मुरैना। मुरैना जिले की अंबाह विधानसभा सीट बीजेपी और कांग्रेस को निर्दलीय प्रत्याशी कांटे की टक्कर देते नजर आ रहे हैं. बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल हुए कमलेश जावट को इस सीट पर उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं कांग्रेस ने सत्यप्रकाश सखवार पर दांव लगाया है. दोनों ही प्रत्याशियों को बीच इस सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रहा है, ऐसे में बीजेपी के बागी अभिनव छारी ने निर्दलीय मैदान में कूद कर इस मुकाबले को और भी कड़ा कर दिया है.
बिगड़ सकता है समीकरण
अंबाह में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस सहित बसपा के समीकरण को भारतीय जनता पार्टी के बागी निर्दलीय प्रत्याशी अभिनव छारी उर्फ मोंटी टक्कर देते हुए नजर आ रहे हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को निर्दलीय उम्मीदवार नेहा किन्नर ने पीछे छोड़ दिया था और सिर्फ पांच हजार मतों से जीत से पीछे रह गई थी. इस बार भी भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार की चिंता बढ़ाने में बागी उम्मीदवारों की मुख्य भूमिका है.
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क्या हैं चुनावी मुद्दे ?
क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.
- स्वास्थ्य सेवाएं- स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लोगों में जनप्रतिनिधियों के प्रति खासा आक्रोश है, क्योंकि यहां न तो नर्सिंग स्टाफ है और न ही डॉक्टर. जो डॉक्टर हैं भी, वो नियमित रूप से अस्पताल में आकर रोटेशनल प्रणाली में ड्यूटी करते हैं. यहां सिर्फ एक डॉक्टर ही अस्पताल में है. लिहाजा प्रसूताओं को प्रसव के लिए क्षेत्र में सिविल अस्पताल और 6 से ज्यादा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होने के बाद भी जिला अस्पताल जाना पड़ता है.
- शिक्षा- शिक्षा के क्षेत्र में भी युवाओं की अनेक अपेक्षाएं हैं. यहां पोस्ट ग्रेजुएट काॅलेज भी है, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए युवाओं को ग्वालियर का रुख करना पड़ता है.
- रोजगार- यहां के युवाओं के लिये रोजगार की बड़ी समस्या है. जिनके पास जमीन और आय के अन्य साधन नहीं है, उनको बाहर का रुख करना पड़ता है. मनरेगा जैसी योजनाओं में भी मशीनों का उपयोग बढ़ने से रोजगार का संकट और गहराने लगा है.
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भौगोलिक दृष्टिकोण
अंबाह विधानसभा अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. इस विधानसभा क्षेत्र में अंबाह और पोरसा दो तहसील आती हैं. वहीं भौगोलिक रूप से राजस्थान के धौलपुर और उत्तर प्रदेश के आगरा से इस विधानसभा की सीमाएं लगती हैं, अंबाह जनपद पंचायत कि सिर्फ 7 ग्राम पंचायतें हैं. पोरसा विधानसभा क्षेत्र की 54 ग्राम पंचायतें हैं.
अंबाह विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास
अंबाह विधानसभा में अब तक 13 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें भारतीय जनता पार्टी को 6 बार, कांग्रेस पार्टी को 3 बार, बहुजन समाज पार्टी को 1 बार, प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी को 1 बार, जनता पार्टी को 1 बार और निर्दलीय उम्मीदवार को 1 बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है.
- 1957 में यह विधानसभा सामान्य थी, यहां रामनिवास शर्मा विधायक बने.
- 1962 में प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के जगदीश सिंह चुनाव जीते.
- 1967 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार रतीराम विजयी हुईं.
- 1972 में कांग्रेस पार्टी के राजाराम चुनाव जीत कर विधायक बने.
- 1977 में जनता पार्टी के चोखे लाल चुनाव जीते.
- 1980 में कांग्रेस पार्टी के कमोडी लाल जाटव चुनाव जीते.
- 1985 में कांग्रेस पार्टी के रामनारायण सखवार चुनाव जीते.
- 1990 में जनता दल के किशोरा जाटव चुनाव जीतकर विधायक बने.
- 1993 में भारतीय जनता पार्टी के बंसीलाल विजयी हुए.
- 1998 में भारतीय जनता पार्टी के बंसीलाल दूसरी बार विधायक बने.
- 2003 में भी भारतीय जनता पार्टी के बंसीलाल ही तीसरी बार विधायक चुने गए.
- 2008 में भारतीय जनता पार्टी के कमलेश सुमन चुनाव जीते.
- 2013 में बहुजन समाज पार्टी के सत्य प्रकाश सखवार चुनाव जीतने में सफल रहे.
- 2018 में कांग्रेश पार्टी के कमलेश जाटव निर्दलीय उम्मीदवार रहे नेहा किन्नर से करीब 5000 मतों से चुनाव जीते.
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कितने हैं मतदाता ?
लिंग | मतदाता |
---|---|
कुल | 2,13,557 (करीब) |
पुरुष | 1,14,927 |
महिला | 98,625 |
अन्य | 5 |
बीजेपी के बागी अभिनव छारी दे रहे चुनौती
कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए पूर्व विधायक कमलेश जाटव को भारतीय जनता पार्टी ने अंबाह विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी के युवा कार्यकर्ता अभिनव छारी उर्फ मोंटी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनौती दे रहे हैं.
बीएसपी कर रही वापसी की कोशिश
बहुजन समाज पार्टी ने भानु प्रताप सिंह सखवार को मैदान में उतारकर अंबाह सीट पर अपनी वापसी की कोशिश की है.
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बागी बिगाड़ सकते हैं खेल
बागियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी कमलेश जाटव का मानना है कि, जो भी बागी नेता हैं, वो भारतीय जनता पार्टी के साथ होंगे और क्षेत्र में पार्टी की जीत के लिए काम करेंगे, यह भी सच्चाई है कि, भले ही भारतीय जनता पार्टी के बागी नेता बीजेपी में शामिल हो जाएं और भारतीय जनता पार्टी जीत भी जाए, लेकिन उन्हें श्रेय नहीं मिलेगा, वहीं अगर बीजेपी की हार हुई, तो उसका श्रेय बागी नेताओं को जरूर दिया जाएगा.