ETV Bharat / bharat

पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसी राजू का निधन

देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पोते और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसी राजू का शनिवार को निधन हो गया. वह 1978 बैच के अधिकारी थे. वह अविवाहित थे. स्वास्थ्य विभाग में उनकी छवि काफी सख्त और ईमानदार अधिकारी की थी.

Etv bharat
केशव देसी राजू
author img

By

Published : Sep 5, 2021, 1:14 PM IST

Updated : Sep 5, 2021, 3:59 PM IST

हैदराबाद : देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व स्वास्थ्य सचिव केशव देसीराजू का शनिवार को निधन हो गया. वह उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी थे. उत्तराखंड कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू उत्तराखंड के इतिहास में अब तक के सबसे ईमानदार और जन भावनाओं से जुड़े अधिकारी माने जाते हैं. उत्तराखंड के जनमानस पर आज भी उनकी ईमानदारी की छवि बरकरार है.

उत्तराखंड कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू उत्तराखंड के इतिहास में अब तक के सबसे ज्यादा ईमानदार और जन भावनाओं से जुड़े अधिकारी थे. वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा बताते हैं कि वह उनके करीबियों में से एक थे. उनके निधन की सूचना से उत्तराखंड के लोग स्तब्ध हैं. केशव देसी राजू की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि उत्तराखंड के अब तक के इतिहास में देसीराजू सबसे ईमानदार और जमीनी मूल्यों को समझने वाले अधिकारी थे. वह वर्ष 1988 से 1990 तक अल्मोड़ा के डीएम रहे. उनके निधन की सूचना पर राजनीतिज्ञ एवं समाजसेवियों ने दुख जताया है.

Etv bharat
केशव देसी राजू, पूर्व स्वास्थ्य सचिव

108 एंबुलेंस सेवा स्थापना में वजीर की भूमिका में देसी राजू

उत्तराखंड में एमरजेंसी सेवा 108 की स्थापना का श्रेय भले ही राजनेताओं ने लिया हो. लेकिन केशव देसी राजू के साथ काम करने वाले बताते हैं कि 108 को उत्तराखंड में स्थापित करने की पूरी रणनीति और दूरदर्शिता केशव देसीराजू की ही थी. केशव देसीराजू को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह उत्तराखंड के विषम भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ थे और यहां के पहाड़ जैसे जीवन से भी वह बहुत करीबी नाता रखते थे.

यही वजह थी कि 108 जैसी सर्विस को दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने के लिए एक विजन रखा और उसको अमलीजामा पहनाया. साल 2008 में शुरू हुई 108 सेवा के तत्कालीन संचालन करने वाली कंपनी EMRI के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप नौटियाल बताते हैं कि पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसीराजू एक मानवीय दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे और 108 की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

भवाली टीबी सेनेटोरियम नहीं बिकने दिया

साल 1950 के बाद उत्तराखंड के भवाली में टीबी के मरीजों के लिए बनाए गए सेनेटोरियम को बिकने नहीं दिया. राजनीतिक दबाव के कारण एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर तो कर दिए, लेकिन आज भी उन्हीं की वजह से यह मामला कोर्ट में अटका हुआ है. हिमानी कंपनी को भवाली टीबी हॉस्पिटल नहीं मिल पाया है.

बता दें, नैनीताल जनपद के भवाली में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1912 में टीबी सेनेटोरियम अस्पताल की स्थापना की थी. पंडित नेहरू ने इस अस्पताल को तब बनाया था, जब देश में टीबी एक महामारी के रूप में थी और लाइलाज बीमारी मानी जाती थी.

उस वक्त बड़े लोग टीबी के इलाज के लिए देश के बाहर चले जाते थे. लेकिन आम जनता के लिए कोई सुविधा नहीं थी. इस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन को टीबी हुआ और डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने भवाली में मौजूद बांज के जंगलों के बीच टीबी रोगियों के अनुकूल वातावरण वाली जगह पर टीबी अस्पताल की स्थापना की.

