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गवाहों के रिश्तेदार होने से उनका प्रभाव नहीं होता कम, सजा होने के बाद दायर अपील पर हाईकोर्ट का अहम निर्णय

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 8, 2023, 4:03 PM IST

MP News
हाईकोर्ट का निर्णय

Rejected appeal about relative witness: एमपी में हाईकोर्ट में दायर एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी केस में रिश्तेदार के गवाह होने से उनका प्रभाव कम नहीं होता.वहीं एक दूसरे केस में उन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को बहाल करने का आदेश दिया है.

जबलपुर। रिश्तेदार की गवाही के आधार पर हुई सजा के खिलाफ आरोपी की हाईकोर्ट में दायर याचिका को खारिज कर दिया गया है. हाईकोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि गवाह में रिश्तेदार होने के कारण उनका प्रभाव कम नहीं होता.वहीं एक दूसरे मामले में हाईकोर्ट ने बर्खास्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को बहाल करने का आदेश दिया है.

क्या है मामला: अपीलकर्ता सुकलू की तरफ से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी. याचिका में कहा गया था कि सोमती बाई उम्र 40 साल पर कुल्हाड़ी से प्राण घातक हमला करने के आरोप में न्यायालय ने उसे 5 साल के कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने सजा सुनाने में स्वतंत्र गवाह के बयान को नजर अंदाज किया है. घटना का चश्मदीद गवाह नहीं होने के बावजूद रिश्तेदारों की गवाही के आधार पर उसे सजा से दंडित किया गया.यानि इस दायर याचिका में कहा गया कि रिश्तेदार की गवाही पर उसे सजा देना गलत है.

पीड़ित का तर्क: अपीलकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि रिश्तेदारों ने अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार अपने बयान दिये हैं. एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि गवाहों ने घटना नहीं देखी है परंतु पीड़िता के शरीर पर कुल्हाड़ी से आई चोटों के निशान हैं वहीं पीड़िता ने अपने बयान में बताया कि आरोपी ने उस पर कुल्हाड़ी से हमला किया.

हाईकोर्ट ने सुनाया निर्णय: हाईकोर्ट जस्टिस ने इस अपील को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि न्यायालय ने कानूनी बिंदू तथा तथ्यों के आधार पर सजा से दंडित किया है. वहीं गवाहों के रिश्तेदार होने के कारण उनका प्रभाव कम नहीं होता है.

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को बहाल करने का आदेश: इधर, हाईकोर्ट ने एक दूसरे मामले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को सेवा से बर्खास्त करने का आदेश निरस्त कर दिया. जस्टिस सुजय पॉल की एकलपीठ ने 60 दिन के भीतर याचिकाकर्ता को बहाल करने और सभी लाभ देने के निर्देश दिए.कोर्ट ने यह भी माना कि जब पहले 8 दिन के वेतन कटौती का आदेश दे दिया गया था तो बाद में कलेक्टर के निर्देश पर सेवामुक्त करना पूरी तरह अवैधानिक है.

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क्या है मामला: खंडवा निवासी ममता तिरोले ने याचिका दायर कर बताया कि वह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में पदस्थ है. याचिकाकर्ता को 6 जनवरी 2020 को एक शोकॉज नोटिस आया कि वह एक दिन बिना सूचना के अनुपस्थित रहीं, इसलिए जवाब प्रस्तुत करें. याचिकाकर्ता ने जवाब पेश कर बताया कि महिला जनित समस्या के कारण वह 27 दिसंबर 2019 को कार्य से अनुपस्थित रहीं थीं.

कलेक्टर के आदेश पर कार्रवाई: प्रोजेक्ट ऑफिसर ने 10 जनवरी 2020 को उसे 8 दिन की वेतन कटौती का दंड दिया. चेतावनी भी दी कि भविष्य में ऐसी लापरवाही पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. इसके बाद कलेक्टर के निर्देश पर प्रोजेक्ट ऑफिसर ने 27 जनवरी 2020 को पूर्व के आदेश को वापस लेते हुए याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया. याचिकाकर्ता ने एडीशनल कलेक्टर और संभागायुक्त के समक्ष अपील पेश की, जो कि निरस्त कर दी गई. इसके बाद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

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