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आदिवासियों का देसी जुगाड़! ऐसी तकनीकि जिससे खुले में रहने के बाद भी खराब नहीं होता अनाज

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Published : Feb 5, 2023, 12:36 PM IST

Updated : Feb 5, 2023, 3:25 PM IST

छिंदवाड़ा के आदिवासियों ने देसी जुगाड़ करके एक ऐसी तकनीकि का इजात किया है जिससे खुले में रहने के बाद भी अनाज खराब नहीं होता. आइए जानते हैं क्या है देसी वेयरहाउस की ये तकनीक-

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छिंदवाड़ा में अनाज के लिए विशेष गोदाम

छिंदवाड़ा। अनाज को सुरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े वेयरहाउस और फिर उनमें कीटनाशकों का प्रयोग आम बात है, लेकिन आदिवासी इलाकों में एक ऐसी तकनीक है जिसमें साल भर अनाज खुले में रहने के बाद भी खराब नहीं होता. इसे देशी वेयरहाउस भी कह सकते हैं. दरअसल छिंदवाड़ा के आदिवासी इलाकों में अधिकतर घरों के सामने अनाज और प्याज लहसुन के बड़े-बड़े गट्ठर लकड़ियों में लदे हुए नजर आते हैं, इसे आदिवासी इलाकों में जेरी कहा जाता है. आदिवासियों ने बताया कि इस तरीके से अनाज रखने से अनाज में ना तो कीड़े लगते हैं और ना ही अनाज खराब होता है. इस तरीके से अनाज भयंकर गर्मी हो लगातार बारिश हो या फिर ठंड हमेशा सुरक्षित रहता है और फिर इसी अनाज को किसान अगली बार खेतों में बोने के लिए उपयोग करता है.

इस तकनीक के आगे बड़े-बड़े वेयरहाउस भी हैं फेल: अनाज को सुरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े वेयरहाउस भी उपयोग किए जाते हैं और फिर उसमें काफी मात्रा में कीटनाशक का भी प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसके बाद भी अनाज सुरक्षित रहेगा या नहीं इसकी गारंटी नहीं होती लेकिन आदिवासियों की यह तकनीक बड़े-बड़े वेयरहाउस उनको मात दे रही है. आमतौर पर आदिवासियों को कम पढ़ा-लिखा और तकनीको से दूर माना जाता है, लेकिन घरेलू नुस्खे और उनकी तकनीकी बड़े-बड़े इंजीनियरों को भी सोचने पर मजबूर कर देती है.

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आंगन में लकड़ी की बल्लियां गाड़कर बनाई जाती है जेरी: इस तकनीक के बारे में जब ईटीवी भारत में आदिवासियों से जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि यह बड़ी सरल तकनीक है घर के सामने वे बड़ी बड़ी बल्लियां गाड़ते हैं और फिर उसमें एक दूसरे को क्रॉस करती हुई पतली लकड़ियां बांधी जाती है और उसमें मक्के के भुट्टे बिना छीले हुए परत दर परत लटकाए जाते हैं. ऐसे ही प्याज हो या फिर लहसुन उन्हें भी लटका दिया जाता है, इसके बाद बारिश का पूरा पानी इन पर गिरता है लगातार की धूप इन पर पड़ती है और ठंड भी होती है लेकिन फसल खराब नहीं होती.

बाजारवाद और हाइब्रिड बीजों ने तकनीक बना दिया कमजोर: दरअसल इस तरीके से अनाज को सुरक्षित रखकर किसान साल दर साल खेतों में बीज लगाया करते थे और इसे ही प्राकृतिक पद्धति भी कहा जाता था लेकिन बाजारवाद के चलते अब हाइब्रिड बीजों ने इसकी जगह ले ली है. इसी के चलते किसान को हर बार बाजार से लाकर हाइब्रिड बीज खेत में लगाना पड़ रहा है, जबकि पहले किसान खेतों से निकली हुई फसल को ही दूसरी बार खेतों में लगाने के लिए इसी तरीके से रखता था ताकि फसल खराब ना हो और फिर से बोवनी के लिए काम आ जाए.

Last Updated : Feb 5, 2023, 3:25 PM IST
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