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बजट की बाट जोहते सरकारी स्कूल,  जर्जर हालत पर भी किसी को नहीं आता तरस

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Published : Oct 28, 2020, 11:45 PM IST

ईटीवी भारत ने राजधानी के 4 सरकारी स्कूलों का रियलटी चेक किया है. जहां पता चला कि इन स्कूलों में आने वाले बजट का उपयोग कितना किया जाता है.ये वो स्कूल हैं, जो बजट के लिए शासन को पिछले कई सालों से पत्र लिख रहे हैं. जिन स्कूलों को पिछले वर्ष बजट मिल चुका है. उन स्कूलों में भी लाइब्रेरी और लेब की व्यवस्था नहीं है.

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कॉसेप्ट इमेज

भोपाल। मध्यप्रदेश के शासकीय स्कूलों के लिए हर साल करोड़ों रुपये का बजट तय किया जाता है. इसके बावजूद राजधानी भोपाल के सरकारी स्कूलों की हालत बद से बदतर है. भोपाल में 79 शासकीय स्कूल हैं. जिसमें 30 से ज्यादा स्कूलों के पास लाइब्रेरी, कंप्यूटर लैब जैसी सुविधाएं नहीं हैं. वहीं हर साल बारिश में स्कूलों की पोल खुलती है, जब जर्जर बिल्डिंग की हालत सामने आते हैं.वहीं ईटीवी भारत ने राजधानी के 4 स्कूलों का रियलटी चेक किया है. जहां पता चला कि इन स्कूलों में आने वाले बजट का उपयोग कितना किया जाता है.

जर्जर स्कूल

कोलार स्थित शासकीय स्कूल में चार कमरे में पढ़ते हैं 700 बच्चे

भोपाल में कुल 79 शासकीय स्कूल हैं. जिसमे राजधानी के प्रमुख इलाकों के 40 स्कूलों की हालत इतनी बदतर है, जहां छात्रों के बैठने तक की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. सबसे पहले बात करें कोलार स्थित शासकीय कन्या शाला में 700 बच्चे पढ़ते हैं. इस स्कूल में केवल चार कमरे हैं. स्कूल की प्राचार्य का कहना है कि पिछले 3 सालों से स्कूल की मरम्मत के लिए शासन को पत्र लिखा जा रहा है. इसके बाद भी अब तक स्कूल को बजट नहीं मिला है. वहीं हाल ही में आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सीएम शिवराज ने स्कूल के बजट के लिए स्कूल शिक्षा विभाग को निर्देश दे दिए हैं लेकिन अब तक स्कूल में काम शुरू नहीं हो सका है.

Government schools
स्कूल

पूरी तरह जर्जर हो चुका है गिन्नौरी हायर सेकेंडरी स्कूल

वहीं पुराने भोपाल स्थित गिन्नौरी हायर सेकेंडरी स्कूल जो डेढ़ सौ साल पुराना है. इस स्कूल में मात्र 6 कमरे हैं और 300 बच्चे पढ़ते हैं. स्कूल की प्राचार्य सरला कश्यप का कहना है कि डेढ़ सौ साल पुराने स्कूल की हालत बिल्कुल वैसी ही है, जैसे कि डेढ़ सौ साल पहले लोग इसे छोड़कर गए थे. प्राचार्य ने कहा कि स्कूल की बिल्डिंग पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है. वहीं लाइब्रेरी की जो अलमारियां हैं, उनके कांच टूटे हुए हैं. जिसकी वजह से बच्चों को लाइब्रेरी में जाने की इज़ाज़त नहीं दी जाती. किताबें भी बहुत पुरानी हैं.

Government schools
क्लास रूम

बाउंड्री पार कर स्कूल के अंदर नशा करते हैं असामाजिक तत्व

प्राचार्य का कहना है कि वे जब स्कूल में साल 2017 में आई थीं. स्कूल की स्थिति बेहद खराब थी. स्कूल में असामाजिक तत्व नशे का सेवन करते हैं. जिसकी लगातार शिकायत करने के बावजूद भी शासन इस और ध्यान नहीं देता. उन्होंने कहा कि यह स्कूल केवल नाम का स्कूल है. यहां आस-पास के इलाकों के लोग बैठकर धूम्रपान का सेवन करते हैं. जिससे बच्चों को बचा पाना मुश्किल होता है. लगातार शासन से बजट की मांग करने के बाद केवल इतना बजट मिला कि स्कूल कि बाहर की बाउंड्री बन सके. बावजूद इसके बाहर के लोग बाउंड्री कूद कर स्कूल के अंदर आकर नशे का सेवन करते हैं.

रोशनपुरा शासकीय स्कूल में 1 हॉल में लगती है पांच कक्षाएं

कुछ ऐसा ही हाल राजभवन से 1 किलोमीटर दूर रोशनपुरा शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला का है. यहां एक ही हॉल में कक्षा पहली से पांचवी तक कि कक्षाएं लगाई जाती हैं. एक ही हॉल में एक हाथ के फासले पर छात्र बैठते हैं और टीचर्स जैसे-तैसे एडजस्ट करके छात्रों की कक्षाएं लेते हैं. हालांकि अभी कोरोना काल में मिडिल स्कूल बंद हैं. छात्रों को टीचर्स घर-घर जाकर कक्षाएं दे रहे हैं, लेकिन अनलॉक में छात्रों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसे देखते हुए विभाग नवंबर माह में स्कूल खोलने की तैयारी कर रहा है. ऐसे में अगर स्कूल खुलते हैं तो इस स्कूल में 1 ही हॉल में 5 कक्षाएं लगाई जाएंगी. क्योंकि स्कूल को बजट इस साल भी नहीं मिला है. इस स्कूल में 256 बच्चें पढ़ते हैं. जो बिना टेबल कुर्सी के ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं. हर साल बारिश के समय बच्चों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

