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जब जबलपुर में नहीं मनाई गई थी दीवाली, तब भोपाल को बनाया गया था MP की राजधानी

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Published : Oct 30, 2020, 2:35 PM IST

Updated : Nov 1, 2020, 6:03 AM IST

1 नवंबर को मध्यप्रदेश का 65वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा, लेकिन क्या आपको पता है कि, 1955 में जबलपुर के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई थी और उसकी वजह थी, भोपाल को राजधानी बना देना, जबकि जबलपुर के लोगों का मानना था कि, उनके शहर को सूबे की राजधानी बनाया जाना चाहिए.

BHOPAL
भोपाल को क्यों बनाया गया MP की राजधानी

भोपाल। 1 नवंबर को मध्यप्रदेश का 65वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा. मध्यप्रदेश के गठन के बाद प्रदेश की राजधानी किसे बनाया जाए, इसपर काफी मंथन हुआ था. मध्यप्रदेश का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल को मिलाकर हुआ था, लेकिन उस वक्त सबसे बड़ा सवाल था कि, आखिर प्रदेश की राजधानी किसे बनाया जाए. राजधानी के तौर पर सबसे पहला नाम जबलपुर का आया, लेकिन जबलपुर के लोगों का ये ख्वाब पूरा होने के पहले ही बिखर गया. जबलपुर के स्थान पर भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया. इसका जबलपुर के लोगों को इतना दुःख हुआ कि, उन्होंने दीपावली का जश्न ही नहीं मनाया.

भोपाल को क्यों बनाया गया MP की राजधानी

जवाहरलाल नेहरू ने किया था नामकरण

देश की आजादी के बाद सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में मिलाकर एकीकृत किया गया. इसके बाद एक नवंबर 1956 को मध्यभारत को मध्यप्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा. प्रदेश को ब्रिटिश काल में सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत और बरार के नाम से जाना जाता था, लेकिन राज्य पुनर्गठन आयोग ने तमाम अनुशंसाओं के बाद अपनी रिपोर्ट जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी, तब उन्होंने इसे मध्यप्रदेश नाम दिया.

एक खबर से राजधानी बनाने का बदल गया फैसला

राज्य पुनर्गठन आयोग ने राजधानी के लिए जबलपुर का नाम सुझाया था. महाकौशल के तत्कालीन प्रभावशाली नेता सेठ गोविंद दास ने भी जबलपुर को राजधानी बनाने के लिए बेहद सक्रियता दिखाई, लेकिन ये खबरें तेजी से फैली कि, इसके पीछे सेठ गोविंददास का स्वार्थ छिपा है. उन्होंने जबलपुर के राजधानी बनने के पहले ही नागपुर रोड पर सैकड़ों एकड़ भूमि खरीद ली. जब ये खबरें जवाहर लाल नेहरू तक पहुंची, तो उन्होंने जबलपुर को राजधानी बनाने का मन बदल लिया.

ग्वालियर, इंदौर के बाद भोपाल के नाम पर बनी सहमति

जबलपुर के स्थान पर इंदौर और भोपाल को राजधानी बनाने पर विचार हुआ, लेकिन भोपाल के बीचों-बीच होने और बड़े भवनों की वजह से इसे राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया. 'आज का मध्यप्रदेश' किताब के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया कहते हैं कि, राजधानी न बनाए जाने का दुःख जबलपुर के लोगों में इतना था कि, उन्होंने 1955 में दीवाली नहीं मनाई. वो कहते हैं कि, शंकर दयाल शर्मा, जवाहरलाल नेहरू को समझाने में सफल रहे कि, भोपाल को राजधानी बनाने से कई समस्याओं से निजात मिल सकती है. भोपाल में पृथकतावादी ताकतें कमजोर हो जाएंगी, क्योंकि भोपाल नवाब भारत से अलग होकर पाकिस्तान के साथ जाना चाह रहे थे, बाद में वो दवाब में इसके लिए तैयार हुए थे.

Last Updated : Nov 1, 2020, 6:03 AM IST
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