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Panchayat Election in MP: इस गांव में नहीं होंगे चुनाव, बहिष्कार के चलते किसी ने नहीं भरा पर्चा

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Published : Jun 8, 2022, 10:09 PM IST

मध्य प्रदेश में जहां पंचायत चुनाव को लेकर चारों ओर तैयारियां जोरों पर हैं. वहीं छिंदवाड़ा के सौंसर के ग्राम रोहना में ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार किया है. ग्रामवासियों का कहना है कि पिछले 25 सालों से यह पंचायत लगातार आदिवासी सरपंच और पंच चुनने के लिए बाध्य है, जबकि गांव में मात्र एक-दो घर आदिवासियों के हैं, बाकी पूरी पंचायत में ज्यादातर ओबीसी वर्ग के या सामान्य वर्ग के निवासी हैं. उनका कहना है कि समस्या को लेकर वो कई बार ज्ञापन भी दे चुके हैं, सुनवाई ना होने के कारण इस बार ग्रामवासियों ने एकमत होकर यह निर्णय लिया है.

No nomination was filed against reservation
आरक्षण का विरोध में नहीं किया नामांकन दाखिल

छिन्दवाड़ा। सौंसर के रोहना ग्राम पंचायत में आरक्षण का विरोध करते हुए ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार किया है. जिसके चलते सरपंच और पंच के किये कोई नामांकन दाखिल नहीं किया गया है. एक तरफ जहां पूरे प्रदेश में पंचायत चुनाव की गहमागहमी जोरों से चल रही है, वहीं छिंदवाड़ा में एक पंचायत ऐसी भी है, जहां न चुनाव का शोर होगा, न कोई मतदान होगा. न नेताओ का जमावड़ा होगा, न वोट के लिए मिन्नते की जाएंगी.

छिंदवाड़ा सौंसर के रोहना ग्राम पंचायत में चुनाव का बहिष्कार

आरक्षण का विरोध में नहीं किया नामांकन दाखिल: छिंदवाड़ा के सौंसर ब्लॉक के रामाकोना क्षेत्र में रोहना ग्राम पंचायत में ग्रामवासियों ने चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय किया है. गांव से इस चुनाव में पंच और सरपंच के लिए एक भी फॉर्म जमा नहीं हुआ है. अब चूंकि नामांकन की तारीख निकल चुकी है, इसलिए अब यहां चुनाव होना संभव भी नहीं है. यह गांव एकीकृत आदिवासी परियोजना के अंतर्गत आदिवासी ग्राम घोषित कर दिया गया था. इसलिए पिछले 25 सालों से यह पंचायत लगातार आदिवासी सरपंच और पंच चुनने के लिए बाध्य है. रोटेशन का नियम यहां पर लागू नहीं होता.

प्रत्याशी मिलना भी मुश्किल: इस गांव में मात्र एक-दो घर आदिवासियों के हैं, बाकी पूरी पंचायत में ज्यादातर ओबीसी वर्ग के या सामान्य वर्ग के निवासी हैं. आदिवासी सरपंच चुनने की बाध्यता के चलते यहां के निवासी अपनी पसंद का सरपंच नहीं चुन पाते हैं. सरपंच के अतिरिक्त 10 में से 6 वार्ड आदिवासी घोषित हैं, जिनके लिए पांच प्रत्याशी मिलना भी मुश्किल है. क्योंकि गांव में एकमात्र आदिवासी परिवार है और उसमें कुल 7 सदस्य हैं.

जिन पंचायतों में पदों के लिए नामांकन नहीं भरे गए हैं, वहां पर जिला निर्वाचन अधिकारी की रिपोर्ट आने पर फैसला लिया जाता है. फिलहाल हमारे पास अभी किसी जिले से ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आयी है.

- बीपी सिंह, आयुक्त (राज्य निर्वाचन)

ग्रामीण कई बार कर चुके हैं शिकायत: ग्राम वासियों द्वारा इस समस्या को लेकर पहले भी प्रशासन को कई बार ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. ग्राम वासियों का कहना है कि हमारे गांव में आदिवासी आबादी नहीं होने के कारण इसे एकीकृत योजना से हटाकर सामान्य रूप से रोटेशन पद्धति को लागू किया जाए. ताकि गांव का समुचित विकास हो सके. गांव वालों का कहना है कि अभी तक हमें एकीकृत आदिवासी परियोजना का हिस्सा होने के बावजूद भी योजना का कोई लाभ नहीं मिला है और ना ही हम अपनी बात को जिला प्रशासन के सामने रख पाते हैं.

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प्रशासन की अनदेखी के चलते उठाया कदम: बार-बार ज्ञापन देने के बाद भी सुनवाई ना होने के कारण इस बार ग्रामवासियों ने एकमत होकर यह निर्णय लिया कि, इस पंचायत चुनाव में गांव से ना तो कोई सरपंच के लिए फॉर्म भरेगा और ना ही पंच के लिए. जिला पंचायत और जनपद के लिए भी कोई दावेदारी नहीं की जाएगी. पंच और सरपंच के लिए एक भी फार्म जमा ना होने के कारण यहां चुनाव प्रक्रिया संपन्न होना तो संभव नहीं है, अब आगे पंचायत का संचालन किस तरह से किया जाएगा यह बड़ा सवाल है. ग्राम वासियों का कहना है कि इसके लिए हम एक समिति बनाकर गांव का विकास करेंगे.

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