ETV Bharat / state

क्यों बौखला गए हैं नक्सली? (Maoist under pressure) बढ़ते नक्सली हमले का सच, माओवादियों के खात्मे का प्लान तैयार!

author img

By

Published : Dec 9, 2021, 2:19 PM IST

Updated : Dec 9, 2021, 4:24 PM IST

Maoist under pressure
क्यों बौखला गए हैं नक्सली

नक्सलियों के हमले अचानक बढ़ गए हैं. मध्यप्रदेश के बालाघाट में एक हफ्ते में नक्सलियों ने 3 बार आगजनी कर सरकारी काम में लगे कर्मचारियों को भगाया है. जो पोस्टर नक्सलियों ने छोड़ा उसमें गढ़चिरौली (Gadchiroli Naxal movement) में मारे गए 26 नक्सलियों को श्रद्धांजलि के लिए मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ औऱ महाराष्ट्र में बंद का आह्वान किया है. नक्सलियों की हरकत उनकी बौखलाहट दिखा रही है(Maoist under pressure in MP).

बालाघाट। मध्यप्रदेश में नक्सली एकबार फिर एक्टिव हो गए हैं. छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र की सीमा से लगे बालाघाट में नक्सली लगातार हमला कर रहे हैं. पिछले एक हफ्ते में ही नक्सलियों ने आगजनी की तीन घटनाओं को अंजाम दिया है जिसमें सड़क निर्माण कार्य में लगी मशीनरी सहित अन्य वाहनों को आग के हवाले कर दिया. ये नक्सलियों की बौखलाहट दिखाता है. दरअसल पिछले कुछ महीनों में नक्सलियों पर जिस तरह सुरक्षाबलों का दबाव बढ़ा है और एनकाउंटर में उनके शीर्ष नेता मारे गए हैं तब से अपनी खोई ज़मीन पाने के लिए नक्सली ऐसी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. तो क्या माना जाए, नक्सलियों का खात्मा नज़दीक है?(Maoist under pressure in MP), क्या गरीब आदिवासियों का नक्सलियों से मोहभंग हो रहा है?, क्या नक्सली अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं? ऐसे कई सवाल हैं जिन पर आगे चर्चा करेंगे.

Naxal call Bandh
नक्सलियों का बंद का आह्वान

मध्यप्रदेश में सिमट गया है नक्सलियों का साम्राज्य

छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद मध्यप्रदेश में नक्सल प्रभावित इलाके काफी कम रह गए लेकिन फिलहाल राज्य सरकार ने बालाघाट, मंडला और डिंडौरी ज़िलों को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रखा है.बालाघाट जि़ला छत्तीसगढ़ और महाराष्ट की सीमा से लगा हुआ है और ये नक्सलियों के जंगल के रास्ते आने-जाने के कॉरिडोर में पड़ता है. इसके अलावा पुलिस का दबाव बढ़ने पर नक्सली मंडला और डिंडौरी ज़िलों में भी शरण लेते हैं. नक्सलियों के खिलाफ बेहतर तालमेल के लिए बालाघाट, मंडला और डिंडौरी ज़िलों को मिलाकर एक आईजी ज़ोन बनाया गया है. 29 नवंबर को CM शिवराज सिंह चौहान को पुलिस अधिकारियों ने बताया गया कि पिछले 2 साल में 7 कट्टर माओवादी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए जबकि 3 को गिरफ्तार किया गया.इनसे हथियार, गोला बारूद की बरामदगी हुई साथ ही, तेंदूपत्ता ठेकेदारों से जबरन वसूली पर भी रोक लगी है. अधिकारियों ने ये भी बताया कि इस दौरान माओवादियों को हथियार आपूर्ति करने के आरोप में 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया. पुलिस के बढ़ते दबाव के कारण नक्सली अनाज, दवाओं के लिए तरस रहे हैं. संगठन की सप्लाई चेन बेहद कमजोर हो चुकी है. आंध्रप्रदेश के सप्लाई चेन से अनाज, दवाएं मंगवाई जा रही हैं.

Maoist under pressure
सड़क निर्माण में लगे डंपर को लगाई आग

नक्सलियों के सफाए से बौखलाहट

दरअसल नक्सलियों के खिलाफ सामूहिक ऑपरेशन से उनका मनोबल काफी हद तक टूटा है. 14 नवंबर को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में हुए एनकाउंटर में एकसाथ 26 नक्सली ढेर हो गए थे जिसमें जीवा नाम का माओवादी कमांडर भी शामिल था. छत्तीसगढ़, झारखंड में भी सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के सफाए के लिए लगातार ऑपरेशन चलाए हैं जिससे उनकी ज़मीन हिल गई है. प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा-माओवादी(Banned Naxal outfit) के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के सचिव प्रशांत बोस उर्फ किशन दा (Naxal leader Prashant Bose)और उनकी पत्नी शीला मरांडी (Sheila Marandi) को झारखंड पुलिस ने गिरफ्तार कर तगड़ा झटका दिया. पांच राज्यों का प्रमुख प्रशांत बोस माओवादियों के पोलित ब्यूरो का सदस्य था और उस पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था. सुरक्षाबलों ने नक्सलियों पर लगातार दबाव बनाए रखा है, सर्च ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं, एनकाउंटर किए जा रहे हैं, जिससे उन्हें अपनी खोई ज़मीन हासिल करने में मुश्किल आ रही है, यही वजह है कि अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए वो रह रह कर हमले कर रहे हैं.

