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संगठनों की लड़ाई के कारण खोया हॉकी का वर्चस्व, खिलाड़ियों को दौबारा तैयार करने में जुडे पूर्व ओलंपियन

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Published : Sep 30, 2021, 9:15 PM IST

Hockey in Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश में हॉकी

41 साल पहले जब हॉकी का एक स्वर्णिम दौर था, उस समय टीम में हॉकी की नर्सरी (Hockey Nursery Bhopal) कहे जाने वाला भोपाल का दबदबा होता था. लेकिन हॉकी संगठनों की आपसी लड़ाई के कारण मध्य प्रदेश में हॉकी का वर्चस्व खतरे में आ गया. एक बार फिर पूर्व ओलंपियन मिलकर भोपाल और मध्यप्रदेश के खिलाड़ियों को तैयार करने में जुट गए है.

भोपाल। Tokyo Olympics 2020 में भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team) ने 41 साल बाद मेडल हासिल किया. 41 साल पहले जब हॉकी का एक स्वर्णिम दौर था, उस समय टीम में हॉकी की नर्सरी (Hockey Nursery Bhopal) कहे जाने वाला भोपाल का दबदबा होता था. हॉकी के 8 ओलंपियन भोपाल में बने हैं. इसके बावजूद अब भोपाल ही नहीं पूरे प्रदेश में हॉकी का नाम दिखाई नहीं देता. इसका कारण हॉकी संघों का आपसी विवाद है. जिसके चलते हॉकी गुमनामी के अंधेरों में पहुंचा चुका है. हाॅकी से जुड़े लोग और अधिकारी भी मानते हैं कि अगर आपसी विवाद नहीं होते, तो भोपाल और मध्य प्रदेश की हॉकी एक बार फिर दुनिया में जोहर दिखाएगी.

संगठनों की लड़ाई के कारण खोया हॉकी का वर्चस्व

भोपाल के इन खिलाड़ियों के कारण चमकती थी हॉकी

भोपाल को हॉकी की नर्सरी के नाम से जाना जाता है. इस खेल में भोपाल से कई ऐसे नाम है जो ओलंपिक में पदक हासिल कर लौटे है. अहमद शेर खान, अहसान मोहम्मद खान, लतीफ उर रहमान, अख्तर हुसैन, इनामउर रहमान, असलम शेर खान, सैयद जलालुद्दीन रिजवी और समीर दाद. यह भोपाल के वो नाम है जिनके कारण हॉकी ओलंपिक में चमकती थी. लेकिन धीरे-धीरे भोपाल ही नहीं मध्य प्रदेश से हॉकी का खेल खत्म होने लगा.

अब शालेय हॉकी टीम बनाने के पड़े लाले

इसे दुर्दशा ही कहेंगे कि हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले भोपाल में एक स्कूली टीम बनाने के लाले पड़ जाते है. आठ ओलिंपियन और 20 अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी वाले भोपाल में अब स्थिति यह है कि स्कूली टीम तो छोड़िए संभागीय शालेय हॉकी टीम ही नहीं बन पाती. टीम चुनने के लिए इंटर स्कूल टूर्नामेंट हुआ, तो स्कूलों में हॉकी की टीमें ही नहीं थी. इसका कारण मध्यप्रदेश में हॉकी संघों का विवाद है. हॉकी में दो से तीन संघ होने के चलते आपसी मनमुटाव और वर्चस्व की लड़ाई के चलते हॉकी गर्त में चली गई है.

बीएस यादव, ज्वाइन डायरेक्टर, खेल विभाग

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क्या है हॉकी संघों का आपसी विवाद?

भारतीय हॉकी महासंघ (IHF) के बनने के बाद से ही हॉकी में आपसी विवाद और वर्चस्व की लड़ाई को लेकर कई संगठन अलग-अलग बनने शुरू हो गए थे. मध्य प्रदेश और भोपाल की नर्सरी में सबसे ज्यादा विवाद का कारण इनामउर रहमान के समय हुआ. भारतीय हॉकी फेडरेशन के सेक्रेटरी रहे रहमान ओबेदुल्ला गोल्ड कप (Obaidullah Gold Cup) में भी सर्वेसर्वा रहे. कहते है कि उनके रवैये और ओलिंपिक खिलाड़ियों को तवज्जो ना देने के कारण सभी इनसे अलग हो गए.

फेडरेशन में विवाद के कारण खत्म हुआ हॉकी

मध्य प्रदेश खेल विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर बालू सिंह यादव कहते हैं कि फेडरेशन में विवाद के कारण ही हॉकी के क्लब्स और संगठन खत्म हुए हैं. हॉकी के गिरते स्तर का मुख्य कारण हॉकी के संघ और संगठनों का आपसी विवाद हैं. वहीं यादव कहते है कि खेलों को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार लगातार काम कर रही हैं. सरकार ने 28 फीडर सेंटरों के साथ ही एस्ट्रो टर्फ वाले 15 स्टेडियम बनाने का लक्ष्य रखा हैं. जिसमें भोपाल, ग्वालियर, होशंगाबाद, सिवनी, जबलपुर, इंदौर और दमोह में एस्ट्रो टर्फ बन चुकी है.

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भ्रष्टाचार के कारण भंग हुआ महासंघ

भारत में राष्ट्रीय हॉकी महासंघ की शाखा थी. अप्रैल 2008 में भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण इसे भंग कर गिया गया था. वर्तमान में भारतीय हॉकी के लिए जिम्मेदार संस्था हॉकी इंडिया है. मार्च 2014 में भारत सरकार ने हॉकी इंडिया को देश की एकमात्र संस्था के रूप में मान्यता दी.

यह रहे भोपाल से ओलंपिक खिलाड़ी

अहमद शेर खान और अहसान मोहम्मद खान (1936 बर्लिन), लतीफ उर रहमान और अख्तर हुसैन (1948 लंदन), इनामउर रहमान (1968 मास्को), असलम शेर खान (1972 म्यूनिख, 1976 मॉन्ट्रियल), सैयद जलालुद्दीन रिजवी (1984 लॉस एंजिल्स) और समीर दाद (2000 सिडनी).

क्लब और मैदान की कमी के कारण नहीं हो रही प्रैक्टिस

पूर्व ओलंपियन जलालुद्दीन कहते हैं कि एक समय था जब हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले भोपाल में हर गली मोहल्ले में हाॅकी के क्लब हुआ करते थे. भोपाल में ही लगभग 48 हॉकी क्लब हुआ करते थे. हर क्लब में छोटे-बड़े सभी खिलाड़ी प्रैक्टिस किया करते थे. आज के समय में भोपाल में सिर्फ ऐशबाग स्टेडियम, खेल विभाग के ध्यानचंद हॉकी स्टेडियम और बीएचईएल के स्टेडियम ही भोपाल में है. जिनमें खिलाड़ी हॉकी के प्रैक्टिस कर पाते हैं. जिसमें मैदान की कमी भी एक कारण है.

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खिलाड़ियों के लिए तैयार कर रहे प्लेटफार्म

पूर्व ओलंपियन और हॉकी कोच समीर बताते है कि भोपाल में अभी हॉकी हो रही है, लेकिन एमपी में प्लेटफार्म नहीं है. इस प्लेटफार्म को डेवलप करने के लिए हम मेहनत कर रहे है. प्लेटफार्म मिलेगा तो भोपाल फिर से हॉकी की नर्सरी बन सकता है. स्कूल लेवल पर भी हॉकी को बढ़ावा देने की जरुरत है.

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