Shardiya Navratri 2022: जानिए क्यों तवायफों के आंगन की मिट्टी के बिना पूरी नहीं होती मां दुर्गा की प्रतिमा, क्या हैं मान्यताएं

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Published : Sep 21, 2022, 11:42 AM IST

Updated : Sep 21, 2022, 1:15 PM IST

Durga idol made from red light soil

गणेश विसर्जन के बाद अब देश भर में माता की आराधना के पर्व दुर्गा पूजा की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, वहीं पश्चिम बंगाल और कोलकाता के मूर्तिकार देशभर में तरह-तरह की देवी प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे हैं. लेकिन इन प्रतिमाओं में सबसे खास है सोनागाछी की मिट्टी से तैयार प्रतिमाएं जिनकी मांग आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में है. प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर में भी अंचल के विभिन्न इलाकों में भेजी जाने वाली दुर्गा प्रतिमाओं में सोनागाछी की मिट्टी का उपयोग किया गया है, जिनकी उनके खास श्रद्धालुओं के बीच बड़ी मांग है. (red light areas soil important for durga idol) (Shardiya Navratri 2022)

इंदौर। इंदौर समेत उज्जैन, मनावर, कुक्षी, मंदसौर, धार, खंडवा, खरगोन आदि इलाकों के लिए इन दिनों इंदौर में जो मूर्तियां तैयार हो रही हैं, उनमें ऑर्डर पर सोनागाछी की मिट्टी का उपयोग किया जा रहा है. इस खास मिट्टी से तैयार होने वाली मूर्ति को लेकर धार्मिक मान्यता के अनुसार ग्राहक भी इस मिट्टी से बनी मूर्तियों की विशेष मांग के तहत खरीदी करने पहुंच रहे हैं, लिहाजा मूर्तिकारों को मूर्ति निर्माण की मान्यता के अनुरूप मूर्तियां तैयार करनी पड़ती हैं. इंदौर में बड़ी संख्या में मूर्ति तैयार कर रहे कोलकाता के मूर्तिकार अतुल पाल बताते हैं कि वह अपनी पारंपरिक विरासत के तहत जो मूर्तियां तैयार करते हैं, उसमें श्रद्धालुओं की मांग पर कुछ ऐसा सोनागाछी की मिट्टी का मिलाना पड़ता है इसके बाद ही वास्तविक मूर्ति तैयार हो पाती हैं. (red light areas soil important for durga idol)

वेश्यालय की मिट्टी के बिना पूरी नहीं होती मां दुर्गा की प्रतिमा

इसलिए खास है सोनागाछी की मिट्टी से बनीं प्रतिमाएं: गौरतलब है बंगाल में देह व्यापार करने वाली महिलाओं से दुर्गा पूजा का अभिन्न नाता रहा है, इसका बड़ा कारण दुर्गा पूजा के दौरान बनाई जाने वाली मूर्तियों में उनका योगदान है. पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार देवी की मूर्ति बनाने में गोमूत्र, गोबर, लकड़ी, सिंदूर, धान के छिलके, पवित्र नदियों के मिट्टी, विशेष वनस्पतियां और पानी के साथ ही रेड लाइट एरिया की मिट्टी (वेश्यालय की मिट्टी) का उपयोग कोलकाता और पश्चिम बंगाल के जमींदार परिवारों के लिए दुर्गा प्रतिमाएं तैयार करने के लिए होता था. कोलकाता के दुर्गा पंडालों को लेकर आज भी मान्यता है कि जब तक वैश्यालय के बाहर पड़ी मिट्टी को मूर्ति के सृजन के लिए इस्तेमाल में ना लाया जाए, तब तक वह मूर्ति अधूरी ही मानी जाती है. इसलिए हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल के सोनागाछी से मंगाई जाने वाली मिट्टी का उपयोग अब देश के विभिन्न राज्यों में दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए किया जाने लगा है. (Shardiya Navratri 2022)

मान्यता को लेकर यह है कहानी: बंगाल में मान्यता है कि, बहुत समय पहले एक तवायफ मां दुर्गा की बड़ी उपासक थी, लेकिन तवायफ होने के कारण उसे समाज में सम्मान प्राप्त नहीं था. समाज से बहिष्कृत वेश्या को उन दिनों तरह-तरह की यातनाएं सहन करनी होती थी, इसलिए अपनी भक्त को तिरस्कार से बचाने के लिए दुर्गा पूजा के दौरान स्वयं मां दुर्गा ने उसे आदेश देकर उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित कराने की परंपरा शुरू कराई थी. साथ ही देवी ने वेश्या को वरदान दिया था कि यहां की मिट्टी के उपयोग के बिना दुर्गा प्रतिमाएं पूरी नहीं होंगी. जानकारों के मुताबिक शारदा तिलक महार्णव मंत्र महोदधि आदि ग्रंथों में इस कहानी का उल्लेख मिलता है, इसके अलावा एक सामाजिक मान्यता यह भी है कि जब कोई व्यक्ति किसी वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी सारी पवित्रता तवायफ की चौखट के बाहर ही छोड़ देता है, इसलिए चौखट के बाहर की मिट्टी सबसे पवित्र मानी जाती है.

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ऐसे तैयार होती है मूर्तियां: मां दुर्गा की मूर्ति के निर्माण में जो मिट्टी उपयोग में लाई जाती है, उसे पानी में गलाने के बाद रोज एक कागज की लुगदी मिलाई जाती है. इसके अलावा कुछ अन्य सामग्री डालकर मिट्टी को गलाया जाता है, मिट्टी को गलाने के बाद इसे घोंटने का काम किया जाता है. जब मूर्ति बनाने के लिहाज से मिट्टी तैयार हो जाती है, तो इसे मूर्ति की आकृति दी जाती है. इसी मिट्टी में सोनागाछी की मिट्टी भी मिलाई जाती है, खासकर मूर्ति का चेहरा बनाने के लिए जो मिट्टी उपयोग होती है, उसमें सोनागाछी की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा प्राकृतिक रंगों से मूर्ति को रंगने के बाद श्रृंगार के लिए वस्त्र सजाकर एवं अन्य सामग्री का उपयोग किया जाता है. साथ ही मूर्ति में अस्त्र-शस्त्र एवं अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग किया जाता है. कोलकाता के अलावा गुजरात एवं उत्तर प्रदेश के गंगा किनारों के इलाके से मिट्टी बुलाई जाती है, फिलहाल इस तरह की मिट्टी ₹600 प्रति बोरी की दर से मूर्ति कारों को प्राप्त हो रही है.

Last Updated :Sep 21, 2022, 1:15 PM IST
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