भवाली टीबी सेनेटोरियम की शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन के बहाने की गई. लेकिन इस अस्पताल में देश के न जाने कितने हजार लोग ठीक हुए. इस लिहाज से यह उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश की भी एक बड़ी धरोहर थी. यही बात उस समय के तत्कालीन प्रमुख सचिव स्वास्थ्य केशव देसीराजू के जेहन में थी. लेकिन इस अस्पताल को राजनीतिक दबाव के कारण हिमानी कंपनी को सुपुर्द किया जा रहा था, जो कि केशव देसीराजू को बिल्कुल भी रास नहीं आया. राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें एग्रीमेंट पर साइन तो करना पड़ा. लेकिन उनका जहन बिल्कुल भी इस बात के लिए राजी नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि लगातार इसी तरह के दबाव के चलते वह उत्तराखंड से दिल्ली चले गए और केंद्र में वह 2010 में सचिव स्वास्थ्य के पद पर नियुक्त हुए.

जमीन से जुड़े हुए अधिकारी थे

अल्मोड़ा नगर पालिका अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी ने उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि केशव देसीराजू एक विद्वान अधिकारी थे. वह एक डीएम होने के बाद भी हमेशा पढ़ाई के प्रति तत्पर रहते थे. अपना कामकाज निपटाने के बाद खाली समय में वह किताबें पढ़ते रहते थे. वह एक जमीन से जुड़े हुए अधिकारी थे. अपने डीएम के कार्यकाल में उन्होंने गांव-गांव पैदल भ्रमण कर ग्रामीणों की समस्याओं को करीब से जाना और निदान की कोशिश की. प्रकाश चंद्र जोशी ने बताया कि केशव देसीराजू के पिता का यहीं अल्मोड़ा में निधन हुआ था. तब वह पैदल बिना पांव में चप्पल पहने लगभग 10 किलोमीटर शवयात्रा के साथ विश्वनाथ घाट तक गए थे.

केशव देसीराजू यूं तो दक्षिण भारत से ताल्लुक रखते थे. लेकिन अपने कार्यकाल का अधिकांश समय उन्होंने पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में ही बिताया था. यही कारण था कि उन्हें पहाड़ से विशेष लगाव था. इसी पहाड़ प्रेम के चलते उन्होंने अल्मोड़ा के लमगड़ा ब्लॉक के पौधार के पास अपने लिए एक आलीशान कोठी भी बनवाई थी.

2016 में हुए थे सेवानिवृत्त

यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान 2014 में उनके तबादले को लेकर विवाद हो गया था. उस समय वह केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव थे. विवाद इस बात को लेकर था कि बिना अगले स्वास्थ्य सचिव का नाम क्लियर हुए ही, उन्हें पद से हटा दिया गया था. वह इस पद पर मात्र एक साल तक रहे थे. यही सवाल जब पूर्व कैबिनेट सचिव टीएस सुब्रमण्यम से पूछा गया था, तो उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन बताया था. कोर्ट के अनुसार सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर तैनाती के बाद उनका कार्यकाल दो साल का होना चाहिए. हालांकि, यही सवाल जब देसीराजू से पूछा गया तो उन्होंने इसे बहुत अधिक तूल नहीं दिया. उन्होंने कहा था कि तबादला तो रूटिन मामला होता है.

उस समय की मीडिया रिपोर्ट बताती है कि उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के कई फैसलों पर आपत्ति जताई थी. इन्हीं में से एक फैसला था- इंडियन मेडिकल काउंसल में डॉ. केतन देसाई की वापसी. देसाई पर 2010 में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. सीबीआई ने उनकी गिरफ्तारी की थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रायबरेली में एम्स खोलने की घोषणा होने के बाद बहुत सारे क्लियरेंस की जरूरत थी. देसीराजू एक सख्त अधिकारी थे. इसलिए उन्होंने पूरा ब्योरा मांगा. इस फैसले से भी स्वास्थ्य मंत्री थोड़े असहज थे.

देसीराजू ने स्वास्थ्य विभाग में 2010 में बतौर अतिरिक्त सचिव ज्वाइन किया था. 2012 में उनका प्रमोशन स्पेशल सेकेट्री के तौर पर किया गया था. एक साल तक स्वास्थ्य सचिव रहे. उसके बाद स्वास्थ्य सचिव पद से हटाकर उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग में भेज दिया गया था. यहीं से वह 2016 में रिटायर हुए. रिटायरमेंट के बाद वह पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन बने थे. उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र से एमएए किया था. पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में जॉन एफ कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्मेंट से एमए की डिग्री ली थी.

