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भारत सहित पूरी दुनिया के बारिश के पैटर्न में आ रहा बदलाव

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Published : Sep 10, 2021, 8:41 PM IST

भारत सहित पूरी दुनिया के बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर निर्भर है, और हमारा कृषि क्षेत्र, वर्षा पर निर्भर करता है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

बारिश के पैटर्न
बारिश के पैटर्न

हैदराबाद : भारत सहित पूरी दुनिया के बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर निर्भर है, और हमारा कृषि क्षेत्र, वर्षा पर निर्भर करता है. यही वजह है कि नदियों के प्रवाह, बर्फ के क्षरण के अलावा पहाड़ों के झरनों पर इसका असर पड़ रहा है. इस कारण लोगों की आजीविका में विशेष रूप से कृषि और मछली पकड़ने, वनस्पति विकास के अलावा पशु और पक्षियों के आवास पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है.

इस सिलसिले में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान हाल के 30 वर्षों (1989- 2018) आंकड़ों के आधार पर राज्य और जिला स्तर पर 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर के दौरान मानसूनी वर्षा की परिवर्तनशीलता और परिवर्तनों का विश्लेषण किया है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक पांच राज्यों, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड ने हाल के 30 वर्षों की अवधि (1989-2018) के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में काफी कमी देखी गई है. इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश राज्यों में भी होने वाली वार्षिक वर्षा में कमी आई है. हालांकि अन्य राज्यों में इसी अवधि के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिखाई दिया.

वहीं जिलेवार बारिश में 30 वर्षों की अवधि के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून और वार्षिक वर्षा में भी कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले हैं. इसमें भारी वर्षा के दिनों में सौराष्ट्र और कच्छ, राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भागों, तमिलनाडु के उत्तरी भागों, आंध्र प्रदेश के उत्तरी भागों और दक्षिण-पश्चिम ओडिशा के आसपास के क्षेत्रों, छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों के अलावा दक्षिण पश्चिम मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मणिपुर और मिजोरम, कोंकण और गोवा और उत्तराखंड में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई.

बारिश का बदलता स्वरूप
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के द्वारा 1961-2010 की अवधि में उस अंतराल के लिए औसत वर्षा के साथ तुलना करके किसी भी अंतराल में वर्षा को मापा जाता है. इसे लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) भी कहा जाता है. मानसून सीजन के पहले महीने (जून-सितंबर) के बाद इस साल वर्षा सामान्य श्रेणी पर आकर स्थिर है. भारत मौसम विज्ञान विभाग सामान्य से 20 फीसदी अधिक बारिश होने पर अधिक और 20 फीसदी से कम बारिश होने पर उसे कम बारिश मानता है. हालांकि बारिश का सीजन खत्म होने में सिर्फ एक महीना बचा है, ऐसे में इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना है. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि औसत उतार-चढ़ाव के आंकड़े की प्रवृत्ति के जलवायु संकट की वजह से और स्पष्ट हो जाएगी.

बताया जाता है कि मानसून के 92 दिनों में 31 अगस्त तक, 34 दिनों में वर्षा कम हुई थी, जिसमें ये कमीं कहीं 20 फीसदी तो कहीं पर 61 फीसदी तक थी. हालांकि भारत के भारत के अधिकांश राज्यों में 50 फीसदी से कम बारिश हुई है. हालांकि बारिश का सीजन खत्म होने में सिर्फ एक महीना बचा है, ऐसे में इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना है. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि औसत उतार-चढ़ाव के आंकड़े की प्रवृत्ति के जलवायु संकट की वजह से और स्पष्ट हो जाएगी.

बताया जाता है कि मानसून के 92 दिनों में 31 अगस्त तक, 34 दिनों में वर्षा कम हुई थी, जिसमें ये कमीं कहीं 20 फीसदी तो कहीं पर 61 फीसदी तक थी. हालांकि भारत के भारत के अधिकांश राज्यों में 50 फीसदी से कम बारिश हुई है. इस वजह से कई स्थानों पर सूखे की स्थिति भी हो सकती है. वहीं असम, बिहार, झारखंड पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भारी बारिश में वृद्धि नहीं देखी गई है.

वर्षा का पैटर्न क्यों और कैसे बदल रहा है?

ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया की जलवायु बदल रही है और इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है. इसका प्रभाव बारिश पर भी पड़ रहा है. जलवायु और कृषि के बीच सीधा संबंध है, उसी तरह बारिश और कृषि के बीच एक संबंध है. इसलिए जब बारिश का पैटर्न बदलता है तो इसका असर सीधे तौर पर दुनिया भर में फसल पैटर्न पर पड़ता है. वहीं ओजोन परत के ह्रास के कारण वातावरण में अधिक गर्मी व गैस का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव डालती हैं, जिनसे बारिश या बारिश के पैटर्न पर प्रभाव पड़ता है.

वैज्ञानिकों का अनुमान है ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप गर्म हवा अधिक जल वाष्प में फंस जाती है इस वजह से पृथ्वी के कुछ हिस्से कम तो कुछ हिस्से में अधिक बारिश होती है.

वर्षा और कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

भारत में कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है. इस कारण अधिक तापमान होने से फसल की पैदावार जहां कम होती है वहीं दूसरी तरफ इससे खरपतवार और कीट प्रसार को बढ़ावा मिलता है. साथ ही तापमान में वृद्धि और पानी की उपलब्धता में बदलाव दोनों के कारण जलवायु परिवर्तन का कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में सिंचित फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. जबकि वर्षा आधारित कृषि मुख्य रूप से वर्षा परिवर्तनशीलता और वर्षा के दिनों की संख्या में कमी की वजह से प्रभावित होगी. नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) परियोजना के तहत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के विश्लेषण में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन से खासकर चावल, गेहूं और मक्का जैसी फसलों की पैदावार प्रभावित होने की उम्मीद है.

भारत में 30 अगस्त तक औसत कुल मानसून वर्षा (मिमी)

वर्ष औसत कुल वर्षा

  • 1901-1910 : 663.5
  • 1911-1920 : 665.3
  • 1921-1930 : 679.2
  • 1931-1940 : 721.4
  • 1941-1950 : 718.9
  • 1951-1960 : 696.1
  • 1961-1970 : 674.8
  • 1971-1980 : 699.7
  • 1981-1990 : 688.4
  • 1991-2000 : 687.7
  • 2001-2010 : 665
  • 2011-2020 : 688.9
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