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लद्दाख राजस्व विभाग से उर्दू की 'विदाई', सांसद बोले- थोपी गई भाषा से मिली स्वतंत्रता

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Published : Jan 11, 2022, 5:23 PM IST

लद्दाख के भाजपा सांसद जम्यांग सेरिंग नामग्याल ने पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पटवारी और नायब तहसीलदार जैसे पदों पर बहाली के लिए राजस्व नियमों में बदलाव (उर्दू को हटाने) की मांग की थी. लद्दाख प्रशासन ने उसे स्वीकार कर लिया है. राजस्व विभाग से उर्दू की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है.

Jamyang Tsering Namgyal BJP MP from Ladakh
लद्दाख से भाजपा सांसद जम्यांग सेरिंग नामग्याल

श्रीनगर : लद्दाख प्रशासन ने राजस्व विभाग में होने वाली विभिन्न पदों पर बहाली के लिए योग्यता के तौर पर उर्दू की अनिवार्यता खत्म कर दी है. कई लोगों ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि यह सबकुछ 'राजनीतिक' षडयंत्र जैसा दिखता है.

प्रधान सचिव डॉ पवन कोटवाल की ओर जारी अधिसूचना के मुताबिक 'उर्दू की जानकारी' की जगह 'किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्याल से स्नातक की डिग्री' को अनिवार्य बनाया गया है. लद्दाख में लेह और कारगिल दो जिले हैं. यहां की आबादी तीन लाख है. लेह में बौद्ध बहुसंख्यक हैं, जबकि कारगिल में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. कुल मिलाकर लद्दाख की 55 फीसदी आबादी मुस्लिम है, जबकि 45 फीसदी बौद्ध है. लेह में भी छोटी-सी आबादी है, जो ऊर्दू का प्रयोग करती है.

जिग्मेट नोरबू ऐसे ही व्यक्ति हैं, जो लेह में रहते हैं, लेकिन ऊर्दू के प्रसिद्ध कवि हैं. उन्हें 'ख्याल लद्दाखी' के नाम से भी जाना जाता है. दोनों जिलों (लेह और कारगिल) के बीच राजनीति और भाषा हमेशा से ही दरार के मुद्दे रहे हैं. लेह के लोग हमेशा ही 'कश्मीर शासकों के आधिपत्य' की शिकायत करते रहे हैं. डोगरा शासकों ने 1889 में फारसी को हटाकर उर्दू को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी थी. फारसी तीन सौ सालों तक कश्मीर की आधिकारिक भाषा थी.

भूमि एवं राजस्व अभिलेखों की भाषा उर्दू रही है. कोर्ट (निचली अदालतें) और एफआईआर भी उर्दू में ही लिखी जाती हैं. सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा का माध्यम उर्दू है, खासकर कश्मीर, कारगिल और जम्मू के मुस्लिम बहुल इलाकों में. लद्दाख के भाजपा सांसद जम्यांग सेरिंग नामग्याल ने पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पटवारी और नायब तहसीलदार जैसे पदों पर बहाली के लिए राजस्व नियमों में बदलाव (उर्दू को हटाने) की मांग की थी.

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण बदलाव है. दशकों तक थोपी गई भाषा से वास्तविक स्वतंत्रता मिली. हालांकि, कारगिल के पूर्व विधायक असगर अली करबलाई ने ईटीवी भारत से कहा कि उर्दू को धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि सरकार लोगों को विश्वास दिलाती है. यह तीन क्षेत्रों और इसके लोगों के बीच एक लिंक भी प्रदान करता है जो विभिन्न भाषाएं बोलते हैं.

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 और इसकी धारा 46 के तहत उर्दू और अंग्रेजी के अलावा तीन और भाषाओं- हिंदी, कश्मीर और डोगरी को आधिकारिक भाषा के रूप में जोड़ा है.

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