75 साल अमृत महोत्सव की कहानी : साबरमती आश्रम, भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु

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Published : Oct 3, 2021, 6:06 AM IST

Updated : Oct 3, 2021, 12:42 PM IST

75 साल अमृत महोत्सव की कहानी
75 साल अमृत महोत्सव की कहानी ()

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी और अहमदाबाद शहर के बीच बहने वाली साबरमती नदी के बीच अनोखा रिश्ता एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु था. दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी जी के मन में अहमदाबाद में एक आश्रम स्थापित करने का विचार आया. इसके बाद 1917 में साबरमती नदी के तट पर आश्रम की स्थापना हुई, जिस समय इस आश्रम की स्थापना हुई उस समय कौन जानता था कि यह आश्रम भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु बन जाएगा.

गुजरात : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी और अहमदाबाद शहर के बीच बहने वाली साबरमती नदी के बीच अनोखा रिश्ता एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु था. दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी जी के मन में अहमदाबाद में एक आश्रम स्थापित करने का विचार आया. इसके बाद 1917 में साबरमती नदी के तट पर आश्रम की स्थापना हुई, जिस समय इस आश्रम की स्थापना हुई उस समय कौन जानता था कि यह आश्रम भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु बन जाएगा.

'दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल. इस प्रसिद्ध गीत में महात्मा गांधी के बारे में बताया गया है, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, उन्हें साबरमती के संत के रूप में सम्मानित किया गया.

75 साल अमृत महोत्सव की कहानी

महात्मा गांधी और साबरमती नदी का एक अनोखा रिश्ता है. दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद गांधीजी ने अहमदाबाद में एक आश्रम बनाने का निश्चय किया. उन्होंने 1917 में साबरमती आश्रम की स्थापना की.हालांकि, साबरमती आश्रम से पहले वह दो साल तक कोचरब आश्रम में रहे.

प्रेमचंदभाई ने नदी तट पर एक आश्रम के लिए 2,556 रुपये में 1 एकड़ जमीन दी थी. जैसे ही साबरमति आश्रम बनकर तैयार हुआ, तो वह कोचरब आश्रम से साबरमति में शिफ्ट हो गए.

इतिहासकार डॉ मानेकभाई पटेल कहते हैं कि एक आश्रम जो अपने समाज के साथ विकसित हो सकता है, यह गांधीजी का विचार था. साबरमती नदी के शांत किनारे ने बापू के विचार को पूरा किया. उन्हें साबरमती आश्रम का स्थान बहुत अच्छा लगा.

गांधीजी ने उस समय यह भी कहा था कि यह स्थान एक आश्रम के लिए उत्तम है, क्योंकि इसके एक ओर श्मशान है और दूसरी ओर कारागार है.

अतः इस आश्रम में आने वाला सत्याग्रही के पास केवल 2 विकल्प हैं. सत्याग्रह करके जेल जाने के लिए तैयार रहें, अन्यथा सत्याग्रह के माध्यम से बलिदान के लिए तैयार रहें.

गांधी आश्रम के निदेशक अतुल पंड्या का कहना है कि सादगी बापू के जीवन का पर्याय है और इसकी झलक गांधी आश्रम में भी देखने को मिलती है. वहीं इस आश्रम की अवधारणा में सामूहिक कार्यों पर विशेष ध्यान दिया जाता था.

गांधी आश्रम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जिसे हृदयकुंज कहा जाता है. यह हृदय कुंज गांधीजी का निवास है और इसके नामकरण के पीछे एक खास किस्सा है.

अतुल पंड्या का कहना है कि 'हृदय कुंज' नाम काकासाहेब कालेलकर ने दिया था. उनका मानना था कि गांधीजी आश्रम के हृदय थे. इसलिए जिस स्थान पर वे रहते थे उसका नाम 'हृदय कुंज' रखा जाना चाहिए.

गांधीजी के हृदयकुंज में एक अलग शयनकक्ष नहीं था. वह बरामदे (गलियारा) में रेंटियो (चरखा) की कताई करते और हृदयकुंज में ही सो जाते.

उन्होंने बताया कि जैसा कि हम सभी जानते हैं, गांधीजी के जीवन में प्रार्थना का एक अनूठा महत्व था और आश्रम की दैनिक दिनचर्या सुबह 4:30 बजे से शुरू होकर शाम को वहीं समाप्त होती थी. शाम की बैठक में आश्रम का दिन और अगले दिन क्या करना है? इस बात पर चर्चा होती.

हृदयकुंज के पास एक प्रार्थना सभा का है, जहां शाम की बैठक के बाद आश्रम के दिन के कामकाज और अगले दिन क्या करें ? इस पर चर्चा होती.

गांधीजी उस समय सभी के लिए एक वैश्विक प्रतिभा थे. साबरमती आश्रम में देश-विदेश से कई लोग उनसे मिलने आते. हालांकि, आश्रम के नियम सभी के लिए समान रहे हैं.

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इतिहासकार मानेकभाई पटेल कहते हैं कि इंग्लैंड में रहने वाली मीराबाई गांधीजी से इतनी प्रेरित थीं कि उन्होंने इंग्लैंड से भारत आने और गांधीजी के साथ आश्रम में रहने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने अपनी परिधान भी पूरी तरह से बदल दिए और खादी बनाने के लिए चरखा घूमना भी सीखा. यह आश्रम केवल गांधीजी या अन्य सत्याग्रहियों की शरणस्थली नहीं था.

स्वतंत्रता संग्राम में आश्रम का महत्वपूर्ण स्थान था. यह राष्ट्रीय जागरूकता और सामाजिक परिवर्तन के कई आंदोलनों की शुरुआत था. साबरमती आश्रम में वर्तमान में 165 भवन हैं. गांधीजी के निधन के बाद आश्रम में 'माई लाइफ इज माई मैसेज' गैलरी की स्थापना की गई. इस गैलरी में बापू के बचपन से लेकर उनकी अंतिम यात्रा तक की जीवन शैली को दर्शाया गया है.

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इस आश्रम को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य लोगों को 'आत्मनिर्भर' बनाने के साथ-साथ स्वदेशी चीजों को अपनाना था. वहीं गांधी के निधन के बाद उनकी याद में इस आश्रम में बापू संग्रहालय बनाया गया है, जिसमें उनकी यादों को गांधीजी के चश्मे, पानी पीने के बर्तन और उनकी लाठी के साथ-साथ रेंटिया (कताई का चरखा) को उकेरा गया है.

Last Updated :Oct 3, 2021, 12:42 PM IST
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