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Indore रिश्वतखोरी के मामले में CBI कोर्ट ने इनकम टैक्स के तीन अफसरों को सुनाई तीन साल की सजा

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Published : Dec 16, 2022, 8:20 PM IST

Appointment of private secretary canceled
कुलपति के निज सचिव की नियुक्ति निरस्त

इंदौर की सीबीआई अदालत ने भष्ट्राचार के मामले में फैसला सुनाते हुए असिटेंट इनकम टैक्स कमिश्नर पकंज गुप्ता, इनकम टैक्स आफिसर अजय वीरे और चार्टर्ड अकाउंटेट एएस मुदड़ा को तीन वर्ष की (Sentences three Income Tax officers) सजा सुनाई है. साथ ही दस हजार रुपये जुर्माना किया है. जुर्माना जमा नहीं करने पर एक वर्ष का कारावास और भुगतना होगा. उधर, हाईकोर्ट ने नानाजी देशमुख पशु विज्ञान विवि में कुलपति के निज सचिव पद पर नियमों ताक पर रखकर सतीश दुबे की नियुक्ति को अवैध ठहराया है.

CBI कोर्ट ने इनकम टैक्स के तीन अफसरों को सुनाई तीन साल की सजा

इंदौर/जबलपुर। रिश्वत मामले में सीबीआई जज सुधीर मिश्रा ने ये सजा सुनाई. आयकर विभाग के अधिकारी पकंज गुप्ता के घर सीबीआई ने वर्ष 2008 में छापामार कार्रवाई की थी और 9 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया था. चार्टर्ड अकाउंटेट एएस मुदड़ा के जरिए पैकेजिंग इकाई के संचालक से रिश्वत ली जा रही थी.

नौ लाख की रिश्वत मांगी थी : सीबीआई ने अपनी चार्जशीट 2009 में दायर की थी. गुप्ता ने एडवांस रोटोफ्लेक्स इंडरटीज नामक पैकेजिंग कंपनी का सर्वेक्षण किया था, जिसमें उन्होंने पैकेजिंग कंपनी पर 65 लाख रुपये आयकर बकाया होना बताया था. आयकर विभाग के अधिकारी ने पैकेजिंग इकाई के संचालक अभय से कर चोरी के मामले को दबाने के लिए नौ लाख की रिश्वत मांगी थी. इसी मामले में कोर्ट ने सुनवाई कर आरोपियो को सख्त सजा से दंडित किया है.

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कुलपति के निज सचिव की नियुक्ति निरस्त : नानाजी देशमुख पशु विज्ञान विवि में कुलपति के निज सचिव पद पर नियमों ताक पर रखकर सतीश दुबे की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने अवैध ठहराया है. जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने निज सचिव सतीश दुबे को सेवा से पृथक करने के आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट में यह याचिका किरण अहिरवार व किशोर देवलिया की ओर से दायर की गई थी. इसमें आरोप था कि सतीष दुबे का भाई विश्वविद्यालय कार्यपरिषद का सदस्य था. विश्वविद्यालय द्वारा 19 सितंबर 2014 को कुलपति के निजी सचिव की 6 माह के लिये संविदा नियुक्ति हेतु विज्ञापन प्रकाशित किया गया. जिसके अनुसार केवल योग्यताधारी सेवानिवृत्त निजी सचिवों की नियुक्ति नियत वेतन पर की जानी थी, लेकिन सतीष दुबे को योग्यता न होने के बावजूद न केवल अवैध रूप से नियुक्ति दे दी गई, बल्कि विगत 8 वर्षों से उसकी सेवा निरंतर जारी रखी गई. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अरविंद श्रीवास्तव ने पक्ष रखा.

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