Maoist under pressure
क्यों बौखला गए हैं नक्सली

आदिवासियों का नक्सलियों से मोहभंग

नक्सली भोले भाले आदिवासियों को बरगला कर, सरकार, प्रशासन के खिलाफ उनका ब्रेनवॉश कर और अच्छी ज़िन्दगी देने का लालच देकर अपने साथ मिलाने का काम करते रहे हैं. आदिवासी बहुल क्षेत्रों में गरीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा, बुनियादी सुविधाओं की कमी नक्सलियों को अपने मकसद में कामयाब होने में मदद करती है. नक्सली आदिवासियों को उकसा कर उन्हें भड़का न केवल उनके बीच पैठ बनाते हैं बल्कि अपने संगठन में शामिल होने के लिए आदिवासी युवाओं को प्रेरित करते हैं. लेकिन 50 साल से ज़्यादा समय हो गया आदिवासियों की ज़िन्दगी नहीं बदल पाए. सरकार ने ज़रूर पिछड़े आदिवासी इलाकों में सड़क, स्कूल, अस्पताल बनाने के साथ ही आदिवासी युवाओं को रोज़गार देने की मुहिम शुरू की है जिससे आदिवासियों का नक्सलियों से मोहभंग हो रहा है. अब नक्सलियों को अपने संगठन में भर्ती करने के लिए लोग भी नहीं मिल रहे. ऐसे में नक्सली आदिवासियों को डराने के लिए पुलिस का मुखबिर बताकर हत्याएं भी करते हैं. इसी साल जुलाई में बालाघाट में एक ग्रामीण और फिर नवंबर में 2 गांववालों की हत्या पुलिस का मुखबिर बताकर कर दी गई.

आदिवासी इलाकों में विकास नहीं चाहते नक्सली

नक्सली नहीं चाहते कि बालाघाट, डिंडौरी, मंडला के आदिवासी इलाकों में विकास की बयार बहे. ज़ाहिर है पिछड़े आदिवासी इलाकों में सड़क बनेगी स्कूल, अस्पताल खुलेंगे तो इलाके का पिछड़ापन गरीबी दूर होगी. ऐसे में नक्सली आदिवासियों को सरकार प्रशासन के खिलाफ भड़का नहीं पाएंगे. यही वजह है कि नक्सली सड़क निर्माण में लगे सरकारी कर्मचारियों ठेकेदारों पर हमले करते हैं, उनकी मशीनों में आग लगा देते हैं ताकि डर के मारे सड़कें न बन सके. सड़क न बनने के पीछे एक वजह ये भी है कि इससे सुरक्षाबलों का मूवमेंट आसान हो जाता है जिससे नक्सलियों की मुश्किल बढ़ जाती है.

Maoist under pressure)
क्यों बौखला गए हैं नक्सली

बालाघाट में लाल आतंक! एक हफ्ते में तीन बार आगजनी, नक्सलियों ने लगाए वार्निंग पोस्टर

सरकारी योजनाओं से आदिवासियों को फायदा

सरकार गरीब आदिवासियों के लिए लगातार योजनाएं चला रही है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि वर्ष 2020-21 में नक्सल प्रभावित जिलों में 12 लाख मज़दूरों को रोजगार दिया गया. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पिछले 5 साल में 375 करोड़ रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण कार्य कराये गये. मुख्यमंत्री चौहान ने बताया कि प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलवाद को नियंत्रित करने के लिये पुलिसिया कार्रवाई के साथ ही लगातार विकास के कार्य कराये जा रहे हैं. प्रभावित क्षेत्र में लोगों को बड़े पैमाने पर मनरेगा के तहत रोज़गार दिलाया जा रहा है. पिछले 5 साल में 375 करोड़ रुपये खर्च कर 430 किलोमीटर सड़कें और 14 पुल बनाए गए. ज़ाहिर है सरकारी योजनाओं का फायदा आदिवासियों को मिल रहा है जिससे वो नक्सलियों के झांसे में नहीं आ रहे.

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे नक्सली

साफ है नक्सलियों पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है. कॉमरेड्स की कमी, पुलिस का बढ़ता दबाव और सरकार की विकास योजनाओं ने उनके लिए राह मुश्किल कर दी है. डर और आतंक के बल पर वो अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में लगे हैं. बालाघाट में सड़क निर्माण में लगे डंपर को आग लगाने, ठेकेदार, मज़दूरों का मोबाइल छीनकर उन्हें भगाने के बाद नक्सलियों ने जो बैनर लगाए और पोस्टर चिपकाए उसमें लिखा है-

शोषित और उत्पीड़ित जनता के प्यारे नेता और अथक वीर योद्धा कॉमरेड जीवा उर्फ मिलिंद तेलतुंवडे (MMC ज़ोन सेक्रेटरी और केंद्रीय केमेटी सदस्य) सहित 26 कॉमरेड्स की हत्या के विरोध में 10 दिसंबर,2021 को महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्य बंद सफल करो.

मा.क.पा(माओवादी) MMC ज़ोनल कमेटी

ज़ाहिर है गढ़चिरौली में नक्सलियों को जो चोट सुरक्षाकर्मियों ने दी है उससे वो उबर नहीं पाए हैं. तीन राज्यों में बंद का कोई असर नहीं होगा ये भी नक्सली जानते हैं, ऐसे में बंद का आह्वान को उनका प्रोपगेंडा स्टंट ही कहा जाएगा. हालांकि बालाघाट में एक हफ्ते में नक्सलियों की 3 वारदात पुलिस की सुस्ती की ओर भी इशारा करती है.

(Naxal movement in mp) (home ministry report on naxal areas of mp) (Banned Naxal outfit in india)

Last Updated :Dec 9, 2021, 4:24 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.