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Azadi Ka Amrit Mahotsav चम्बल के वे क्रांतिवीर जिन्होंने देखा था आजाद भारत का सपना, प्रथम स्वतंत्रता क्रांति से लेकर देश की आजादी तक निभाई अहम भूमिका

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Published : Aug 15, 2022, 10:40 PM IST

Role of Chambal in independence of country
देश की आजादी में चंबल की भूमिका

हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव माना रहा है भारत की आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के मौके पर ईटीवी भारत भी आजादी से जुड़े किस्से और वीरों की गाथाएं आपके सामने ला रहा है. मध्य प्रदेश के छोटे से भिंड की भी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. फिर चाहे वह 1857 की क्रांति हो या क्विट इंडिया मूवमेंट. भिंड के सपूतों ने अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए कई बलिदान किए हैं. Azadi Ka Amrit Mahotsav

भिंड। भिंड के इतिहासकार और वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट देवेंद्र चौहान बताते हैं कि भारत की आजादी के लिए समय-समय पर कई आंदोलन हुए हैं और हर समय चंबल के वीरों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 1857 की क्रांति, लाला हरदयाल के नेतृत्व में गदर पार्टी का गठन, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, 1942 का क्विट इंडिया मूवमेंट, इन सभी में भिंड के वीरों ने अहम किरदार निभाया है. Azadi Ka Amrit Mahotsav

Azadi Ka Amrit Mahotsav
चम्बल के क्रांतिवीर

बौहारा के दौलत सिंह रहे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा: देश की आजादी के लिए सबसे पहली चिंगारी 1857 में उठी थी. भिंड जिले के बौहारा गांव में जन्में दौलत सिंह कुशवाह भी इस आंदोलन का हिस्सा थे. उन्होंने आजादी के विद्रोह के लिए तय तारीख 31 मई को अपने साथी बरजोर सिंह के साथ मिलकर दबोह पर हमला कर दतिया रियासत की सेना को अपने अधीन कर लिया था. उस दौरान सेना में कई अंग्रेजी सैनिक भी थे. कब्जे के बाद दौलत सिंह ने आजादी की घोषणा भी कर दी थी. इसके बाद 2 जुलाई 1857 को दौलतसिंह ने बरजोर सिंह के साथ मिलकर कौंच कर भी आक्रमण किया और उसे अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कर लिया था. बाद में दौलत सिंह और बरजोर सिंह पर 2-2 हजार का इनाम घोषित हुआ और उनके पिता चिमनाजी पर भी 1 हजार का इनाम घोषित किया गया था.

दो भाई जिन्होंने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ी अनेकों लड़ाइयां: जब आज़ादी के प्रथम संग्राम की बात चलती है तो चम्बल के दो सपूतों का नाम भी याद आता है जो भले ही निचली जाति से थे लेकिन देश के लिए समर्पित जीवन के उसूल ने उन्हें इतिहास के पन्नों में जगह दिलायी है. ये भाई थे जंगली-मंगली, इतिहासकार देवेंद्र चौहान के मुताबिक ये बहुत कम रिकॉर्ड्स में आया की 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सबसे ज़्यादा निचली जातियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, चम्बल अंचल में भी ये देखने को मिला कहने को जंगली मंगली मेहतर (जमादार) जाति से थे लेकिन ये अभिलेखों में आया है कि चकरनगर को केंद्र करके 100 मील के घेरे में अंग्रेजी फोजों से जो भी युद्ध हुए हैं ये दोनों बिना चूके मोर्चे पर रहे हैं और युद्ध लड़ा है और मिसाल कायम की है. 1 नवम्बर 1857 को शेरगढ़ युद्ध, 3 दिसम्बर 1857 इटावा पर कब्जे का युद्ध, जनवरी से अप्रैल प्रारम्भ तक 1858 भोगनीपुर, कानपुर देहात में ब्रिटिश सेना नायक मेक्सेबल के सैन्यबल से हुए युद्ध, कालपी कानपुर तथा चरखारी की लड़ाईयों में उन्होंने भाग लिया. 28 अगस्त को गोहानी पर अंग्रेजों ने हमला किया तब जंगली और मंगली ने अपनी अचूक निशानेबाजी से अनेक गोरे सैनिकों का वध कर दिया था. 6 सितम्बर 1858 को चकर नगर युद्ध में भी वे वीरता से लड़े थे और 11 सितम्बर 1858 को जब बहुत बड़ी संख्या में अंग्रेजी सेनाओं ने सहसों पर चढ़ाई की, उस युद्ध में वीर निशाने बाज जंगली-मंगली ने 22 अंग्रेज सैनिकों का वध किया था. उसी युद्ध में वे दोनों शहीद हो गए थे. इस बात का जिक्र कई इतिहास लेखकों की किताबों में भी है.

