ज्यादातर महिलाओं घर-बाहर की जिम्मेदारियों के बीच खुद की अनदेखी करने लगती हैं जो उनके स्वास्थ्य पर काफी असर डालता है. महिला चाहे गृहणी हो या कामकाजी बहुत जरूरी है कि वह अपने बारे में, अपनी सेहत के बारे में और अपनी खुशी के बारे में भी सोचे और उसे लेकर प्रयास करें. यदि वह स्वस्थ और खुश होगी तभी अन्य जिम्मेदारियों को भी अच्छी तरह से निभा पाएंगी.
खुद की सेहत और खुशी का भी ध्यान
महिलाओं को परिवार की धुरी माना जाता है. घर परिवार, बच्चों, सभी रिश्तों-नातों की जिम्मेदारी परिवार में सबसे ज्यादा महिला ही कभी बेटी बन कर, कभी बीवी बनकर, कभी मां बनकर और कभी बहू बनकर निभाती है. लेकिन सबकी जिम्मेदारियां निभाते-निभाते, सबकी खुशियों व सेहत का ध्यान रखते-रखते वह सबसे जरूरी इंसान को भूल ही जाती है. यानी खुद को. महिला चाहे कम पड़ी लिखी हो , या ज्यादा पढीलिखी हो, ग्रहणी हो या कामकाजी उसकी खुद की सेहत को दुरुस्त रखने का ख्याल या खुद के लिए कुछ करने का ख्याल उसे सबसे बाद में आता है.
आजकल बहुत से लोग सेल्फ लव की बात कहते हैं. यानि सबको खुश रखने से पहले खुद से प्यार करना जरूरी है. यदि आप खुद से प्यार नहीं करती हैं या खुद की देखभाल नहीं रखती हैं तो आप किसी को भी अपना सौ प्रतिशत नहीं दे सकती हैं. सेल्फ लव से मतलब अपना ध्यान रखना या खुद को पैम्पर करना है.
चिकित्सक इस बात की पुष्टि करते हैं ज्यादातर महिलाएं किसी भी प्रकार की समस्या होने पर तब तक चिकित्सक के पास जांच इलाज के लिए आने से कतराती हैं जब उनकी समस्या ज्यादा परेशान ना करने लगे. उत्तराखंड कि महिला रोग विशेषज्ञ डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं आज के समय में जब स्वास्थ्य को लेकर इतनी जागरूकता फैल रही है उसके बाद भी ज्यादातर महिलाएं अभी भी खुद की नियमित जांच को लेकर , अपने खाने के रूटीन को लेकर तथा व्यायाम जैसी गतिविधियों को लेकर काफी लापरवाही बरतती हैं. खासतौर नौकरीपेशा महिलाओं में इस तरह की लापरवाही ज्यादा देखने में आती है, क्योंकि घर और दफ्तर के बीच वो इतना व्यस्त हो जाती हैं कि अपने स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरी बातों की ओर ध्यान ही नहीं देती है.
घर का काम निबटाकर ऑफिस पहुंचने की जल्दी में कई महिलाएं या तो नाश्ता करती ही नहीं है या करती भी हैं, तो वह वह शरीर में पोषण की जरूरत को पूरा नहीं कर पाता है. कुछ ऐसा ही उनके रात के खाने के साथ भी होता है. इसलिए बड़ी संख्या में महिलाओं में सिर्फ आयरन ही नहीं बल्कि कई अन्य प्रकार के जरूरी पोषण की भी कमी पाई जाती है.
