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दिग्विजय का पगफेरा लौटा पाएगा कांग्रेस की खोई जमीन, विंध्य में किला फतह का कांग्रेस प्लान

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Published : Mar 11, 2023, 7:41 PM IST

Rewa Digvijay Singh meeting
रीवा पहुंचे दिग्विजय सिंह

रीवा में राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह के दौरे की जानकारी में नोट लिखा गया है कि, इस बैठक में सिर्फ वही कार्यकर्ता उपस्थित होंगे जिन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली है. इसे कांग्रेस की एहतियात भी समझने के साथ चुनावी साल लगते ही दिग्विजय सिंह का एक्शन भी समझा जा सकता है. एमपी में 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले संगत में पंगत के साथ पर्दे के पीछे रहकर दिग्विजय सिंह ने जिस तरह से कांग्रेस को बेहद खामोशी से खड़ा कर दिया था. क्या मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की इलाकाई बैठकें उसकी शुरुआत कही जा सकती हैं.

भोपाल। कांग्रेस का कभी मजबूत गढ़ रहे विंध्य में इन दिनों BJP और कांग्रेस की कड़ी निगाहें हैं. विंध्य में कांग्रेस की बैठकों का दौर शुरू हो गया है. आगामी 2023 के चुनाव में नेताओं का पहला फोकस विंध्य है. इसका कारण यह भी माना जा रहा है कि, 2018 के चुनाव में कांग्रेस को इस इलाके से बड़ा झटका लगा था. इस झटके को कांग्रेस पुन: नहीं दोहराना चाहती, लेकिन जिस विंध्य से पूरे प्रदेश की राजनीतिक की दिशा तय होती थी वही नेता अब पार्टी में हासिए पर हैं. अब सवाल यह उठता है कि, क्या दिग्गी राजा की बैठकों से पुराने कार्यकर्ताओं में जोश भरने का प्रयास किया जा रहा है या फिर इलाके से दिग्गज नेता रहे श्रीनिवास तिवारी के परिवार का दबदबा एक बार फिर उभरेगा.

Digvijay Singh Visit Rewa
दिग्विजय सिंह की रीवा में बैठक

क्या विंध्य में किला फतह कर पाएगी कांग्रेस: 2018 के विधानसभा चुनाव में विंध्य कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुआ था. कभी श्रीनिवास तिवारी और अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज कद्दावर नेताओं के साथ कांग्रेस की सबसे उर्वर भूमि रहा विंध्य इलाके को फिर सींचने दिग्विजय सिंह मैदान में उतरे हैं. चुनावी बैठकों की शुरुआत का सबसे अहम पड़ाव विंध्य है. दिग्विजय सिंह विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अलग अलग इलाकों के दौरे पर निकले हैं, लेकिन फोकस वहां है जहां या तो पार्टी की स्थिति मजबूत नहीं या पिछली बार से इस बार कांग्रेस कमजोर हो सकती है. पहली बैठक सतना में लेने के बाद रीवा के बाद मनगवां और त्योंथर में दिग्विजय सिंह विंध्य अंचल की बैठकें लेगें. उसके बाद दतिया शिवपुरी गुना की बारी आएगी. पूरे प्रदेश में हर कार्यकर्ता को नाम से जानने वाले दिग्विजय सिंह में संगठन क्षमता अपार है. दूसरी तरफ इस समय कांग्रेस में वे ही इकलौता नेता है जो बिखरी हुई पार्टी को एकजुट होकर चुनाव मैदान में खड़ा कर सकते हैं.

क्या कांग्रेस में विंध्य हाशिए पर: जिस विंध्य के नेताओं ने प्रदेश की राजनीति की दिशा तय की हो क्या वजह है कि, उसी विंध्य का नेतृत्व करने वाले नेता पार्टी में हाशिए पर हैं. अजय सिंह तो कमलनाथ सरकार के दौर से ही दरकिनार चल रहे हैं. कमलनाथ के साथ उनकी बगावत कई मौकों पर खुलकर सामने आ चुकी है. मैहर में कमलनाथ का बयान उल्लेखनीय है. जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर विंध्य में कांग्रेस के कार्यकर्ता और मेहनत करते तो ज्यादा सीटें आतीं और हमारी सरकार ना गिरती. इसके पलटवार में अजय सिंह का जवाब आया था. उन्होंने कहा था कि, अपनी अक्षमता का ठीकरा अजय सिंह विंध्य पर ना फोड़ें. विंध्य का अपमान ना करें. इससे पार्टी के पुराने कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि निराश होंगे. अजय सिंह नेबेबाकी से कहा था कि, 2020 में कांग्रेस की सरकार गिरने की वजह खुद कमलनाथ हैं.

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2018 में विंध्य की बदल गई तासीर: 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि, किस तरह से इस इलाके ने अपनी तासीर बदली थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में विंध्य की 30 सीटों में से 24 सीटें बीजेपी के खाते में गई थी. जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 17 सीटें मिली थी. कांग्रेस के हिस्से 11 सीटें आई थी. बसपा को दो सीटें मिल पाई थी. 2008 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस विंध्य में केवल 2 ही सीटें जीत पाई थी.

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