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पंचायत चुनाव रद्द होने के बावजूद बैतूल की पंचायत में आम सहमति से हुआ सरपंच का चयन, कोविड से डरकर उठाया कदम

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Published : Dec 31, 2021, 12:31 PM IST

भले ही पंचायत चुनाव (mp panchayat elections 2022) टल गए हों, लेकिन बैतूल से एक अनोखी तस्वीर सामने आई है. यहां एक गांव में कोविड के दर्जन भर मौत होने के बाद ग्रामीणों ने कुर्सी के लिए लड़ने झगड़ने से तौबा कर ली हैं. ग्राम पंचायत में आदिवासी महिला सरपंच से लेकर 20 पंच तक आम सहमति चुन लिए गए. देखिये यह खास रिपोर्ट

mp panchayat elections 2022
बैतूल पंचायत चुनाव

बैतूल। मध्य प्रदेश में भले ही पंचायत चुनाव (mp panchayat elections 2022) टल गए हों, लेकिन बैतूल में कोविड प्रोटोकाल को मानने की वजह से आम सहमति से सरपंच और पंच का चयन किया गया. ग्रामीणों का मानना है कि चुनाव में आपस में मिलने-जुलने से भीड़ होती है. इससे कोविड का खतरा बढ़ता है. जहां पंचायत चुनाव चरम पर है वहीं बैतूल में अनोखा चुनाव देखने को मिला है. यहां पढ़े-लिखे लोगों को मौका दिया गया है. इसके पीछे एक कारण मौत का खौफ भी है. कोरोना के कारण यहां 12-13 लोगों की मौत हो गई थी. आम राय से सरपंच से लेकर 20 पंच तक सहमति से चुने. गांव वालों की इस पहल की खूब तारीफ की जा रही है. देखिये ये खास रिपोर्ट

बिना चुनाव के बनाया सरपंच
बैतूल के चिचोली जनपद की देवपुर कोटमी में पंचायत चुनाव में सरपंच से लेकर पंच तक बिना किसी लड़ाई झगड़े, प्रतिद्वंदिता और चुनाव के आम राय से चुन लिए गए हैं. कोविड में हुई मौतों का यहां ऐसा डर बैठा कि गांव वालों ने तय किया कि गांव में सरपंच और पूरे 20 पंच बिना किसी चुनाव के चुने जाएंगे. उन्होंने किया भी ऐसा ही. वार्ड से लेकर गांव तक जो सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा था. उसे सरपंच और पंच बना दिया गया. ग्रामीणों ने बैठक कर यहां आपसी सहमति बनाकर तय किया कि किसी भी वार्ड में पंच के लिए कोई दूसरा फार्म न भरे. ऐसा ही सरपंच पद के लिए किया गया. नतीजा यह हुआ की सरपंच और पंच निर्विरोध चुन लिए गए. यहां आदिवासी महिला निर्मला अम्बर इवने (selection of sarpanch by consensus in panchayat of Betul) को सरपंच चुना गया है. यह पंचायत आदिवासी महिला के लिए आरक्षित है.

कोविड से लिया फैसला
कोविड त्रासदी के दौरान इस ग्राम पंचायत में एक दर्जन लोगों ने जान गंवाई थी. मौतों ने सारे गांव को एक प्रेरणा दी कि जब सबको मरना ही है तो पार्टी बंदी और वैमनस्यता क्यों की जाए. इसी बीच जब पंचायत चुनाव आये तो एक बैठक आयोजित कर तय किया गया कि कोई भी सरपंच और पंच चुनाव के लिए एक दूसरे के खिलाफ नामांकन फार्म नहीं भरेगा. सभी पद आम राय से तय किये जायेंगे. बैठक के बाद महासभा में भी यही आम सहमति बनी और जो चुनाव लड़ना भी चाहते थे. उन्होंने भी फार्म न भरकर आम राय को मजबूत कर दिया.

आदिवासी महिला को ही क्यों बनाया सरपंच ?
ग्रामीणों ने बैठक में तय किया कि ग्राम पंचायत चूंकि आदिवासी महिला के लिए आरक्षित है, इसलिए इस वर्ग की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी जो भी महिला होगी उसे सरपंच बना दिया जाए. वार्डों में जो पंच ज्यादा पढ़े और सक्षम है, जिनकी दूसरों पर निर्भरता कम है. उन्हें इन पदों के लिए चुन लिया जाए.

सरपंच के लिए क्या-क्या जिम्मेवारी हुईं तय ?
इस फैसले के बाद गांव में दसवीं कक्षा तक पढ़ी निर्मला अम्बर इवने को सरपंच चुन लिया गया. जबकि ऐसे ही 20 पंच भी चुन लिए गए. इनमे सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा युवक 12वीं पास है. सरपंच पद के लिए चुनी गई अम्बर की प्राथमिकता गांव में हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल खुल जाएं. यही नहीं गांव में महिलाओं को पेयजल के लिए दूर तक न जाना पड़े. इसकी वजह यह है कि गांव में मिडिल स्कूल के आगे पढ़ने के लिए बच्चों को दूसरे गांव की राह पकड़नी पड़ती है, जबकि गांव में शुरू हुए नल जल योजना भी शुरू होने के बाद ही बंद हो गई थी. सरपंच ने भरोसा जताया है कि पद संभालते ही उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता यही होगी बच्चों के लिए शिक्षा और महिलाओं के लिए पेयजल संकट को दूर करना.

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गांव की इस पहल की हर तरफ सराहना की जा रही है. इस इलाके के रिटर्निंग ऑफिसर तहसीलदार नरेश सिंह राजपूत ने ग्रामीणों की इस पहल की तारीफ की है. उन्होंने कहा कि इस गांव से सिर्फ एक-एक व्यक्तियों का ही नामांकन मिला था. अब आगे निर्वाचन आयोग के जैसे निर्देश होंगे, वैसे परिणाम की घोषणा की जाएगी. उन्होंने कहा कि एकजुट होकर निर्णय लिया जाना अनुकरणीय है.

सभी बड़े बुजुर्गों ने मुझे एक राय होकर चुना है मन में बहुत कुछ कर गुजरने का प्लान है. पद पर रहेंगे तो देश और गांव के लिए बहुत कुछ करना है. घर के काम तो हम सभी करते ही हैं.

निर्मला अम्बर इवने, चुनी सरपंच

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