100 साल पुराना काल भैरव का दरबार, लगती है यहां दीन-दुखियों की अर्जी, बिना चमत्कार होता है समाधान

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Published : Mar 1, 2023, 5:08 PM IST

Sagar Kaal Bhairav Darbar

आज पूरे देश में साधु सन्यासी और बाबाओं के दरबारों की चर्चा छिड़ी हुई है. खासकर बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री का दिव्य दरबार, तो पंडोखर सरकार के दरबार पर्ची व्यवस्था को लेकर चर्चाओं में हैं. लेकिन हम आज आपको सागर के एक गांव में भरे जाने वाले ऐसे दरबार के बारे में बता रहे हैं,जो पिछले 100 साल से ज्यादा समय से चल रहा है और इस दरबार में हर रविवार को हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं और अपनी परेशानियों से निजात पाते हैं.

यहां लगती है दीन-दुखियों की अर्जी

सागर। एमपी में इस दरबार को काल भैरव का दरबार कहा जाता है. यहां ना पर्ची लगती है, ना आरजी लगती है. बाबा काल भैरव एक लोहे की कड़ी के जरिए लोगों की समस्याएं सुनते हैं और काल भैरव के आशीर्वाद से उनकी समस्याओं का निराकरण करते हैं. हर दरबार की तरह एक दरबार में भी दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. अपनी आस्था और विश्वास के जरिए समस्याओं से निजात पाते हैं. चौथी पीढ़ी में काल भैरव दरबार के माध्यम से मानव सेवा कर रहे पंडित महेश से तिवारी खुद कहते हैं कि हमारे दरबार में चमत्कार खुद कुछ नहीं है. सिर्फ काल भैरव महाराज के आशीर्वाद से लोगों की सेवा की जाती है.

काल भैरव दरबार का इतिहास: काल भैरव दरबार की बात करें तो सागर से गुजरने वाले देश के सबसे लंबे हाईवे नेशनल हाईवे- 44 पर सागर से 25 किमी दूर खेजरा गांव में यह दरबार भरता है. यहीं पर महाकाल मंदिर की हूबहू प्रतिकृति भी तैयार की जा रही है. इस दरबार के बारे में कहा जाता है कि 1904 में इस दरबार की शुरुआत पंडित हरिप्रसाद तिवारी द्वारा की गई थी. हर प्रसाद तिवारी के बाद पीढ़ी दर पीढ़ी दरबार की परंपरा चली आ रही है. आज इस दरबार में पंडित महेश तिवारी दीन दुखियों की समस्याओं का निराकरण करते हैं.

Sagar Kaal Bhairav Darbar Story
बिना चमत्कार होता है समाधान

दरबार में समस्याओं का निराकरण: 100 साल से ज्यादा पुराने काल भैरव के दरबार का नजारा दूसरे दरबार की तरह होता है. यहां लोग अपनी तरह-तरह की समस्याएं लेकर आते हैं. कोई बीमारी से परेशान हैं, तो कोई प्रेत बाधा से परेशान. किसी की नौकरी नहीं लग रही, तो किसी की शादी नहीं हो रही. कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से ग्रसित है और कई जगह इलाज करा चुका है, लेकिन आराम नहीं मिला है. इस तरह के लोग सिर्फ सागर या आसपास के इलाकों से नहीं बल्कि दूर-दूर से इस दरबार में पहुंचते हैं. अपनी समस्या के निराकरण की अर्जी लगाते हैं.

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बाबा के दरबार की चर्चा

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दरबार में पहुंचने वाले लोगों का बयान: छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा से अपनी सास को दरबार में लेकर पहुंचे अनिल कुमार बताते हैं कि उनकी सास लकवा ग्रस्त हैं. कई जगह इलाज कराया, लेकिन आराम नहीं मिला. उन्हें काल भैरव के दरबार के बारे में पता चला, तो वह तीन बार यहां आ चुके हैं और उनकी सास को काफी आराम भी मिला है. पहले लकवा के कारण उनकी सास बिस्तर पर पड़ी रहती थी और दो लोगों की मदद से उन्हें उठाना बिठाना पड़ता था. अब छड़ी के सहारे खड़ी हो जाती हैं और कोई परेशानी नहीं होती है.