ईदगाह हिल्स स्थित शासकीय स्कूल में नहीं है शौचालय

ईदगाह हिल्स स्थित शासकीय कन्या शाला में करीब 350 छात्राएं हैं. स्कूल में पिछले 4 सालों से शौचालय नहीं है. छात्राओं को शौच करने सुलभ शौचालय जाना पड़ता है. स्कूल की प्राचार्य की मानें तो मंत्री, विधायक सब स्कूल का दौरा करके जा चुके हैं, लेकिन आजतक स्कूल को कोई राशि नहीं मिली है. जिससे स्कूल की हालत सुधारी जा सके. प्राचार्य ने बताया कि पिछले साल भी स्कूल को राशि देने की घोषणा हुई थी. इस साल भी स्कूल का नाम है लेकिन अब तक विभाग से कोई लेटर नहीं मिला है. जिससे यह सुनिश्चित हो कि स्कूल में शौचलाय बनेगा. वहीं अगर लाइब्रेरी और फर्नीचर की बात करें तो, जब शौचालय ही नहीं है तो लाइब्रेरी और फर्नीचर का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है. जो संसाधन स्कूल अपनी तरफ से उपलब्ध कराता है,वो संसाधन बच्चों को देते हैं. शासन की ओर से किसी प्रकार की कोई मदद अब तक नहीं मिली है.

Government schools
जर्जर शौचालय

स्कूलों के लिए पर्याप्त नहीं बजट

स्कूलों के प्राचार्यो का कहना है कि शासन से जो बजट मिलता है वह स्कूलों के लिए पर्याप्त नहीं होता है. लगातार मशक्कत करने के बाद 3,4 साल में एक बार बजट दिया जाता है. जिससे स्कूलों का काम नहीं हो पाता. जो हालत स्कूलों के हैं. उसके लिए जो राशि दी जाती है. वह पर्याप्त नहीं है. शासन द्वारा केवल बिल्डिंग, बिजली, और पुताई का पैसा मिलता है, जबकि एक गुणवत्ता पूर्ण स्कूल में सबसे ज़्यादा ज़रूरी लाइब्रेरी, कंप्यूटर लेब, अच्छा फर्नीचर जैसी तमाम ज़रूरतें होती हैं, लेकिन स्कूल के लिए इतना बजट कभी नहीं दिया जाता है.

6 महीने के अंदर स्कूलों में किया जाएगा काम

जिला शिक्षा अधिकारी नितिन सक्सेना ने कहा कि स्कूलों को हर साल राशि दी जाती है. जब भी स्कूल से पत्र मिलता है, स्कूलों को मेंटेनेंस के लिए शासन द्वारा पर्याप्त राशि उपलब्ध कराई जाती है. इस साल भी 2.25 करोड़ का बजट शासन द्वारा पास किया गया है. जिसमे राजधानी के 40 स्कूल शामिल हैं और अगले 6 महीने के अंदर इन स्कूलों में काम किया जाएगा.

क्या कहते हैं स्कूल शिक्षा मंत्री

वहीं स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार का कहना है कि नई शिक्षा नीति के मुताबिक प्रदेश के 10000 स्कूलों को गुणवत्तापूर्ण बनाया जाएगा. जिसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग को निर्देश दे दिए गए हैं. स्कूलों की सूची तैयार की जा रही है. प्रदेश भर के 10000 स्कूल इसमें शामिल किए गए हैं. जिन स्कूलों की स्थिति खराब होने के हालात में है उसके लिए भी बजट पास हो चुका है. जल्दी स्कूलों में काम शुरू हो जाएगा. स्कूलों में लाइब्रेरी सहित फर्नीचर बिल्डिंग के लिए बजट दिया जाएगा. स्कूल शिक्षा मंत्री का कहना है कि नई शिक्षा नीति में स्मार्ट स्कूल बनाए जाएंगे जिससे प्रदेश के छात्रों को फायदा मिलेगा.

सवाल ये है कि हर साल स्कूलों के लिए करोड़ों रूपये का बजट पास किया जाता है. बावजूद इसके बारिश आते ही स्कूलों की हालत जर्जर हो जाती है. हर साल स्कूलों को मरम्मत की ज़रूरत पड़ती है. शिक्षकों, प्राचार्यो का कहना है कि शासन से पर्याप्त बजट नहीं मिलता है. वहीं शासन का कहना है कि स्कूलों को प्रतिवर्ष बजट दिया जाता है. हालांकि ईटीवी भारत के रियलिटी चेक में हमने पाया कि राजधानी के प्रमुख इलाकों में स्थित शासकीय स्कूलों में छात्रों के लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं है. वहां ना लाइब्रेरी, ना पर्याप्त ग्राउंड, ना बिल्डिंग और ना ही छात्रों के बैठने को पर्याप्त टेबल कुर्सी है. ये वो स्कूल हैं, जो बजट के लिए शासन को पिछले कई सालों से पत्र लिख रहे हैं. जिन स्कूलों को पिछले वर्ष बजट मिल चुका है. उन स्कूलों में भी लाइब्रेरी और लेब की व्यवस्था नहीं है.

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