाएगा. जिला प्रशासन ने भी तेंतुलिगुम्मा और उसके आसपास के इलाकों में विकास कार्य शुरू कर दिए हैं.

कोरापुट के जिला कलेक्टर अब्दाल अख्तर ने कहा कि शहीद लक्ष्मण नायक का गांव तेंतुलिगुम्मा हमारे लिए अहम पंचायत है. पिछले साल, ग्रामीण विकास विभाग ने कोलाब नदी पर मेगा ब्रिज का निर्माण शुरू किया था. हमारा उद्देश्य बोईपरिगुडा ब्लॉक से गांव को सेवाएं प्रदान करना है.

क्रांतिकारी लक्ष्मण नायक और मैथिली गोलीकांड के अन्य शहीदों के वंशज कोरापुट जिले के तेंतुलिगुम्मा गांव में रहते हैं. लेकिन तीन पीढ़ियों बाद भी सरकार यहां के शहीदों के परिवारों को आवास मुहैया नहीं करा पाई है. शहीदों की जन्म स्थली और उनके वंशज आज भी उचित सम्मान मिलने का इंतजार कर रहे हैं.

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