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Parivartini Ekadashi 2022: परिवर्तिनी एकादशी पर इस मुहूर्त में करें पूजा और पारण, जानिए व्रत कथा और पूजन विधि

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Published : Sep 5, 2022, 9:05 PM IST

Parivartani Ekadashi 2022
परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. 6 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी है. भादो मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी या पद्मा एकादशी के नाम से भी जानते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि को भगवान विष्णु चतुर्मास के शयन के दौरान अपने करवट बदलते हैं. पढ़कर जानें पूजन विधि, शुभ ​मुहूर्त, पारण समय और व्रत कथा- Parivartini Ekadashi Pujan Vidhi, Parivartini Ekadashi Vrat Katha, Parivartini Ekadashi Shubh Muhurt, Parivartini Ekadashi Paran Time, Parivartini Ekadashi 2022

भोपाल। हिंदू पंचांग के अंतर्गत प्रत्येक माह की 11वीं तीथि को एकादशी कहा जाता है. एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है. हिन्दी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु योग निद्रा में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं. इस कारण से इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. इसे वामन एकादशी, पार्श्व एकादशी या जयंती एकादशी भी कहा जाता है. Parivartini Ekadashi 2022

परिवर्तिनी एकादशी शुभ ​मुहूर्त: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 6 सितंबर दिन मंगलवार को सुबह 05 बजकर 54 मिनट से होगा. इसका समापन अगले दिन 7 सितंबर दिन बुधवार को प्रात: 03 बजकर 04 मिनट पर होगा. व्रत के लिए उदयातिथि मान्य होती है, ऐसे में परिवर्तनी एकादशी का व्रत 7 सितंबर दिन बुधवार है. Parivartini Ekadashi Shubh Muhurt

परिवर्तिनी एकादशी का पारण समय: 7 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखेंगे, उनको व्रत का पारण अगले दिन 8 सितंबर दिन गुरूवार को प्रात: 06 बजकर 02 मिनट से प्रात: 08 बजकर 33 मिनट के मध्य कर लेना चाहिए. इसलिए आप इससे पूर्व पारण कर लें, एकादशी व्रत का पारण सदैव द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व कर लेना चाहिए. Parivartini Ekadashi Paran Time

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परिवर्तिनी एकादशी व्रत पूजा विधि: परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजन ब्रह्मा विष्णु समेत तीनों लोको की पूजा के समान है. इस पूजा की विधि इस प्रकार है. एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए. प्रातः उठ कर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाएं. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें. व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें. शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं. व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें. इसके अतिरिक्त चावल और दही का दान करें. एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें. Parivartini Ekadashi Pujan Vidhi

परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा: महाभारत काल के समय पांडु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया. भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो. त्रेता युग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था. वह सदैव यज्ञ तप आदि किया करता था. अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इंद्र के स्थान पर राज करने लगा. देवराज इंद्र और देवतागण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गए. देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की. इसके बाद मैंने बामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की.Parivartini Ekadashi Vrat Katha

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भगवान श्री कृष्ण ने कहा वामन रूप लेकर मैं राजा बलि से याचना की हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीनों लोकों के दान का फल प्राप्त होगा. राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया. दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पाव से पृथ्वी दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया. तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था. इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान बामन ने तीसरा पैर उसके सिर पर रख दिया. राजा बलि की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान बामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया. मैंने राजा बलि से कहा मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा. परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है. इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं.

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