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सेहत का खजाना है सीताफल... आदिवासियों को नहीं मिल रहा मेहनताना, नेशनल हाईवे पर बेचने को मजबूर

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 4, 2023, 10:49 AM IST

Updated : Nov 4, 2023, 1:02 PM IST

Custard Apple Sitaphal: सेहत का खजाना कहे जाने वाले सीताफल को छिंदवाड़ा के आदिवासियों को बाजार तक पहुंचाने का मेहनताना भी नहीं मिल पा रहा है, यही वजह है कि अब आदिवासियों को सीताफल बेचने के लिए नेशनल हाईवे का सहारा लेना पड़ रहा है.

Custard Apple Sitaphal
सेहत का खजाना है सीताफल

सीताफल बेचने के लिए नेशनल हाईवे का सहारा

छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा के आदिवासी अंचल का सीताफल जिसे शरीफा भी कहा जाता है, भले ही वह देश भर के अलग-अलग शहरों में अपनी मिठास बिखेर रहा है, लेकिन उसे बाजार तक पहुंचाने वाले आदिवासियों की दिनभर की मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो रहा है. सेहत के लिए खजाना कहे जाने वाले फल को बेचने के लिए अब आदिवासियों को नेशनल हाईवे का सहारा लेना पड़ रहा है, देखें रिपोर्टर महेंद्र राय की खास रिपोर्ट-

सीताफल बेचने के लिए नेशनल हाईवे का सहारा: छिंदवाड़ा से भोपाल को जाने वाले नेशनल हाईवे के किनारे बाजार सांवरी गांव से दुनावा के बीच सैकड़ों की संख्या में सीताफल के टोकरे लेकर बैठे आदिवासी नजर आते हैं, उम्मीद होती है कि कोई रास्ते पर चलने वाले यात्री रुककर सीताफल खरीद लें, जिससे कुछ पैसों का जुगाड़ हो सके. हालांकि बाजार सांवरी में शुक्रवार को लगने वाले साप्ताहिक बाजार के दिन देश के कई शहरों से सीताफल की खरीददार यहां पर पहुंचते हैं और आदिवासियों से कम दामों में सीताफल खरीद कर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और कोलकाता लेकर जाते हैं. सीताफल के लिए कोई मंडी नहीं होने की वजह से ग्रामीण आदिवासी इसे बाजारों में या फिर सड़क के किनारे बैठकर ही बेचते हैं.

सीताफल की मजदूरी निकलना भी मुश्किल: बाजारों में सीताफल लाकर बेचने वाले आदिवासी बताते हैं कि इलाके में जंगल बहुत अधिक है, वहीं पर सीताफल की फसल होती है. दिनभर वे सीताफल जंगलों में तोड़ते हैं, मुश्किल से एक व्यक्ति 2 या 3 टोकरी सीताफल बाजार ला पाते है. एक टोकरे में करीब 40 से 50 फल होते हैं और एक टोकरी का दाम महज 100 रुपये मिलता है. दिन भर की मजदूरी निकलना भी आदिवासियों के लिए मुश्किल होता है, जंगलों में सीताफल के पेड़ होने की वजह से कोई भी स्थानीय आदिवासी आसानी से फल तोड़ सकता है, हालांकि कुछ जगहों पर ग्राम वन समिति होती है, जो जंगलों का ठेका भी देती हैं.

हर दिन 5 से 6 ट्रक सीताफल का होता है उत्पादन: छिंदवाड़ा जिले में पूर्व पश्चिम और दक्षिण तीन वनमंडल हैं, जिसमें सबसे ज्यादा सीताफल के पेड़ पश्चिमी वन मंडल में है. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सीताफल तोड़ने का काम ग्रामीण आदिवासी और कुछ वन समितियां करती हैं, उनके पास उत्पादन का पुख्ता आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन हर दिन 5 से 6 ट्रक सीताफल का उत्पादन होता है. 15 से 20 दिनों तक सीताफल का मुख्य सीजन होता है, जिसमें तीनों वन मंडलों को मिलाकर करीब 100 से 120 ट्रक तक सीताफल का उत्पादन होता है.

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छपारा को एक जिला एक उत्पाद स्कीम में किया गया शामिल: छिंदवाड़ा के पड़ोसी जिले सिवनी के छपारा में भी सीताफल बहुत अधिक मात्रा में होता है, केंद्र सरकार की एक जिला एक उत्पाद स्कीम के तहत सिवनी जिले में सीताफल को शामिल किया गया है. इतना ही नहीं सिवनी के छपारा के सीताफल को जम्बो सीताफल के नाम से भी जाना जाता है, जिनकी डिमांड देश ही नहीं विदेशों में भी है.

सेहत के लिए है रामबाण है सीताफल: वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि "सीताफल स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ में यह सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है. सीताफल डाइजेशन सिस्टम को ठीक रखने का महत्वपूर्ण साधन है, सीताफल में कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जिसमें फाइवर, विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स होते हैं. सीताफल गर्भावस्था में खाए जाने के लिए सबसे बेहतर फल होता है.

Last Updated :Nov 4, 2023, 1:02 PM IST
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