भोपाल। 80 के दशक की हिंदी फिल्मों से ज्यादा क्रूरता... प्यार पर पहरे तो बीते जमाने की बात हुई... अब तो सीधे हत्या है... वो भी रोंगटे खड़े कर देने वाली... मुरैना के अम्बाह इलाके में रहने वाली शिवानी तोमर का गुनाह सुनिए. गुनाह बस इतना था कि प्यार किया था उसने दुलारने वाले पिता ने बेटी को मौत दी. बचाने वाले भाई के हाथ बहन के खून से रंग गए. हत्या करके चंबल में फेंक दिया, बेटी और उसके चाहने वाले को, हांलाकि लाशें अब तक नहीं मिल पाई हैं. भिंड के आलमपुर में 17 बरस की साक्षी अपने साथ पढ़ने वाले निखिल को दिल दे बैठी थी. यही अपराध था उसका. अपने ही घरवालों से डर कर भाग रही साक्षी की बीते महीने संदिग्ध परिस्थितियों मे मौत हुई. सबूत मिटाने खेत में रात के अंधेरे में किया गया अंतिम संस्कार.
तीसरा मामला जबलपुर का, यहां जीती जागती लड़की का पिंडदान भी हो गया वजह ये कि उसने दूसरे धर्म में शादी की और धर्म बदल दिया हाल के ही ये तीन वाकयों में मौत की वजह भर एक नहीं है. ये दिलदहला देने वाली हत्याएं इस बात की भी तस्दीक हैं कि हमारे समाज से सब्र खत्म हो रहा है. संवेदना खत्म हो रही है. पर सवाल ये कि जानवरों का सा बर्ताव क्यों लौट रहा है समाज में.
दुलार करने वाले हाथ क्यों दे रहे हैं मौत: भिंड की साक्षी यादव हो या मुरैना की शिवानी. आप अपराध की जिन खबरों को पढ़कर चौंकते रहे हैं, हैरान होते रहे हैं. वो आपके समाज का शर्मनाक सच हैं. सच ये कि अब संभालने वाले पालने वाले हाथ भी हत्यारे हो सकते हैं. कांपते हाथों से बेटी को विदा करने वाले हाथो ने कैसे अपनी फूल से बच्ची को मौत के घाट उतारा होगा. कैसे चंबल में लाश बहाई होगी. कैसे परिवार की बेटी को केवल प्यार करने के जुर्म में उसके अपने परिवार वाले मौत के घाट तक पहुंचा सकते हैं. भिंड की रहने वाली साक्षी की संदिग्ध परस्थितियों में हुई मौत. लेकिन शक के दायरे में उसका परिवार है. सवाल ये है कि इतना गुस्सा. ऐसी हैवानियत समाज में आ कहां से रही है. सोशल मीडिया पर वायरल हुई जबलपुर की घटना. जिसमें माता पिता ने जीवित लड़की का पिंडदान कर दिया. आखिर समाज का यू टर्न है. एक तरफ समाज में खुलापन इस कदर की लिव इन यानि बगैर शादी के रिश्ते चल रहे हैं. दूसरी तरफ ये घटनाएं जो बताती हैं बेड़ियों से बाहर नहीं आया समाज.
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समाज में बिगड़ता माहौल सोशल मीडिया का असर: वरिष्ठ समाज शास्त्री डॉ. शैलजा दुबे बताती हैं पिछले 6 महीने के आंकड़े उठाकर देखिए हत्या के मामला वो भी परिजनों में ही कितनी तेजी से बढ़े हैं. असल में हम ट्रांजिक्शन पीरियड से गुजर रहे हैं. और इसमें सबसे बड़ा संकट बना है सोशल मीडिया. सोशल मीडिया ने बहुत ज्यादा समाज को प्रभावित किया है. सूचनाओं का बहाव बहुत तेज है. सकारात्मक से ज्यादा नकारात्मक सोच बढ़ रही है सोसायटी की. समाज शास्त्र के मुताबिक जो सामाजिक नियंत्रण होते थे जिसमें परंवरा आस्था भगवान भी हैं. अब उसकी जगह लोग क्या कहेंगे ने ले ली है. और सोशल मीडिया की लोगों तक पहुचं बहुत तेज है. लिहाजा बात फैलती बहुत तेजी से है. सूचनाओं का ओव्हर फ्लो हो रहा है. जो दिमाग को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. नकारात्मक सोच बढ़ रही है तेजी से.