'बच्चे हमारी प्राथमिकताओं में क्यों नहीं', पढ़ें नोबेल विजेता का पूरा साक्षात्कार

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Published : Jun 3, 2021, 4:41 PM IST

Updated : Jun 3, 2021, 5:03 PM IST

कैलाश सत्यार्थी

कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया के सामने बड़ी चुनौती आने वाली नस्लों को सहेजना भी है. यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोरोना संकट के बीच बच्चे हमारी राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्राथमिकताओं में नहीं रहे. खासकर वे बच्चे जो सामाजिक रूप से हाशिए पर हैं. यह कहना है कि नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्यार्थी का. उन्होंने कहा कि कोरोना के बाद बच्चों के लिए दुनिया के देशों को टास्क फोर्स बनाना चाहिए. महामारी के दौर में बाल कल्याण को लेकर ईटीवी भारत ने कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi) के साथ विशेष बातचीत की. उनसे बात की है ईटीवी भारत के दिल्ली स्टेट हेड विशाल सूर्यकांत ने.

नई दिल्ली : देश-दुनिया में बचपन बनाने की मुहिम चला रहे नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) विजेता कैलाश सत्यार्थी दुनिया भर में बाल अधिकारों के लिए संघर्ष के लिए पहचाने जाते हैं. उन्होंने अब तक 90 हजार बच्चों को बंधुआ मजदूरी के चंगुल से मुक्त कराया है. वे अकेले ऐसे नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, जिनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों भारत ही रही. 2015 में दुनिया के सबसे महान नेताओं की सूची में जगह बनाने वाले कैलाश सत्यार्थी 2025 तक दुनिया को बाल श्रम समाप्त करने की मुहिम चलाए हुए हैं. इसके अलावा हाल ही में WHO की ओर से आयोजित WHO की वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में बतौर मुख्य वक्ता शामिल सत्यार्थी ने दुनिया भर के बच्चों के लिए टास्क फोर्स की मांग रखी. वे इन दिनों फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन और स्वास्थ्य को संवैधानिक अधिकार देने का मुद्दा इन दिनों जोर-शोर से उठा रहे हैं. कोरोना की उलझन और दुनिया कैसे बचाएगी बचपन...इस मुद्दे पर नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी (Nobel Peace Prize Winner Kailash Satyarthi) से दिल्ली स्टेट हेड विशाल सूर्यकांत ने की Exclusive बात...

ईटीवी भारत - हाल ही में आपको वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी WHO द्वारा आयोजित वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था. आपने इस महत्वपूर्ण मंच पर बच्चों के लिए क्या मांग की ?

कैलाश सत्यार्थी: मेरे लिए बहुत गर्व की बात थी एक भारतीय होने के नाते और एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते, क्योंकि इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन की जनरल असेंबली में राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के अलावा मुझे बुलाया जाना बड़ी बात थी और इसका अर्थ जो मैंने सीधा ये लिया कि अब शायद दुनिया सबसे ज्यादा जो दयनीय दबे, कुचले, पीछे धकेले गए बच्चे हैं, उनकी आवाज सुनना चाहती है. मेरे माध्यम से शायद वो आवाज चली गई और मैंने वहां कुछ बुनियादी मुद्दे उठाए. जो बच्चे अभी शिक्षा से वंचित हो गए हैं, कई करोड़ बच्चे अब स्कूल नहीं जा पाएंगे. करोड़ों बच्चे अब भी स्कूलों से बाहर हैं.

विश्वभर में वहीं बच्चे बाल मजदूरी, बाल यौन शोषण, बाल वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर होते हैं. तो उन बच्चों के स्वास्थ्य को अकेला करके नहीं देखा जा सकता और न उनकी शिक्षा को अलग करके देखा जा सकता है. ये जुड़े हुए मुद्दे हैं. इसलिए दुनियाभर के देशों में इस पर मिलकर काम करना पडे़गा.

