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मिटने की कगार पर 'खूनी खेल' के जनक की आखिरी निशानी, प्रशासन भी नहीं दे रहा ध्यान

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Published : Aug 27, 2019, 6:53 PM IST

राजा जाटबा नरेश की समाधि हो चुकी जर्जर

पांढुर्णा के प्रसिद्ध खूनी खेल के जनक राजा जाटबा नरेश की समाधि जर्जर हो चुकी है. जो सालों से प्रशासन की अनदेखी के चलते महज एक चबूतरा बनकर रह गया है.

छिंदवाड़ा। खूनी खेल के नाम से विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले के जनक राजा जाटबा नरेश की समाधि जर्जर हो चुकी है, 400 साल पुरानी इस समाधि की स्थिति हर दिन बिगड़ती जा रही है. जिसकी न तो शासन और न ही समाज सुध ले रहा है. ये प्राचीन समाधि महज एक चबूतरा बनकर रह गया है.

राजा जाटबा नरेश की समाधि हो चुकी जर्जर
पांढुर्णा में सालों से पोला त्योहार के दूसरे दिन खूनी खेल के नाम से विख्यात पत्थरों का खेल खेला जाता है. चंडिका देवी को लहू देने के बाद लोग पलाश के झंडे की पूजा करते हैं. फिर उस झंडे को जाम नदी पर स्थापित कर दोनों ओर से लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करते हैं. एक-दूसरे को लहूलुहान करने की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और इस खूनी परंपरा को हजारों लोग निभा रहे हैं.सदियों पुरानी इस परंपरा के जनक जाटबा नरेश की समाधि जर्जर होकर महज एक चबूतरे में बदलती जा रही है, जबकि पांढुर्णा के पूर्व विधायक ने अपने कार्यकाल में एक लाख रुपए की विधायक निधि से नये भवन का निर्माण कराया था, लेकिन राजा की समाधि का सुध लेने वाला कोई नहीं है.सदियों पुरानी गोटमार परंपरा के पीछे की वजह लोग बताते हैं कि सदियों पहले पांढुर्णा का एक युवक सावरगांव की युवती पर मोहित हो गया था, लेकिन दोनों पक्ष विवाह के लिए राजी नहीं थे, पर दोनों श्रावण अमावस्या के दूसरे दिन अल सुबह विवाह बंधन में बंधने के लिए घर से भाग निकले, तभी दोनों पक्ष उन्हें रोकने लगे, पर जब वे नहीं माने तो विवाद की स्थिति बन गई, और देखते ही देखते सावर गांव और पांढुर्णा के लोगों ने एक दूसरे पर पथराव कर दिया, जिसमें प्रेमी युगल की मौत हो गयी, इसलिए उन्हीं की याद में श्रावण अमावस्या और पोला त्योहार के दूसरे दिन ये खूनी गोटमार का खेल खेला जाता है.
Intro:

गोटमार : " खूनी खेल " के राजा की 400 साल पुरानी समाधि
" जर्जर "


पांढुर्णा :-

यह जर्जर और छोटा सा चबूतरा किसी भगवान का मंदिर नही हैं बल्कि " खूनी खेल " के नाम से पूरे देश मे विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले के जनक राजा जाटबा नरेश की समाधि हैं जो 400 साल से नई समाधि बनने का इंतजार कर रही हैं जो आज भी वैसी ही हैं जब सदियों पहले गोंडराजा के वंशज द्वारा इस समाधि को बनाया गया था
जिसकी आज तक किसी ने समाधि की सुध तक नही ली है जब कि हर साल जाटबा नरेश की याद में पोला त्यौहार के दूसरे दिन खूनी खेल के नाम से विख्यात पत्थरो का खेल छिंदावाडा जिले के पांढुर्णा में खेला जाता हैं जहा हजारो लोग मां चंडिका देवी को लहू देकर और पलाश रूपी झंडे का मान सम्मान कर जाम नदी पर स्थापित कर दोनों ओर से लोग एक दूसरे पर पत्भरो की बौछार कर एक दूसरे को लहूलुहान कर सदियों से चली आ रही इस खूनी परंपरा को निभा रहे हैं
पर दुर्भाग्य की बात है कि सदियों पुरानी इस परंपरा के जनक जाटबा नरेश की समाधि आज भी दयनीय स्थिति में पड़ी हैं जो जर्जर होकर एक महज चबूतरा बनकर रह गया हैं
हालाँकि पांढुर्णा के पुर्व विधायक जतन उइके ने उनके पिछले कार्यकाल में ₹ 1 लाख विधायक निधि से स्वीकृत कर नया भवन बनाया गया हैं लेकिन राजा की समाधि पर किसी की नजर नही गई हैं जो बदहाली में जी रही हैं Body:
ऐसी है जाटबा नरेश की कहानी , किले से बरसाए थे राजा की सेनाओं ने पत्थर :-

