भोपाल। अयोध्या के राम मंदिर में रामलला को विराजमान कराने की तैयारियों के बीच आपको बताते हैं, एक ऐसी रामायण की प्रति के बारे में जो अपने आप में बेदह अद्भुत और प्राचीन है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित यह रामायण हस्तलिखित है और यह करीबन 350 साल पुरानी है. इस हस्तलिखित वाल्मीकी रामायण को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी में संभाल कर रखा गया है.
विश्वविद्यालय की स्थापना के समय सौंपी थी दुर्लभ प्रतियां: भोपाल के जानेमाने ज्योतिषाचार्य और संस्कृतविद ईशनारायण जोशी 11 दिसंबर 1994 को बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. ईश्वर सिंह चौहान को यह महर्षि वाल्मीकि रामायण की हस्तलिखित प्रति सौंपी थी. इसके पहले विश्वविद्यालय की स्थापना के पहले भी उन्होंने हस्तलिखित कई ग्रंथ विश्वविद्यालय को दिए थे. हस्तलिखित रामायण सौंपते समय उन्होंने बताया था कि देश में इस तरह की सिर्फ दो या तीन प्रति ही मौजूद हैं. जिसमें से एक उनके पास मौजूद थी, जो उन्होंने विश्वविद्यालय में भेंट की थी.
इसके साथ उन्होंने सौ साल पहले मुद्रित महाभारत की संस्कृत प्रति भी दी थी. बताया जाता है कि ईशनारायण जोशी द्वारा दी गई हस्तलिखित वाल्मीकि रामायण को उनके पूर्वज सहेजते आ रहे थे.
छूते ही टूटने लगते हैं पन्ने: बरकतउल्ला विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन डॉ. किशोर शिंडे ने बताया कि इस हस्तलिखित रामायण के पन्नों को बीच में पूर्व में कई तरह के सूखे पत्ते रखे गए थे. जिससे इन्हें कीड़ों से बचाया जा सके. बाद में विशेषज्ञों की राय लेकर इन्हें हटाकर इसमें दवा का छिड़काव किया गया है. यह हस्तलिखित रामायण काफी जर्जर स्थिति में है. हाथ लगाने पर इसके पन्ने टूटने लगते हैं, इसलिए इन्हें कोई नहीं छूता है. इसे एक विशेष कपड़े में लपेटकर रखा गया है.
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संरक्षित करने की कोशिशें जारी: इस साढ़े 300 साल पुराने रामायण को संरक्षित करने की कोशिशें चल रही हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय ने पुरातत्व विभाग दिल्ली और राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधान शाला, लखनऊ से संपर्क किया था. इसके बाद राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधान शाला, लखनऊ के विशेषज्ञ अजीत सिंह ने इसका निरीक्षण किया था. अब इस पांडुलिपी का लैमीनेट कर इसे डिजीटल कॉपी बनाने की कोशिश की जा रही हैं.