मैंने प्रस्ताव रखा कि बच्चों से संबंधित जितनी भी संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियां हैं, चाहें वो डब्ल्यूएचओ हो, यूनीसेफ, यूनेस्को वगैरह वह सब मिलकर काम करें. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का एक उच्चस्तरीय समूह गठित किया जाए, जो अभी बच्चों पर इस कोरोना महामारी का असर हुआ है , उससे निजात पाई जा सके. क्योंकि उसके बहुआयामी प्रभाव हुए हैं. उन कुप्रभावों से निपटने का काम केवल स्वास्थ्य मंत्रालय नहीं कर सकते दुनिया के बल्कि शिक्षा मंत्रालय और दूसरे भी काम करेंगे. दूसरा ये कि हर देश में एक स्पेशल टास्क फोर्स भी बनाया जाए. एक ऐसा समूह बनाया जाए, जो बच्चों पर इसके असर को देखकर इसके नजरअंदाज नहीं किया जा सके और उसके आधार पर सरकारें काम करें.

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के साथ विशेष बातचीत

ईटीवी भारत- कोरोना काल में भारत सहित पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चे ही प्रभावित हुए हैं. सरकारों ने सारा फोकस कोरोना से निपटने में किया है, लेकिन बच्चों के लिए कोई विशेष प्रावधान कहीं नजर नहीं आ रहे ? ऐसा क्यों और क्या होना चाहिए ?

कैलाश सत्यार्थी : यह एक बड़ी चूक है कि बच्चे हमारी राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्राथमिकताओं में नहीं रहे. और खासकर वो बच्चे जो हाशिये से बाहर छोड़ दिए जाते हैं. यहीं कारण है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चे शिक्षा से वंचित हैं.

शिक्षा के बजट हों, स्वास्थ्य के बजट हों या दूसरे और उनके संरक्षण के बजट हों. दुनियाभर के देशों में वो प्राथमिकता में नहीं हैं. और यहीं कारण है कि ये हालत बने हुए हैं. जो अंतरराष्ट्रीय विकास के अनुदान हैं, उसमें भी ये प्राथमिकता नहीं है, कानूनों में भी नहीं है. हम प्राथमिकता की बात तो हमेशा से करते रहे हैं, तभी हम उनको कह रहे हैं कि फेयर शेयर दीजिए .

मैंने पहल करके दुनियाभर के 80 नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) विजेताओं, राष्ट्राध्यक्षों, भूतपर्व राष्ट्राध्यक्षों को संयुक्त राष्ट्र संघ के कई मुखियाओं को इकट्ठा किया और इस कैंपेन को पिछले साल मार्च में लॉन्च किया. हम बार-बार कहते रहे कि बच्चों का फेयर शेयर उनको मिलना चाहिए. इस साल संयुक्त राष्ट्र संघ का बाल मजदूरी उन्मूलन वर्ष है. ऐसे में हमने ये कैंपेन चला रखा है.

ईटीवी भारत- कोरोना ने भारत में बच्चों को किस तरह प्रभावित किया है? क्या इससे ट्रैफिकिंग और बाल मजदूरी बढेगी?

कैलाश सत्यार्थी : कोरोना का भारत में भी बहुत बुरा असर हुआ है. करोड़ों बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. बहुत सारे बच्चे मध्याह्न भोजन पर आधारित थे. कोरोना के काल में मध्याह्न भोजन उन्हें नहीं मिल पाना ये बहुत बढ़ी चिंता का विषय है.

ईटीवी भारत- खबरें आ रही हैं कि कोरोना काल में बच्चों का यौन शोषण भी बढ़ा है? इसकी क्या वजह है?