आदिवासि समाज के लोगो के मुताबिक पांढुर्णा की जाम नदी के किनारे 500 साल पहले विशालकाय किया था इसी किले में जाटबा नरेश और उनकी ताकतवर सेना रहती थी जिनका अधिपत्य मोहखेड़ के देवगढ़ किले तक था
इस किले के पास माँ चंडी माता का मंदिर था और राजा जाटबा चंडी माता के परम् भक्त थे कुछ सालों बाद नागपुर के भोसले राजा और उनकी सेनाओ ने जाटबा नरेश के किले पर हमला कर दिया जाटबा नरेश की सेनाओं के पास हथियार नही होने से उन्होंने किले से पत्थरो की बौछार करना शुरू कर दिया जिससे भोसले राजा की सेना पत्थरो का मार सहन नही कर सकी और उन्हें परास्त होकर वापस लौटना पड़ा तब से लेकर जाटबा नरेश की याद में पोला तौहर के दूसरे दिन पांढुर्णा की जाम नदी पर पलाश रूपी झंडे को नदी में गाड़कर नदी के दोनों ओर के लोग एक दूसरे पर पत्थरो की बौछार कर सदियों से चली आ रही इस परंपरा को निभाते आ रहे है हालांकि आज की जाम नदी के किनारे राजा जाटबा नरेश के किले की दीवारें नजर आती हैं

गोटमार की दूसरी कहानी की भी हैं परंपरा :-

इस सदियों पुरानी गोटमार की परंपरा में दूसरी कहानी का समावेश हैं जहां सदियों पहले पांढुर्णा का एक युवक सावरगांव की युवती पर मोहित हुआ था दोनो पक्ष दोनो के विवाह में राजी नही थे लेकिन दोनो श्रावण अमावश्या के दूसरे दिन अल सुबह विवाह बंधन में बंधने के लिए भागने लगे लेकिन दोनो पक्ष ने उन्हें रोका गया लेकिन दोनों नही मांगे जिससे विवाद की स्थिति बन गई देखते ही देखते सावरगांव ओर पांढुर्णा के दोनों पक्ष के लोगो ने एक दूसरे पर पथराव कर दिया जिससे इन दोनों प्रेमी युगल की वही मौत हो गई इसलिए उन्ही के याद में श्रावण अमावश्या और पोला त्यौहार के दूसरे दिन यह खूनी गोटमार का खेल खेला जाता हैं Conclusion:400 साल से 7 वी पीढ़ी झंडे की परंपरा निभा रहा कावले परिवार :-

गोटमार मेले की परंपरा 400 साल से जारी हैं लेकिन परंपरा को सदियों से सावरगांव का कावले परिवार पलाश रूपी झंडे की परंपरा को निभा रहा हैं हर साल पोला त्यौहार के दिन जंगल से पलाश के पेड़ को काटकर कावले परिवार घर लाकर उस झंडे की पूजा अर्चना कर दूसरे की अल सुबह लगभग 4 बजे इस झंडे को जाम नदी के बीचों बीच स्थापित कर गोटमार मेले का आगाज करते है वर्तमान में सुरेश कावले की 7 वी पीढ़ी जो झंडे की परंपरा निभा रहे है


जाटबा नरेश के नाम से बना हैं नगर पालिका का एक वार्ड :-

पांढुर्णा में सदियों से जारी गोटमार के जनक राजा जाटबा नरेश की भले ही समाधि जर्जर अवस्था मे सदियों से पड़ी हैं लेकिन इन राजा के नाम से पांढुर्णा नगर पालिका में जाटबा नरेश के नाम से वार्ड बना हुआ हैं जहां हर 5 साल बाद वार्ड की जनता वार्ड पार्षद को चुनते है लेकिन यह जनप्रतिनिधि इस राजा की समाधि को देखने और उसकी मरम्मत करने के लिए कोसो दूर दिखाई दे रहे है


बाइट :-

( 1) संजय परतेती
अध्यक्ष गोंडवाना महासभा
( पिला गमछा वाला )

( 2) सुरेश कावले
अध्यक्ष
गोटमार समिति


( 3) आरके पन्द्रों
एसडीओपी पांढुर्णा
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