पढ़ेंः राष्ट्रपति कोविंद ने 44 शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया

हैदराबाद : देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के पोते और पूर्व स्वास्थ्य सचिव केशव देसीराजू का शनिवार को निधन हो गया. वह उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी थे. उत्तराखंड कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू उत्तराखंड के इतिहास में अब तक के सबसे ईमानदार और जन भावनाओं से जुड़े अधिकारी माने जाते हैं. उत्तराखंड के जनमानस पर आज भी उनकी ईमानदारी की छवि बरकरार है.

उत्तराखंड कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी केशव देसी राजू उत्तराखंड के इतिहास में अब तक के सबसे ज्यादा ईमानदार और जन भावनाओं से जुड़े अधिकारी थे. वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा बताते हैं कि वह उनके करीबियों में से एक थे. उनके निधन की सूचना से उत्तराखंड के लोग स्तब्ध हैं. केशव देसी राजू की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि उत्तराखंड के अब तक के इतिहास में देसीराजू सबसे ईमानदार और जमीनी मूल्यों को समझने वाले अधिकारी थे. वह वर्ष 1988 से 1990 तक अल्मोड़ा के डीएम रहे. उनके निधन की सूचना पर राजनीतिज्ञ एवं समाजसेवियों ने दुख जताया है.

Etv bharat
केशव देसी राजू, पूर्व स्वास्थ्य सचिव

108 एंबुलेंस सेवा स्थापना में वजीर की भूमिका में देसी राजू

उत्तराखंड में एमरजेंसी सेवा 108 की स्थापना का श्रेय भले ही राजनेताओं ने लिया हो. लेकिन केशव देसी राजू के साथ काम करने वाले बताते हैं कि 108 को उत्तराखंड में स्थापित करने की पूरी रणनीति और दूरदर्शिता केशव देसीराजू की ही थी. केशव देसीराजू को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह उत्तराखंड के विषम भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ थे और यहां के पहाड़ जैसे जीवन से भी वह बहुत करीबी नाता रखते थे.

यही वजह थी कि 108 जैसी सर्विस को दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने के लिए एक विजन रखा और उसको अमलीजामा पहनाया. साल 2008 में शुरू हुई 108 सेवा के तत्कालीन संचालन करने वाली कंपनी EMRI के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप नौटियाल बताते हैं कि पूर्व आईएएस अधिकारी केशव देसीराजू एक मानवीय दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे और 108 की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

भवाली टीबी सेनेटोरियम नहीं बिकने दिया

साल 1950 के बाद उत्तराखंड के भवाली में टीबी के मरीजों के लिए बनाए गए सेनेटोरियम को बिकने नहीं दिया. राजनीतिक दबाव के कारण एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर तो कर दिए, लेकिन आज भी उन्हीं की वजह से यह मामला कोर्ट में अटका हुआ है. हिमानी कंपनी को भवाली टीबी हॉस्पिटल नहीं मिल पाया है.

बता दें, नैनीताल जनपद के भवाली में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1912 में टीबी सेनेटोरियम अस्पताल की स्थापना की थी. पंडित नेहरू ने इस अस्पताल को तब बनाया था, जब देश में टीबी एक महामारी के रूप में थी और लाइलाज बीमारी मानी जाती थी.

उस वक्त बड़े लोग टीबी के इलाज के लिए देश के बाहर चले जाते थे. लेकिन आम जनता के लिए कोई सुविधा नहीं थी. इस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन को टीबी हुआ और डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने भवाली में मौजूद बांज के जंगलों के बीच टीबी रोगियों के अनुकूल वातावरण वाली जगह पर टीबी अस्पताल की स्थापना की.

भवाली टीबी सेनेटोरियम की शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन के बहाने की गई. लेकिन इस अस्पताल में देश के न जाने कितने हजार लोग ठीक हुए. इस लिहाज से यह उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश की भी एक बड़ी धरोहर थी. यही बात उस समय के तत्कालीन प्रमुख सचिव स्वास्थ्य केशव देसीराजू के जेहन में थी. लेकिन इस अस्पताल को राजनीतिक दबाव के कारण हिमानी कंपनी को सुपुर्द किया जा रहा था, जो कि केशव देसीराजू को बिल्कुल भी रास नहीं आया. राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें एग्रीमेंट पर साइन तो करना पड़ा. लेकिन उनका जहन बिल्कुल भी इस बात के लिए राजी नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि लगातार इसी तरह के दबाव के चलते वह उत्तराखंड से दिल्ली चले गए और केंद्र में वह 2010 में सचिव स्वास्थ्य के पद पर नियुक्त हुए.