बचपन से डालें आदत
डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि घर में बच्चियों को शुरुआत से ही यह सिखाना बहुत जरूरी है कि यदि वे अपना तथा अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखेंगी तो वे किसी का भी ध्यान नहीं रख सकती है. इसके लिए सही समय पर पौष्टिक आहार के सेवन को तथा नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा बनाने की जरूरत के बारे में उन्हें बचपन से दिखाना बहुत जरूरी है. साथ ही उन्हें यह भी सिखाना बहुत जरूरी है कि यदि उन्हें किसी प्रकार की समस्या महसूस हो रही है तो वे उसके बारें में बताएं तथा इलाज लेने में कभी भी लापरवाही ना करें. आहार दिनचर्या जरूरी
डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि ज्यादातर लड़कियां या महिलायें खाने की सही दिनचर्या का पालन नहीं करती है. घर के काम, स्कूल-कालेज की पढ़ाई, नौकरी की भागदौड़ तथा कभी डाइटिंग के नाम पर वे नाश्ते और दिन या रात के खाने को आमतौर पर छोड़ देती हैं और उसके स्थान पर सिर्फ भूख ना लगे इसलिए कुछ भी कभी भी खा लेती हैं. जो शरीर के लिए जरूरी पोषण को प्रभावित करता है. महिलाओं को हर माह मासिक धर्म तथा अन्य कारणों से अपेक्षाकृत ज्यादा पोषण की जरूरत होती है. ऐसे में जरूरी है कि उनके आहार में कैल्शियम, आयरन, विटामिन, प्रोटीन तथा सभी जरूरी खनिज तथा पौष्टिक तत्व जरूरी मात्रा में शामिल हो. इसलिए उनके लिए नियत आहार दिनचर्या तथा सभी समय के भोजन में पौष्टिक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन करना बेहद जरूरी होता है.
जरूरी है नियमित टेस्ट
डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं कि पहले कहा जाता था कि 40 के बाद ना सिर्फ महिलाओं बल्कि पुरुषों को भी नियमित अंतराल पर स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरी जांचे करवाती रहनी चाहिए. लेकिन वर्तमान दौर में जीवनशैली या अन्य कारणों से रोगों तथा रोगियों दोनों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जरूरी हो गया है कि 25 से 30 वर्ष की आयु के बीच नियमित अंतराल तक अपनी सामान्य जांच तथा टेस्ट करवाना शुरू कर देना चाहिए. ऐसे में शरीर में किसी भी प्रकार की समस्या का शुरुआत में ही पता लगाया जा सकता है और समय से उसके इलाज तथा समस्या से बचाव के लिए प्रयास किए जा सकते हैं.
इन जांचों में रक्तचाप की जांच, खून की जांच विशेषकर हीमोग्लोबिन के स्तर की जांच, पेशाब की जांच, थायराइड की जांच, लिपिड टेस्ट, मधुमेह को लेकर जांच , प्रोटीन के स्तर की जांच, मैमोग्राम तथा पैप स्मियर टेस्ट जैसी जांच नियमित अंतराल पर करानी चाहिए.
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डॉ विजयलक्ष्मी बताती हैं हमारे समाज में लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है कि तुम्हें शादी के बाद दूसरे के घर जाना है इसलिए शुरू से ही दूसरों को खुद से ज्यादा तवज्जो देने, उनका ध्यान रखने तथा एडजस्ट करने की सीख दी जाती है. लेकिन इस सीख को सीखते सीखते बचपन से ही बच्चियां खुद को अनदेखा करना शुरू कर देती हैं.
लेकिन लोग भूल जाते हैं यदि महिला खुद स्वस्थ नहीं है तो वह किसी का भी ध्यान नहीं रख सकती है. इसलिए जरूरी हैं कि उसे बचपन से ही सबके बारे में सोचने तथा उनका ध्यान रखने की जरूरत के बारे में सिखाएं लेकिन सबसे पहले उसे अपने आप का ध्यान रखना सिखाएं. क्योंकि एक स्वस्थ तथा खुश महिला ही घर की स्वस्थ धुरी बन सकती है और ना सिर्फ घर परिवार तथा नौकरी व व्यवसाय की सभी जिम्मेदारियों को ढंग से पूरा कर सकती है.
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