Independence Day: आजादी की लड़ाई में चंबल का नेतृत्व करते थे ये रणबांकुरे, जानिए इन सपूतों की वीर गाथाएं

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Published : Aug 15, 2021, 6:06 AM IST

आजादी की लड़ाई में चंबल का नेतृत्व करते थे ये रणबांकुरे
आजादी की लड़ाई में चंबल का नेतृत्व करते थे ये रणबांकुरे ()

आजादी की लड़ाई में भिंड का विशेष महत्व रहा है. भिंड जिले के कई रणबांकुरों ने 1857 से लेकर 1947 तक देश के लिए लड़ी गई आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उसमें रामप्रसाद बिस्मिल, गेंदालाल दीक्षित, दौलत सिंह, चिमनाजी, बंकट सिंह जैसे कई वीर शामिल है.

भिंड। हमारा देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पर ईटीवी भारत भी आजादी से जुड़े किस्से और वीरों की गाथाएं आपके सामने ला रहा है. मध्य प्रदेश के छोटे से भिंड की भी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. फिर चाहे वह 1857 की क्रांति हो या क्विट इंडिया मूवमेंट. भिंड के सपूतों ने अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए कई बलिदान किए हैं. ऐसे ही रणबांकुरों से जुड़े किस्से और इतिहास को संजोया है भिंड के इतिहासकार और वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट देवेंद्र चौहान ने.

इतिहासकार देवेंद्र चौहान से जानिए भिंड के क्रांतिकारियों की कहानी

एडवोकेट देवेंद्र चौहान बताते हैं कि भारत की आजादी के लिए समय-समय पर कई आंदोलन हुए हैं और हर समय चंबल के वीरों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 1857 की क्रांति, लाला हरदयाल के नेतृत्व में गदर पार्टी का गठन, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, 1942 का क्विट इंडिया मूवमेंट, इन सभी में भिंड के वीरों ने अहम किरदार निभाया है.

1857 की क्रांति में भिंड के दौलत सिंह

देश की आजादी के लिए सबसे पहली चिंगारी 1857 में उठी थी. भिंड जिले के बौहारा गांव में जन्में दौलत सिंह कुशवाह भी इस आंदोलन का हिस्सा थे. उन्होंने आजादी के विद्रोह के लिए तय तारीख 31 मई को अपने साथी बरजोर सिंह के साथ मिलकर दबोह पर हमला कर दतिया रियासत की सेना को अपने अधीन कर लिया था. उस दौरान सेना में कई अंग्रेजी सैनिक भी थे. कब्जे के बाद दौलत सिंह ने आजादी की घोषणा भी कर दी थी. इसके बाद 2 जुलाई 1857 को दौलतसिंह ने बरजोर सिंह के साथ मिलकर कौंच कर भी आक्रमण किया और उसे अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कर लिया था. बाद में दौलत सिंह और बरजोर सिंह पर 2-2 हजार का इनाम घोषित हुआ और उनके पिता चिमनाजी पर भी 1 हजार का इनाम घोषित किया गया था.

भिंड के रहने वाले थे रामप्रसाद बिस्मिल
भिंड के रहने वाले थे रामप्रसाद बिस्मिल

गेंदालाल दीक्षित ने 40 जिलों में खड़ा किया था संगठन

इतिहासकार देवेंद्र चौहान बताते हैं कि यह बहुत कम लोग जानते हैं कि गेंदा लाल दीक्षित का जन्म भिंड जिले के परा गांव में हुआ था. यहां उनकी मूवमेंट रही उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाईयां लडी थी. वे मातृ वेदी सेना के सुप्रीम कमांडर थे. उन्होंने उस समय अंतरप्रांतीय 40 जिलों में अपना संगठन खड़ा किया था उनके साथ 2000 वर्दी धारी सैनिक थे और 500 घुड़सवार सैनिक और उनके असिस्टेंट कमांडर रामप्रसाद बसमिल थे. उन दोनों की अमरीका से आये क्रांतिकारी करतार सिंह और अन्य बड़े क्रांतिकारियों से निकटता थी. बाद में जिस तरह करतार सिंह पर लाहौर कॉन्सपिरेसी केस चला, उसी तर्ज पर गेंदालाल पर भी अंग्रेजों ने मैनपुरी कॉन्सपिरेसी केस चलाया था.

अपनों की गद्दारी से पहुंचे थे जेल

गेंदालाल दीक्षित को लेकर एक किस्सा शेयर करते हुए देवेंद्र चौहान ने बताया कि 31 जनवरी 1918 में गेंदालाल मिहोना में अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ गए. उस दौरान उनके एक करीबी हिन्दू सिंह के यहां भोजन की व्यवस्था की थी. इस दौरान उनके भोजन में जहर मिला दिया गया था. इसी समय इटावा के अंग्रेज पुलिस कमिश्नर ने आसपास घेरा बंदी कर फायरिंग कर दी थी, जिसमें गेंदालाल के 36 साथी मारे गए थे. खुद गेंदालाल 3 गोलियां लगने के बाद घायल हो गए थे.

भिंड के रहने वाले थे रामप्रसाद बिस्मिल
भिंड के रहने वाले थे रामप्रसाद बिस्मिल

जेल तोड़कर फरार हुए गेंदालाल

गेंदालाल को भिंड जेल लाया गया और वहां से ग्वालियर ले जाया गया.इसी बीच जब ब्रिटिश राज को पता चला कि यह विद्रोह सिर्फ ग्वालियर रियासत तक नहीं बल्कि बड़े स्तर पर ब्रिटिश राज के खिलाफ आजादी का युद्ध छेड़ने की योजना है, तब गेंदालाल दीक्षित पर मैनपुरी कॉन्सपिरेसी केस चलाया गया था. ग्वालियर में एसपी द्वारा पूछताछ के बाद उन्हें हवालात में बंद किया गया, तो उनके एक साथी देव नारायण ने उन तक फूलों की टोकरी में रखकर बंदूर और लोहा काटने की आरी पहुंचा दी. उसी रात गेंदालाल सरिया काटकर जेल से फरार हो गए.

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चंबल के ही थे रामप्रसाद बिस्मिल

ये कम ही लोग जानते है काकोरी कांड के नायक रामप्रसाद बिस्मिल भी चंबल से थे. 1924 में उन्होंने देश में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. पूरे संगठन को उन्होंने खड़ा किया और उनके गुरु गेंदालाल के साथ वे पहले भी काम कर चुके थे. गेंदालाल दीक्षित का भी पहले से ही 40 जिलो में संगठन खड़ा हुआ था, ऐसे में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का एक मजबूत और सबसे बड़ा ढांचा खड़ा करने का श्रेय राम प्रसाद बिस्मिल को जाता है.

चंबल के इतिहास को मिटाने की हुई कोशिश

इतिहासकार देवेंद्र चौहान कहते हैं कि क्विट इंडिया मूवमेंट में देखा जाए, तो चंबल अंचल के यह क्रांतिकारी रेड स्टार है, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने में कई बलिदान दिए. गेंदालाल दीक्षित, दौलत सिंह, चिमनाजी, बंकट सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लेकिन अंग्रेजों ने इन वीरों को बदनाम करने की कोशिश की. आजादी की लड़ाई के इनके इतिहास को मिटा दिया गया. चंबल क्षेत्र को डकैतों का इलाका कहा गया.

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