वीर राजा भगवंत सिंह ने झाँसी की रानी के साथ दी थी शहादत: बात जब भिंड के सपूतों की चले तो अमायन के राजा भगवंत सिंह कुशवाह का नाम आना लाज़मी है 1840 के दशक में अमायन क्षेत्र के बिलाव से आए राजा भगवंत सिंह जनता में अत्यंत लोकप्रिय थे. उन्होंने भी अपने जीवनकाल में देश को आजाद कराने और अँग्रेजी हुकूमत के आगे सिर ना झुकाने का फ़ैसला लिया था यही वजह थी की 1857 की क्रांति से पहले भी उन्होंने अंग्रेजों के ख़िलाफ कई युद्ध लड़े. 22 मई कालपी के पतन के बाद ग्वालियर को क्रान्ति का नया केन्द्र बनाने के क्रान्तिकारी नेतृत्व के समर अभियान में भी वीर भगवंतसिंह समर्पित भाव से साथ रहे थे. ग्वालियर पर क्रान्तिकारियों का 1 जून 1858 से लेकर 18 जून 1958 तक कब्जा रहा था. 17-18 जून के निर्णायक युद्ध में ग्वालियर में पंचनद और भिण्ड अंचल में योद्धाओं ने आत्मोसर्ग की भावना से भाग लिया, उस युद्ध में इस क्षेत्र के असंख्य योद्धा शहीद हुए थे. वीर भगवंत सिंह कुशवाह ने 18 जून 1858 को राष्ट्रीय क्रान्ति नायिका लक्ष्मीबाई के साथ अपना बलिदान दिया था. वीर योद्धा बुरी तरह से घायल हुए थे. हमारे अंचल के 2000 से अधिक योद्धा अंग्रेजी सेना की घेराबंदी तोड़कर अपने घायल साथियों को सुरक्षित ग्वालियर से निकालकर अपने क्षेत्र में वापस लौटने में सफल रहे थे. वीर भगवंत सिंह के अपूर्व बलिदान का समाचार सुनकर उनकी जीवन संगनी पत्नी रानी अमायन में सती हो गई थीं. रानी की स्मृति में अमायन कस्बे में स्थित सती स्थल तभी से आम जनता और महिलाओं का पूजा स्थल बन गया वीर भगवंतसिंह कुशवाह के वंशज वर्तमान में सिंध नदी के किनारे बसे भिंड ज़िले के ग्राम बिलाव में रहते हैं.

अंग्रेजों के खिलाफ फौज खड़ी करने वाले गेंदालाल दीक्षित: इतिहासकार देवेंद्र चौहान बताते हैं कि यह बहुत कम लोग जानते हैं कि गेंदा लाल दीक्षित का जन्म भिंड जिले के परा गांव में हुआ था. यहां उनकी मूवमेंट रही उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाईयां लडी थी. वे मातृ वेदी सेना के सुप्रीम कमांडर थे. उन्होंने उस समय अंतरप्रांतीय 40 जिलों में अपना संगठन खड़ा किया था उनके साथ 2000 वर्दी धारी सैनिक थे और 500 घुड़सवार सैनिक और उनके असिस्टेंट कमांडर रामप्रसाद बिसमिल थे. उन दोनों की अमरीका से आये क्रांतिकारी करतार सिंह और अन्य बड़े क्रांतिकारियों से निकटता थी. बाद में जिस तरह करतार सिंह पर लाहौर कॉन्सपिरेसी केस चला, उसी तर्ज पर गेंदालाल पर भी अंग्रेजों ने मैनपुरी कॉन्सपिरेसी केस चलाया था.

