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भोपाल के स्कूल में 3 साल की बच्ची से रेप, पैरेंट्स के लिए ये खबर जानना जरूरी है, क्या आपके बच्चे को मिली है सेफ-अनसेफ की ट्रेनिंग

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Published : Sep 13, 2022, 9:02 PM IST

Updated : Sep 14, 2022, 6:23 PM IST

बच्चों का ऐसा कौन सा व्यवहार, हरकत या आदत है जो यह बताती है कि उनके साथ कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसके लिए जरूरी है बच्चों को गुड टच और बैड टच की पहचान हो. वे अपनी परेशानी या दिक्कत महसूस कर सकें बता सकें. खास बात यह है कि बच्चों को यह ट्रेनिंग किस उम्र में और कब दी जाए. आइए जानते हैं मनो वैज्ञानिक क्या कहते हैं. Bhopal 3 year old girl rape, bad touch good touch, Do's & Don'ts, child safe unsafe training

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बच्चों को सेफ अनसेफ की ट्रेनिंग

भोपाल। राजधानी के एक स्कूल में तीन साल की बच्ची के साथ हुए रेप के मामले के बाद उन पैरेंट्स का तनाव बढ़ गया है जिनके इस उम्र के बच्चे बस से स्कूल जाते हैं. खास कर शहरी आबादी जहां ऐसे बच्चो की तादात अस्सी फीसदी से ज्यादा है. बच्ची से रेप का जो ताजा मामला सामने आया है उसमें बच्ची के कपड़े बदले हुए होने से पैरेंट्स की आशंका बढ़ी, लेकिन क्या केवल कपड़े बदले हुए होना बच्चों के साथ हुई किसी अनहोनी का संकेत हो सकता है. बच्चों का ऐसा कौन सा व्यवहार, हरकत या आदत है जो यह बताती है कि उनके साथ कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसके लिए जरूरी है बच्चों को गुड टच और बैड टच की पहचान हो. वे अपनी परेशानी या दिक्कत महसूस कर सकें बता सकें. खास बात यह है कि बच्चों को यह ट्रेनिंग किस उम्र में और कब दी जाए. आइए जानते हैं मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं.

कौन से हैं वे डूज एंड डोंट्स जो पैरेंट्स को जानना जरूरी हैं: गुड टच बैड टच की ट्रेनिंग किस उम्र में से जरुरी है ? पैरेन्टस के कम्यूनिकेशन में कहां दिक्कत होती है कि बच्चे की परेशानी उन तक नहीं पहुंच पाती. मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना बताती हैं कि वे वो कौन से डूज़ एण्ड डोंट्स हैं जो आपके बच्चे से पहले आप पैरेंट्स को जानना जरुरी है. कैसे पता चलेगा कि बच्चे के साथ कुछ गलत हुआ है.अदिति सक्सेना ने बताया कि किस तरह की परवरिश से आप अपने बच्चों को ऐसी परिस्थिति के लिए सचेत कर सकते हैं और कई मामलों को रोक भी सकते हैं.