कैलाश सत्यार्थी : बहुत ही शर्म की बात है और ये ना सिर्फ हमारे देश में बल्कि दुनिया के बड़े-बड़े देशों से भी ये खबरें हैं. ये पूरी दुनिया के लिए विडंबना है, बहुत बड़ी चिंता का विषय है. इससे चरित्र के पतन के साथ-साथ समाज का मानसिक पतन हुआ है. इससे उन बच्चों का जीवन तो बर्बाद हो गया है. ये माता-पिता की जिम्मेदारी है कि हम मित्रता के साथ उनके साथ व्यवहार करें.

ईटीवी भारत- कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर का शहरों से गांवों की तरफ पलायन हुआ है. ऐसे में इनके बच्चे स्कूल से बाहर हो गए हैं. महानगरों या शहरों में जहां ऑनलाइन कक्षाएं हो रही हैं, वहां भी स्मार्ट फोन आदि के अभाव में गरीब बच्चे पढ़ाई से वंचित हैं, क्या इस दिशा में कुछ नहीं होना चाहिए?

कैलाश सत्यार्थी : जिन बच्चों को ये सुविधा उपलब्ध नहीं है. उनके लिए केवल सरकार को ही आगे नहीं आना चाहिए. सामाजिक संगठन, कारपोरेट घरानों को आगे नहीं आना चाहिए. धर्मगुरुओं, धार्मिक संस्थानों को चाहिए कि वे अपने भक्तों से पुराने मोबाइल फोन खरीद लें ओर उन्हें चार्ज कराकर गरीब बच्चों को दे ताकि वे देख सके. सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वो इंटरनेट की मुफ्त सुविधा इन बच्चों को दें.

  • कोरोना काल में भारत में बच्चों की स्थिति दयनीय
  • स्कूलों के साथ मिड-डे-मील योजना भी बंद हुई
  • स्मार्ट फोन नहीं, ग़रीब बच्चे कैसे पढ़ेंगे ?

ईटीवी भारत- महामारी के इस दौर में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर देखने को मिल रहा है. क्या इस समस्या पर सरकारों का ध्यान जा रहा है ? इस समस्या का क्या समाधान देखते हैं आप?

कैलाश सत्यार्थी : मैंने भारत सरकार से निवेदन किया है और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि बच्चों के मामले में बहुआयामी विपदा है. इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर टास्क फोर्स बनाया जाए . जिसमें इन विषयों के एक्सपर्ट हों. इसमें बाल मनोवैज्ञानिक और बाल मनोचिकित्सकों को भी शामिल किया जाए. लॉकडाउन खुलने पर शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग मिलकर एक या दो शिक्षक को मनोवैज्ञानिक ट्रेनिंग दें. इसके साथ ही लॉकडाउन के बाद बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखा जाए.

ईटीवी भारत- कोरोना काल ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को उजागर कर दिया है. बड़ी तादाद में बच्चों और बुजुर्गो को हम स्वास्थ्य सेवाएं नहीं दे पाए ? क्या कारण है और क्या होना चाहिए ?

कैलाश सत्यार्थी : स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत बनाने की जरूरी है और ज्यादा संसाधन उसमें लगाने पड़ेंगे. एक जिम्मेवारी के साथ सबको जुटना पड़ेगा. इसी नाते मैंने सरकार से मांग की है कि स्वास्थ्य संवैधानिक अधिकार का दर्जा दिया जाए. स्वास्थ्य को अपने देश में को मौलिक अधिकार बनाते हैं तो पूरे के पूरे स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत किया जा सकता है. लोगों में जो निराशा सी छा रही है, डर और अनिश्चितता छा रही है, इस सबसे निजात पाकर एक सकारात्मक पहल हो पाएगी. जहां लोग भरोसा करेंगे कि स्वास्थ्य मेरा मौलिक अधिकार है. अभी देखा है कि कुछ लोगों ने इस मौके का गलत फायदा उठाया. अस्पतालों में बेड बहुत महंगी कीमत पर दिए गए या वेंटिलेटर में जो लूट हुई . उसमें लोगों के लाखों के बिल बन गए. अगर स्वास्थ्य को लेकर अधिकार बनता है तो इससे निजात पाएंगे. देश का जन स्वास्थ्य का जो ढांचा है वो सबके लिए और मजबूत हो पाएगा.