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अपनों ने दिया था गेंदालाल दीक्षित को धोखा: गेंदालाल दीक्षित को लेकर एक किस्सा शेयर करते हुए देवेंद्र चौहान ने बताया कि 31 जनवरी 1918 में गेंदालाल मिहोना में अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ गए. उस दौरान उनके एक करीबी हिन्दू सिंह के यहां भोजन की व्यवस्था की थी. इस दौरान उनके भोजन में जहर मिला दिया गया था. इसी समय इटावा के अंग्रेज पुलिस कमिश्नर ने आसपास घेरा बंदी कर फायरिंग कर दी थी, जिसमें गेंदालाल के 36 साथी मारे गए थे. खुद गेंदालाल 3 गोलियां लगने के बाद घायल हो गए थे. गेंदालाल को भिंड जेल लाया गया और वहां से ग्वालियर ले जाया गया.इसी बीच जब ब्रिटिश राज को पता चला कि यह विद्रोह सिर्फ ग्वालियर रियासत तक नहीं बल्कि बड़े स्तर पर ब्रिटिश राज के खिलाफ आजादी का युद्ध छेड़ने की योजना है, तब गेंदालाल दीक्षित पर मैनपुरी कॉन्सपिरेसी केस चलाया गया था. ग्वालियर में एसपी द्वारा पूछताछ के बाद उन्हें हवालात में बंद किया गया, तो उनके एक साथी देव नारायण ने उन तक फूलों की टोकरी में रखकर बंदूक और लोहा काटने की आरी पहुंचा दी. उसी रात गेंदालाल सरिया काटकर जेल से फरार हो गए थे. साथ ही एक सरकारी गवाह को भी अपने साथ ले गए थे. मजे की बात यह थी कि पुलिस ने सारे हथकण्डे अपना लिये परन्तु उन्हें अन्त तक खोज नहीं पायी थी आखिर में कोर्ट को उन्हें फरार घोषित करके मुकदमे का फैसला सुनाना पड़ा था.

रामप्रसाद बिस्मिल ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी बनाने में निभाई थी भूमिका: ये कम ही लोग जानते है काकोरी कांड के नायक रामप्रसाद बिस्मिल भी चंबल से थे. 1924 में उन्होंने देश में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. पूरे संगठन को उन्होंने खड़ा किया और उनके गुरु गेंदालाल के साथ वे पहले भी काम कर चुके थे. गेंदालाल दीक्षित का भी पहले से ही 40 जिलो में संगठन खड़ा हुआ था, ऐसे में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का एक मजबूत और सबसे बड़ा ढांचा खड़ा करने का श्रेय राम प्रसाद बिस्मिल को जाता है.

चंबल के इतिहास को मिटाने की हुई कोशिश: इतिहासकार देवेंद्र चौहान कहते हैं कि चाहे 1857 की क्रांति हो या क्विट इंडिया मूवमेंट. देखा जाए, तो चंबल अंचल के यह क्रांतिकारी रेड स्टार है, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने में कई बलिदान दिए. गेंदालाल दीक्षित, दौलत सिंह, चिमनाजी, बंकट सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लेकिन अंग्रेजों ने इन वीरों को बदनाम करने की कोशिश की. आजादी की लड़ाई के इनके इतिहास को मिटा दिया गया. चंबल क्षेत्र को डकैतों का इलाका कहा गया.

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