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काल भैरव का दरबार

बाबा के आशीर्वाद से बने डॉक्टर: इसी तरह रूप से एमबीबीएस करने वाले डॉ. अजय ठाकुर बताते हैं कि, रूस से एमबीबीएस करने के बाद भारत में प्रैक्टिस करने के लिए एक परीक्षा देनी पड़ती है. इस बार में परीक्षा दे रहा था, तो अंतिम प्रयास था. 'मैं पहले दो बार परीक्षा दे चुका हूं. पहली बार परीक्षा का पेपर बहुत अच्छा गया था, लेकिन मैं परीक्षा में पास नहीं हुआ. दूसरी बार आखिरी मौका था क्योंकि आगे परीक्षा और कठिन होने वाली थी. इस बार मेरा पेपर अच्छा नहीं गया, फिर मैं गुरुजी के पास दरबार में आया और अपना निवेदन किया. तो गुरु जी ने आश्वस्त किया कि मैं परीक्षा में पास हो जाऊंगा. पेपर खराब होने के बाद भी में परीक्षा में पास हो गया. गुरु जी को धन्यवाद करने आया हूं'

दरबार के गुरु जी की दलील: अपने परिवार की चौथी पीढ़ी में काल भैरव दरबार के माध्यम से मानव सेवा कर रहे पंडित भरत तिवारी का कहना है कि दरबार 1904 में प्रारंभ हुआ था. मेरे पितामह हरपसाद, मेरे दादा शिवराम, मेरे पिता अमृत प्रसाद और चौथी पीढ़ी में में मानव सेवा कर रहा हूं. मेरे पूर्वजों ने बताया था कि मेरे पितामह हरपसाद तिवारी के लिए भगवान काल भैरव सपने में आए थे और बताया था कि जंगल में एक मूर्ति पड़ी है. स्वप्न में मिली प्रेरणा से उनकी मूर्ति को स्थापित किया गया और उनके आदेश से दरबार प्रारंभ किया गया. 1904 से सतत चलता रहा है. यह पूरी तरह से निशुल्क है और यहां दीन दुखियों की समस्याओं का निराकरण किया जाता है.

मानव सेवा में नहीं होता चमत्कार: दरबारों को लेकर सामने आ रहे विवाद पर पंडित महेश तिवारी कहते हैं कि, दरबार व्यवसायिक व्यवस्था से चलाना अलग बात है और मानव सेवा करना अलग बात है. मानव सेवा में ना चमत्कार होते हैं और ना विवाद होते हैं. अगर मानव सेवा सच्चे मन से की जाए, तो निराकार रूप से चलती है. जब व्यवसाय और चमत्कार को शामिल किया जाता है,तो कहीं ना कहीं विवाद खड़े होते हैं. तर्क वितर्क खड़ा होता है. दरबार चलाने वालों से मेरा निवेदन है कि निष्काम मानव सेवा करें.

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बिना चमत्कार के समस्या का निदान: पर्ची वाले दरबारों को लेकर पंडित महेश तिवारी कहते हैं कि. 'मैं तो इस परंपरा का व्यक्ति हूं कि चमत्कारों से किसी का भला नहीं हो सकता है. निष्काम भाव से सेवा करिए. मैं चमत्कारों पर विश्वास नहीं करता हूं. मैं मानव सेवा पर विश्वास करता हूं. मैं किसी के साथ तर्क वितर्क और किसी की बुराई नहीं कर सकता हूं, मेरे लिए सभी आदरणीय हैं. मैं सभी से सिर्फ इतना कहूंगा कि निष्काम भाव से सेवा करिए. कोई भी व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है,तो तत्काल ठीक होना चाहता है. यह विधि डॉक्टर के पास होना चाहिए कि बिना चमत्कार के निष्काम भाव से लोगों की समस्याओं का निदान करें.

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