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राष्ट्रीय पेंशन स्कीम 2004 के परिणाम आने लगे गंभीर, सेवानिवृति के बाद कर्मचारी के खाते में आई मामूली रकम

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Published : Nov 28, 2020, 4:38 AM IST

Public awareness campaign against NPS
एनपीएस के खिलाफ जन जागरण अभियान

राष्ट्रीय पेंशन स्कीम 2004 के गंभीर परिणाम अब सामने आने लगे हैं. जो भी सरकारी कर्मचारी इस व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं और अब जब वह रिटायर हो रहे हैं, तो उनको पेंशन के नाम पर मामूली रकम हासिल हो रही है. जिसके बाद कर्मचारियों में इसका खासा विरोध देखा जा रहा है. जिसके पुरानी पेंशन की बहाली के लिए बनाए गए मोर्चा की तरफ से अब देशभर में और मध्यप्रदेश में जन जागरण अभियान चलाया जाएगा.

भोपाल। राष्ट्रीय पेंशन स्कीम 2004 के गंभीर परिणाम अब सामने आने लगे हैं. जो भी सरकारी कर्मचारी इस व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं और अब जब वह रिटायर हो रहे हैं, तो उनको पेंशन के नाम पर मामूली रकम हासिल हो रही है. ऐसी स्थिति में मध्य प्रदेश से पुरानी पेंशन बहाली के लिए आंदोलन की चर्चा तेज हो गई है. अब इस आंदोलन की कड़ी में मध्य प्रदेश के कर्मचारियों का मोर्चा एक अनूठे आंदोलन की शुरुआत करना चाह रहा है. कर्मचारी संगठनों को मिलाकर बनाए गए इस मोर्चा की मांग है कि या तो सरकार राष्ट्रीय पेंशन स्कीम को हटाकर पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करें या फिर जो विधायकों सांसदों के लिए पेंशन व्यवस्था की गई है, वह भी राष्ट्रीय पेंशन स्कीम के तहत की जाए.

एनपीएस के खिलाफ जन जागरण अभियान

क्या है नेशनल पेंशन स्कीम

दरअसल केंद्र में जब अटल बिहारी की सरकार थी, तो वह 2004 में राष्ट्रीय पेंशन स्कीम लाई थी. हालांकि यह पेंशन स्कीम अटल बिहारी वाजपेई सरकार के कार्यकाल में शुरू नहीं हो पाई थी. लेकिन इसका प्रस्ताव पारित हो जाने के कारण बाद में डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार ने इस पेंशन व्यवस्था को लागू किया था. इस पेंशन व्यवस्था के तहत सरकारी कर्मचारियों को अपने सेवाकाल के दौरान प्रतिमाह अपने वेतन का 10% अंश राष्ट्रीय पेंशन स्कीम में जमा कराना होता है और सरकार भी 10% अंश अपनी तरफ से जमा कराती है. पूरे सेवाकाल के दौरान जमा हुए इस राशि पर मिलने वाले ब्याज के आधार पर कर्मचारी की सेवानिवृति के बाद उसे पेंशन हासिल होती है.

राष्ट्रीय पेंशन स्कीम से क्यों नाराज हैं सरकारी कर्मचारी

दरअसल जो सरकारी कर्मचारी राष्ट्रीय पेंशन स्कीम लागू हो जाने के बाद सरकारी सेवा में आए हैं. उनमें से कई कर्मचारियों का हाल के एक-दो सालों के अंदर रिटायरमेंट हुआ है. इन कर्मचारियों को राष्ट्रीय पेंशन स्कीम से काफी उम्मीद थी और उन्हें भरोसा था कि कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद अच्छे से जीवन व्यतीत कर सकेगा. लेकिन जब इन कर्मचारियों के लिए नई पेंशन व्यवस्था के तहत पेंशन मिलना शुरू हुई, तो किसी के लिए साढ़े आठ सौ रूपये तो किसी के लिए महज सात सौ रूपए पेंशन हासिल हो रही है.

रिटायरमेंट के बाद शिक्षक को मिलेगी 850 रूपए पेंशन

सीधी जिले के सिहावल विकासखंड के शवैचा शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय से रिटायर हुए लल्ला प्रसाद विश्वकर्मा को जब सेवानिवृत्ति के दिन पता चला कि उन्हें महज 850 रुपए पेंशन मिलेगी, तो वह इतने व्यथित हुए कि उन्होंने अपने रिटायरमेंट के दिन भीख मांग कर अपनी विदाई कराई.

पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करो या फिर विधायक सांसद को भी NPS के तहत पेंशन दो

नई पेंशन व्यवस्था के दुष्प्रभाव सामने आने के बाद कर्मचारी संगठनों ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक मोर्चा का गठन किया है. इस मोर्चा की मांग है कि या तो 1971 की परिवार पेंशन योजना में सभी कर्मचारियों को लाया जाए या फिर जो पूर्व सांसदों और विधायकों को पेंशन दी जाती है, उन्हें भी नेशनल पेंशन स्कीम के तहत पेंशन दी जाए या फिर पूरे देश में सभी तरह की पेंशन व्यवस्था बंद कर दी जाए.

पूर्व सांसद और विधायकों को भी नेशनल पेंशन स्कीम के तहत दी जाए पेंशन

पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल कराने के लिए बनाए गए कर्मचारी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र सिंह बताते हैं कि जब नई पेंशन व्यवस्था वर्ष 2004 में अटल बिहारी सरकार लेकर आई थी, तो किसी को मालूम नहीं था, कि इस व्यवस्था का दुष्परिणाम क्या होगा. आज 16-17 साल बाद एनपीएस के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं. आज जो भी कर्मचारी एनपीएस व्यवस्था के तहत सेवानिवृत्त हो रहे हैं, तो किसी को 750 और किसी को 850 रूपए पेंशन मिल रही है. इस तरह से एक सरकारी कर्मचारी का मजाक बना दिया गया है. जबकि सरकारी विभाग में कोई भी नौकरी करने इसलिए आता था कि सरकारी विभाग में अनुकंपा नियुक्ति और पेंशन व्यवस्था दो मुख्य वजह थी. जबकि आज देखिए कि निजी क्षेत्र में सरकारी क्षेत्र से प्रतिभाओं को अच्छा वेतन मिल रहा है.

लागू करे पुरानी व्यवस्था

जबकि सरकारी क्षेत्र में कर्मचारियों की सुविधाएं दिन-ब-दिन खत्म होती जा रही हैं. हमारा कर्मचारी 30- 35 साल नौकरी करता है. नौकरी के बाद जब उसे सात-आठ सौ रुपए पेंशन मिलती है, तो वह कैसे गुजारा करेगा. हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 में स्पष्ट उल्लेख है कि पेंशन हम कर्मचारियों का हक है. लेकिन वर्तमान में हमारे राजनेता चाहे वह बीजेपी की हो या कांग्रेस के ह. यह दोनों ही एनपीएस लागू किए जाने के लिए दोषी हैं. क्योंकि इसका प्रस्ताव अटल बिहारी बाजपेई सरकार लाई थी और मनमोहन सरकार ने इसे लागू करने का काम किया था. तो मेरा दोनों पार्टी के सांसद और विधायकों से अनुरोध है कि जिस तरह से दोनों पार्टी के लोगों ने जो पुरानी पेंशन व्यवस्था 1971 में लागू की गई थी, उसे खत्म करने का काम किया है, तो हमारी मांग है कि हमारे पूर्व सांसद और पूर्व विधायक नई पेंशन पद्धति में अपना नाम दर्ज करा कर एनपीएस के तहत पेंशन प्राप्त करें. यदि खुद ही पुरानी पेंशन लेते हैं, तो हमारे जनवरी 2004 के बाद के जितने कर्मचारी हैं, उनको भी पुरानी पेंशन का लाभ मिलना चाहिए.

प्रदेश के 52 जिलों में चलाया जाएगा एनपीएस के खिलाफ जन जागरण अभियान

पुरानी पेंशन की बहाली के लिए बनाए गए मोर्चा की तरफ से अब देशभर में और मध्यप्रदेश में जन जागरण अभियान चलाया जाएगा. मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री दिनेश शर्मा कहते हैं कि पूरे देश और प्रदेश का खजाना पूर्व सांसद और विधायकों के भत्तों, वेतन और पेंशन पर खर्च हो रहा है. यह लोग काम कुछ करते नहीं हैं. जनता को गुमराह करने और कर्मचारियों के शोषण का काम करते हैं. जीवन भर श्मशान घाट जाने की तारीख तक पेंशन लेते हैं. हमारी मांग है कि या तो 62 साल सेवा देने वाले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन लागू कर दो, नहीं तो जनहित में सब की पेंशन बंद कर दो. सरकार को जगाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सभी राज्यों में कार्यक्रम चल रहे हैं. लेकिन मध्यप्रदेश में हमारी रथयात्रा सभी 52 जिलों में जाएगी और कर्मचारियों को साथ में जनता को जागृत करने का काम करेगी. जनता को बताया जाएगा कि तुम्हारा पैसा व्यर्थ में लूटा जा रहा है और 62 साल सेवा देने वाले कर्मचारियों को शोषित किया जा रहा है.

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