ईटीवी भारत - कोरोना काल में बहुत सारे बच्चे अनाथ हो गए हैं. उनके लिए सरकारों ने घोषणाएं तो की हैं, लेकिन सवाल यह कि कैसे तय करेंगें कि कोविड की वजह से अनाथ हुए हैं, गांवों में कहां टेस्ट हो रहे हैं ?

कैलाश सत्यार्थी : सरकारी तंत्र में बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो सही मायनों मे करूणा के साथ अनाथ बच्चों को अपना मानकर उनकी मदद करते हैं. बाल कल्याण से संबंधित हैं वो सरकारी नौकरी की तरह कर रहे हैं. इसलिए जरूरी है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को, युवाओं को जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए. सरकार के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं को भी सामने आना चाहिए. हर बच्चे के हाथ में शिक्षा का अधिकार होना चाहिए.

ईटीवी भारत - जब बात बाल मजदूरी की आती है तो देश में एक तबका यह तर्क देता है कि गरीब का बच्चा काम नहीं करेगा तो वह भूखे मर जाएगा. उनका कहना होता है कि पहले गरीबी खत्म करों, फिर बाल मजदूरी अपने आप समाप्त हो जाएगी. इस तर्क के बारे में आप का क्या कहना है.

कैलाश सत्यार्थी : ये देखना चाहिए कि हमारे बच्चे हमारी प्राथमिकता क्यों नहीं हैं. उनके माता-पिता को एक साल में सौ दिन भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है. ये एक दुष्चक्र बन रहा है कि हर एक बाल मजदूर किसी न किसी व्यस्क को बेरोजगार बनाकर उसकी रोजगार की कीमत में बाल मजदूरी कर रहा है. मेरा कहना है कि दुनिया में जब व्यस्क हैं तो आप उन्हें रोजगार दीजिए. अगर बाल मजदूरी करेगा बच्चा तो एक तरफ तो व्यस्क को बेरोजगार बनाएगा और दूसरी तरफ शिक्षा से वंचित रहेगा. शिक्षा से वंचित बच्चे कभी भी गरीबी का अंत नहीं कर सकते हैं. अशिक्षा का, गरीबी और बाल मजदूरी का त्रिकोणात्मक चक्र बना हुआ है, जो एक-दूसरे के पूरक बने हुए हैं. अगर हम सही मायनों में देश में शिक्षा के अधिकार के कानून और बाल मजदूरी के खिलाफ जो कानून बना है, उसे लागू करें तो इस समस्या से निजात पा सकते हैं.

ईटीवी भारत- चलते-चलते एक आखिरी सवाल, देश-दुनिया के बच्चों के बचपन को बचाने की मुहिम चला रहे हैं आप, खुद का बचपन कितना महफूज कर रखा है आपने ?

कैलाश सत्यार्थी : मैं कभी भी बचपन को उम्र के साथ नहीं जोड़ता. मैं यह मानता हूं कि बचपन का अर्थ है सच्चाई, ईमानदारी, पारदर्शिता, दूसरों को क्षमा कर देने का साहस और नई-नई बात सीखना, ये सब बचपन है. समाज में कोई भलाई कर पा रहा है बिना किसी अंहकार के तो सही मायनों में वही बचपन है. मैं तो रोज बच्चों के साथ खेलता हूं, हंसी मजाक करता हूं. मैं कहता हूं कि दुनिया को बच्चों की आंखों से देखो, ये बहुत खूबसूरत है. बच्चों के लिए दिल से प्रयास करेंगे तो कोई एसी समस्या नहीं है जिसका समाधान नहीं हो सकता है.

Last Updated :Jun 3, 2021, 5:03 PM IST
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