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जबलपुर: जिस पानी को मवेशी भी पीने से कतराते हैं, उस पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं आदिवासी

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Published : May 13, 2022, 2:19 PM IST

Tribals forced to drink dirty and contaminated water
गंदा और दूषित पानी पीने को मजबूर आदिवासी

जबलपुर के ग्रामीण अंचलों में पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. आदिवासी ऐसा पानी पीने को मजबूर हैं जिसे मवेशी भी नहीं पीते. प्रदेश सरकार आदिवासियों के लिए तरह-तरह की योजना चला रही है, लेकिन उनको दी जाने वाली सुविधाएं धरातल पर नहीं दिख रही. आदिवासियों का कहना है कि सरकार उनके साथ छलावा कर रही है.

जबलपुर। ग्रामीण अंचलों में पानी को लेकर विकराल समस्या बनी हुई है. जहां लोग नदी-नाले से लेकर बावड़ी तक का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. हर साल गर्मी के मौसम में पानी की समस्या रहती है, यहां के आदिवासियों के साथ-साथ ग्रामीण अंचल व मैदानी क्षेत्रों में पानी की समस्या का संकट बना रहता है. आदिवासी लोग झिरिया के पानी पर निर्भर रहते हैं. सिस्टम से सवाल यह है कि आखिर गर्मी के दिनों में कब तक आदिवासी झिरिया का पानी पीते रहेंगे और कब तक इन लोगों को सरकारी मदद मिल पाएगी.

Water scarcity in rural areas of Jabalpur
जबलपुर के ग्रामीण अंचलों में पानी की किल्लत

मूलभूत सुविधाओं का अभाव: ग्राम पंचायत चिरापौड़ी के दुर्गानगर गांव में करीब आदिवासियों के 80 मकान बने हुए हैं. जिसमें बच्चे, नौजवाव और बुजुर्गों सहित 600 की जनसंख्या है. जिनके पास रहने के लिए खुद की जगह तक नहीं है. करीब 30 साल पहले बरगी डैम के केचमेंट एरिया से विस्थापित होकर यह सभी क्षेत्र में आकर बस गए थे. दुर्गा नगर के ग्रामीण हरिलाल बरकड़े और दुर्जन बरकड़े बताते है कि आदिवासियों के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं और घोषणाएं होती है, परंतु धरातल पर स्थिति कुछ और ही है.

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दूषित पानी पीने से ग्रामीण हो रहे बीमार: चरगवां ब्लॉक के ग्राम पंचायत चिरापोड़ी के दुर्गानगर गांव के आदिवासी ग्रामीण ऐसे पानी से अपने कंठ तर रहे हैं, जिससे मवेशी भी मुंह फेर लेते हैं. हर साल गर्मी आते ही इस क्षेत्र में पानी के लिए हाहाकार मच जाता है. जनप्रतिनिधियों से लेकर जनपद और जिला पंचायत के अफसर इस समस्या से लड़ने के लिए सिर्फ कागजों में ही प्लान बैठकें करते हैं. परंतु धरातल पर कुछ और ही है और यह सब पूरी गर्मी भर चलता रहता है. उसके बाद भी लोगों को पानी नहीं मिल पाता है. जबलपुर के बरगी विधानसभा का आदिवासी बहुल क्षेत्र इस समय पानी के विकराल संकट से जूझ रहा है. झीलें और जलाशय सूख रहे हैं, लाखों लोग पानी की कमी से पलायन कर रहे हैं, नदियां सूख रही है और कृषि बर्बाद हो रही है. साथ ही दूषित पानी पीने से ग्रामीण भी बीमार हो रहे है.

MP Government is cheating with tribals
आदिवासियों के साथ सरकार कर रही छलावा

नहीं हो रही सुनवाई: तिरेश बाई बताती हैं कि जिस गंदे पानी को ग्रामीण पी रहे हैं, उससे लोग अब बीमार भी पड़ने लगे हैं. पानी की समस्या से मवेशियों की जान को आफत है, कई लोग अपने मवेशियों को लेकर दूसरे क्षेत्र में पलायन कर गए हैं. परेशानी इस बात की है कि पानी की समस्या से परेशान ग्रामीण सरपंचों के नेतृत्व में पीएचई व जनपद कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन सुनवाई नहीं होने से ग्रामीण बेहद परेशान हैं.

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मवेशी भी नहीं पीते ऐसा पानी: पूर्व सरपंच काशीराम बरकड़े का कहना है कि जिस पानी को वह पी रहे हैं, वह हाथ धोने लायक भी नहीं है. लेकिन मजबूरी में गांव के लोग इस पानी को पीने पीने के लिए मजबूर हैं. जिससे लोग बीमार पड़ रहे है मगर कोई ध्यान देने वाला नहीं है. ग्रामीण ऐसा पानी पीने को मजबूर हैं, जिसे मवेशी भी नहीं पीते हैं. मजबूरी में सूखे कंठ को गीला कर रहे हैं, लोग यह पानी पीकर बीमार पड़ रहे हैं. पानी की समस्या को लेकर कई बार अधिकारियों को अवगत कराया लेकिन कोई सुनने वाला ही नहीं है.

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