जमीन से जुड़े हुए अधिकारी थे

अल्मोड़ा नगर पालिका अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी ने उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि केशव देसीराजू एक विद्वान अधिकारी थे. वह एक डीएम होने के बाद भी हमेशा पढ़ाई के प्रति तत्पर रहते थे. अपना कामकाज निपटाने के बाद खाली समय में वह किताबें पढ़ते रहते थे. वह एक जमीन से जुड़े हुए अधिकारी थे. अपने डीएम के कार्यकाल में उन्होंने गांव-गांव पैदल भ्रमण कर ग्रामीणों की समस्याओं को करीब से जाना और निदान की कोशिश की. प्रकाश चंद्र जोशी ने बताया कि केशव देसीराजू के पिता का यहीं अल्मोड़ा में निधन हुआ था. तब वह पैदल बिना पांव में चप्पल पहने लगभग 10 किलोमीटर शवयात्रा के साथ विश्वनाथ घाट तक गए थे.

केशव देसीराजू यूं तो दक्षिण भारत से ताल्लुक रखते थे. लेकिन अपने कार्यकाल का अधिकांश समय उन्होंने पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में ही बिताया था. यही कारण था कि उन्हें पहाड़ से विशेष लगाव था. इसी पहाड़ प्रेम के चलते उन्होंने अल्मोड़ा के लमगड़ा ब्लॉक के पौधार के पास अपने लिए एक आलीशान कोठी भी बनवाई थी.

2016 में हुए थे सेवानिवृत्त

यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान 2014 में उनके तबादले को लेकर विवाद हो गया था. उस समय वह केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव थे. विवाद इस बात को लेकर था कि बिना अगले स्वास्थ्य सचिव का नाम क्लियर हुए ही, उन्हें पद से हटा दिया गया था. वह इस पद पर मात्र एक साल तक रहे थे. यही सवाल जब पूर्व कैबिनेट सचिव टीएस सुब्रमण्यम से पूछा गया था, तो उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन बताया था. कोर्ट के अनुसार सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर तैनाती के बाद उनका कार्यकाल दो साल का होना चाहिए. हालांकि, यही सवाल जब देसीराजू से पूछा गया तो उन्होंने इसे बहुत अधिक तूल नहीं दिया. उन्होंने कहा था कि तबादला तो रूटिन मामला होता है.

उस समय की मीडिया रिपोर्ट बताती है कि उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के कई फैसलों पर आपत्ति जताई थी. इन्हीं में से एक फैसला था- इंडियन मेडिकल काउंसल में डॉ. केतन देसाई की वापसी. देसाई पर 2010 में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. सीबीआई ने उनकी गिरफ्तारी की थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रायबरेली में एम्स खोलने की घोषणा होने के बाद बहुत सारे क्लियरेंस की जरूरत थी. देसीराजू एक सख्त अधिकारी थे. इसलिए उन्होंने पूरा ब्योरा मांगा. इस फैसले से भी स्वास्थ्य मंत्री थोड़े असहज थे.

देसीराजू ने स्वास्थ्य विभाग में 2010 में बतौर अतिरिक्त सचिव ज्वाइन किया था. 2012 में उनका प्रमोशन स्पेशल सेकेट्री के तौर पर किया गया था. एक साल तक स्वास्थ्य सचिव रहे. उसके बाद स्वास्थ्य सचिव पद से हटाकर उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग में भेज दिया गया था. यहीं से वह 2016 में रिटायर हुए. रिटायरमेंट के बाद वह पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन बने थे. उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र से एमएए किया था. पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में जॉन एफ कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्मेंट से एमए की डिग्री ली थी.

पढ़ेंः राष्ट्रपति कोविंद ने 44 शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया

Last Updated : Sep 5, 2021, 3:59 PM IST

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.