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संघ प्रमुख मोहन भागवत का मस्जिद-मदरसे का दौरा कहीं संतुलन बनाने की कोशिश तो नहीं

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Published : Sep 24, 2022, 3:33 PM IST

मस्जिद और मदरसे में जाकर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश की राजनीतिक पार्टियों को चौंका तो दिया ही, साथ ही देश की राजनीतिक पार्टियों के बीच एक बहस भी छेड़ दी है. यहां सवाल ये उठ रहा है कि क्या भागवत का ये मस्जिद और मदरसा (mohan bhagwat mosque madrasa visit) प्रेम देश में हिंदू मुस्लिम सौहार्द को बढ़ाने का प्रयास है या फिर भाजपा से दूरी बढ़ाने की कोशिश. आइए जानते हैं ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में.

संघ प्रमुख मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत

नई दिल्ली: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का मस्जिद प्रेम क्या हिंदू मुस्लिम भाईचारे का प्रयास है या फिर भाजपा से दूरी बढ़ाने का प्रयास. इस बात को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. अपनी-अपनी दलीलें और अटकलों को लेकर दावे प्रतिदावे किए जा रहे हैं, लेकिन इस घटना ने एक बहस जरूर छेड़ दी है.

ऐसा नहीं की ये पहली घटना है, पिछले 22 अगस्त को भी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुलाकात (mohan bhagwat mosque madrasa visit) की थी और सिर्फ ये मुलाकात ही नहीं बल्कि इसके बाद वो मुस्लिम धर्मगुरुओं से भी मिले थे और ठीक एक महीने बाद फिर उन्होंने मस्जिद और मदरसा जाकर लोगों को चौंका दिया है.

एक तरफ जहां राहुल गांधी और कांग्रेस के नेतागण पूरे देश में घूम घूम कर बीजेपी और आरएसएस पर देश के सौहार्द को बिगाड़ने और सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं इसके उलट संघ प्रमुख ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए आगे बढ़कर मोर्चा संभाल लिया है. संघ प्रमुख का नई दिल्ली में कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित मस्जिद जाकर अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख मौलाना उमर अहमद इलियासी के साथ मुलाकात करना और उसके बाद इलियासी का मोहन भागवत को राष्ट्रपिता कहना, और फिर संघ प्रमुख का पुरानी दिल्ली के मदरसे में पहुंचकर बच्चों और शिक्षिकों के हाल जानने की घटना ने देश की राजनीति की नई दिशा की तरफ बहस छेड़ दी है और बयानबाजी और अटकलों का दौर शुरू हो चुका है.

क्या संघ प्रमुख देश में अमन और सौहार्द का पैगाम देना चाह रहे हैं या फिर एक तरफ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर की जा रही कारवाई और जमीन वापसी की मुहिम और बुलडोजर चलाने की घटनाओं से बढ़ रहे सांप्रदायिकता के माहौल को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. क्या मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की कोशिश है या संघ पर लगे ठप्पे को हटाने का प्रयास है? सवाल तमाम हैं मगर विपक्ष इसे महज दिखावा करार दे रहा है.

'आरएसएस पर विश्वास करना बड़ी भूल होगी'
इस मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि आरएसएस पर विश्वास करना बहुत बड़ी भूल होगी. उन्होंने कहा कि आरएसएस की 'कट्टर विचारधारा' बदलने वाली नहीं है, एक ऐसा संगठन जो अपनी विचारधारा पर शुरू से चलता आ रहा है वो आज अपनी सोच सर्वधर्म समभाव की कर लेगा, ये संभव नहीं है. इसलिए उनकी बातों पर विचार करना गलत है.

इस सवाल पर कि मौलाना इलियासी ने मोहन भागवत को राष्ट्रपिता कहाकर संबोधित किया है, इसपर तारिक अनवर ने कहा कि इलियासी साहब और ये लोग मुसलमानों को रिप्रेजेंट नहीं करते इसलिए मुझे लगता है ये सिर्फ मुसलमानों को धोखा देने वाली बात है.

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एक तरफ मदरसों पर करवाई की जा रही और दूसरी तरफ भागवत मदरसे में जा रहे हैं क्या ये बैलेंसिंग एक्ट है, इस पर अनवर ने कहा कि इन सबके बावजूद, जो संगठन 100 बरसों से अपनी विचारधारा पर चलता आ रहा वो आज जाकर अपनी विचारधारा बदल देगा, ये बेमानी बात है.

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