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विश्व पर्यावरण दिवस 2023: उपेक्षा और अतिक्रमण के कारण संकट में सिरपुर झील, प्रवासी पक्षियों की वैरायटी में आई कमी

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Published : Jun 5, 2023, 5:14 PM IST

इंदौर में सिरपुर झील धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. यहां नैसर्गिक विकास जो था वो अब खत्म होता जा रहा है. इसी कारण अब प्रवासी पक्षी भी यहां नहीं आ पा रहे हैं. इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस पर पढ़िए इसकी कहानी.

indore sirpur lake
इंदौर सिरपुर झील

संकट में इंदौर का सिरपुर झील

इंदौर। विश्व पर्यावरण दिवस पर जहां देश भर में पर्यावरण संरक्षण के आयोजन हो रहे हैं, वहीं प्रदेश की एकमात्र सिरपुर झील पर मंडरा रहे अतिक्रमण और उपेक्षा के खतरे के कारण इस झील को रामसर का मिला दर्जा भी संकट में है. इतना ही नहीं इंदौर की झील में जलकुंभी के कारण धीरे-धीरे यहां देश-विदेश से आने वाले दुर्लभ पक्षियों का बसेरा भी खत्म हो रहा है. इसे लेकर पर्यावरणविद अब खासे निराश हैं.

गंदगी की भेंट चढ़ी सिरपुर झील : इंदौर की सिरपुर झील अब तक वेटलैंड होने के कारण दुनिया भर से यहां आने वाले दुर्लभ पक्षियों का बसेरा रही है. जून 2022 में यूनेस्को ने इंदौर की सिरपुर झील को उन 75 स्थानों में शामिल किया था, जिन्हें रामसर साइट का दर्जा प्राप्त है. माना जा रहा था कि सिरपुर झील को रामसर साइट का दर्जा प्राप्त होने के बाद यहां प्राकृतिक पक्षियों की बसाहट और नैसर्गिक विकास की राह खुलेगी. लेकिन बीते कोरोना काल के बाद से ही इस झील को इंदौर जिला प्रशासन और नगर निगम ने उपेक्षित छोड़ दिया, जिसके फलस्वरूप झील के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आवासीय और व्यवसायिक इलाके विकसित होने के कारण यहां का नैसर्गिक संतुलन लगातार बिगड़ गया. कई कॉलोनियों की ड्रेनेज लाइने झील में छोड़ दिए जाने के कारण यहां के पानी में गंदगी आने लगी. इसके फलस्वरूप न केवल पानी दूषित हो चुका है बल्कि पानी में जलकुंभी और अन्य अशुद्धियां भी तेजी से बढ़ रही हैं.

प्रवासी पक्षियों की वैरायटी में कमी: ऐसी स्थिति में यहां साइबेरिया सहित दुनिया के विभिन्न देशों से आने वाले प्रवासी पक्षी अब अपना नैसर्गिक घोंसला चिन्हित स्थानों पर नहीं बना पा रहे हैं. फिलहाल झील के आधे हिस्से में जलकुंभी फैल चुकी है, जबकि झील के पीछे वाले हिस्से में बड़े पैमाने पर कॉलोनियां विकसित हो चुकी हैं. इसके अलावा झील के चारों तरफ व्यवसायिक गतिविधियां बढ़ने के कारण यहां पक्षी नहीं आ पा रहे हैं. इंदौर के पर्यावरणविद भालू मौडे बताते हैं कि "बीते कुछ सालों में यहां सुर्खाब पक्षियों के घोसले और प्राकृतिक आवासी स्थल उजड़ चुके हैं. स्थिति यह है कि साल भर में 30 से 40 जोड़ों में जो सुर्खाब पक्षी यहां हर साल आते थे उन्हें अब झील में व्याप्त जलकुंभी के कारण आसमान से पानी नजर नहीं आ पा रहा है. यही स्थिति अन्य पक्षियों को लेकर भी बन रही है, जिसके फलस्वरूप यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की 20 से 25 प्रतिशत वैरायटी लगभग खत्म हो चुकी है. वहीं, अब अन्य प्रवासी पक्षी भी जो यहां आते थे वह भी तेजी से घट रहे हैं."

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कुछ सालों में छिन सकता है रामसर का दर्जा: इंदौर के पर्यावरणविद भालू मौडे के अनुसार "किसी भी झील को रामसर का दर्जा मिलना नेचुरल डेवलपमेंट पर आधारित है. लेकिन इंदौर में झील के चारों ओर दुकानें व्यवसायिक गतिविधियां और खाने-पीने के होटल खुल चुके हैं. इसके कारण यहां शोर-शराबा हो रहा है. आसपास मस्जिद होने के कारण भी लगातार शोर होता है. वहीं, झील का पानी दूषित होने के कारण भी अब पक्षी को नैसर्गिक वातावरण नहीं मिल पाने के कारण वे नहीं आ रहे हैं."

भालू मौडे ने बताया कि "जिम्मेदारों को इसके लिए बीते 10 साल से लगातार सूचित किया जा रहा है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. फल स्वरूप आधी झील जलकुंभी के कारण विलुप्त हो चुकी है." हालांकि, इधर इंदौर नगर निगम के महापौर पुष्यमित्र भार्गव का दावा है कि यूनेस्को द्वारा अधिसूचित रामसर साइट को संरक्षित करने के लिए यहां करीब 40 करोड़ रुपए का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया जा रहा है. इसके अलावा झील के चारों ओर के क्षेत्र में बाउंड्री वॉल तैयार करके झील को संरक्षित भी किया जा रहा है, इससे भविष्य में झील में अवैध आवाजाही और अन्य पर्यावरण विरोधी गतिविधियों पर नियंत्रण किया जा सके. इसके अलावा अगर किसी के द्वारा झील के क्षेत्र में अतिक्रमण किया गया है तो उसे भी हटाया जाएगा.

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