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1 साल की उम्र से करें प्राइवेट पार्ट्स को लेकर अलर्ट: मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि बच्चों की ऑडियो विजुअल पॉवर बहुत मजबूर होती है. उनका दिमाग कम उम्र से ही सीखना शुरु कर देता है. बच्चों को 1 साल की उम्र से ही उन्हें गुड टच बैड टच सिखाना शुरु कर देना चाहिए.
सेफ-अनसेफ ट्रेनिंग– गुड टच और बैड टच की तरह ही सेफ और अनसेफ माहौल की ट्रेनिंग देना भी बच्चों के लिए बहुत जरुरी है. उन्हें पता होना चाहिए उनके आसपास, उनकी दुनिया में कौन से लोग हैं जिनके साथ वो सेफ हैं और कैसे अनजान लोगों के बीच अनसेफ है.
सबक पैरेट्स के लिए भी है- बच्चों को लेकर भरोसे का दायरा कहां तक होना चाहिए. पैरेंट्स को भी यह सबक सीखने की जरूरत है. प्राइवेट पार्ट कब, किसलिए और कौन छू सकता है इसकी जानकारी भी छोटी उम्र से बच्चों को दी जानी चाहिए.
- बच्चों का नहाना वॉशरुम जाना परिवार में भी निश्चित लोगों की निगरानी में हो. केयर टेकर भी बदलें नहीं, इन आदतों से ही बच्चों के दिमाग में एक दायरा बन जाता है कि किनके सामने उसे कपड़े नहीं चैंज करने हैं या उतारने है.
- स्कूल में जो दीदी बच्चों की केयर टेकर हैं उनसे पैरेंट्स का कम्यूनिकेशन भी होते रहना चाहिए. साथ ही बच्चे के जरिए आप यह जानकारी भी रखें कि स्कूल की केयर टेकर का बच्चे के साथ बर्ताव कैसा है.
-घर में ये आदत बनाएं कि बच्चा स्कूल का पूरा अनुभव आपसे बिना डरे शेयर करे.
- इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे का स्कूल जाने से मना करना, अनमना होना भी किसी परेशानी का संकेत तो नहीं .
- स्कूल टीचर से निरंतर संवाद जरुरी है. बच्चे के व्यवहार को लेकर भी और स्कूल से बच्चे को मिल रहे अनुभव को लेकर भी बातचीत होते रहना चाहिए.

छोटे बच्चों के माता पिता भूलकर भी ना करें ये गलती: छोटे बच्चों के माता पिता के लिए ये जानना भी बेहद जरुरी है कि क्या करना है और क्या नहीं करना है. ऐसे मामलों में सबसे जरुरी है कि बच्चे से मातापिता का बर्ताव दोस्ताना हो जिससे वो अपने मन की बात पैरेंट्स से कह सके. यह व्यवहार इतना सरल होना चाहिए कि माता पिता के साथ बच्चा इतना सुरक्षित महसूस कर सके कि उसे अपने साथ हुई सबसे बुरी घटना को बताने में भी कोई हिचक महसूस ना हो. मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना बता रही हैं कि माता पिता को क्या नहीं करना है.
- स्कूल से लौटने पर बच्चों से बातचीत करें, लेकिन सवाल डराने या उन्हें दहशत में लाने वाले ना हों.
- यह बच्चे की आदत में शामिल करें कि बच्चे घर आने के बाद स्कूल से जुड़े सारे घटनाक्रम की पूरी जानकारी पैरेटंस को दें.
- अगर आप स्कूल में की गई किसी गलती को जाने बिना बच्चे को लताड़ देंगे तो वो आपसे ऐसा कुछ कहेगा ही नहीं.
-किसी के भी सामने बच्चों को कपड़े बदलने देना, नहाना या वॉशरुम जाना यह भी गलत है.
- भरोसेमंद लोगों का दायरा काफी अनुभव के बाद बनाएं. भरोसेमंद लोगों के साथ भी बच्चे को अकेला ना छोड़ें.

चुनौती ये कि बैड टच अच्छा लगे तो: मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना कहती हैं, गुड टच बैड टच से भी ज्यादा जरुरी है. एप्रोप्रिएट और इन एप्रोप्रिएट बिहेवियर. ये इसलिए कि अगर बच्चे को बैड टच भी अच्छा लगने लगे तो आप कैसे फर्क बता पाएंगे, जबकि उन्हें सिखाया तो यही गया है कि जो अच्छा लगे वो गुड टच जो बुरा लगे वो बैड टच. इसलिए एप्रोप्रिएट और इन एप्रोप्रिएट बिहेवियर के बारे में भी बच्चे को फर्क बताया जाना जरुरी है.

Last Updated :Sep 14, 2022, 6:23 PM IST
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