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MP: कोरोना से लड़ेगी ग्वालियर की गजक, विदेश में फैलेगी महक

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Published : Jan 13, 2023, 10:38 PM IST

ग्वालियर का गजक से 90 साल पुराना नाता है. सर्दियों की सीजन आते ही यहां के लोगों को गजक की मिठास अपनी ओर आकर्षित करने लगती है. तिल-गुड़ से बनी इस मिठाई को चाव से खाने का शौक तो कई लोग रखते हैं, लेकिन इस खस्ता गजक को कितने श्रम से तैयार किया जाता है यह कम ही लोगों को जानकारी है.

Gwalior Chambal Sugar free Gajak
गबज की गजक

गबज की गजक

ग्वालियर। गुलाबी ठंड के बीच मकर संक्रांति का त्यौहार नजदीक है. ऐसे में इस त्यौहार पर चंबल की गजक पूरे देश भर में मिठास घोलती है. इस मिठाई को सर्दी में हर कोई खाना पसंद करता है. यह स्वाद की वजह से अपनी पहचान देश में ही नहीं बल्कि विदेश तक बना चुकी है. यही वजह है कि, मकर संक्रांति के त्यौहार पर चंबल से यह गजक 7 समुंदर पार तक पहुंचती है, लेकिन अबकी बार इस त्यौहार पर इम्यूनिटी बूस्टर और शुगर फ्री गजक लोगों को काफी पसंद आ रही है. यही कारण है कि, लोग सबसे ज्यादा नई वैरायटियों को पसंद कर रहे हैं. आइए जानते हैं कि, चंबल की गजक में ऐसी क्या तासीर है जिससे इसकी पहचान पूरे विश्व में है.

शुगर फ्री गजक की डिमांड: गजक का महत्व केवल स्वाद की वजह से नहीं, बल्कि गजक में इस्तेमाल होने वाली तिल-गुड़ सर्दियों में शरीर के लिए औषधि का काम करता है. कोरोना के समय महामारी के समय में जहां लोग अपने शरीर की इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए कई तरह की दवाइयां और महंगे खाद पदार्थ खा रहे थे. वही गजक उनके लिए बेहद लाभकारी थी. सबसे खास बात यह है कि, इसे बनाने में शुद्ध घी और तेल का उपयोग किया जाता है. इसके साथ अबकी बार बाजार में शुगर फ्री गजक उपलब्ध है. जो पूरी तरह लोगों के लिए शुगर फ्री है. इस गजक को वह मरीज भी खा सकते हैं, जिन्हें शुगर की बीमारी है. इस गजक को बनाने के लिए खास औषधि का उपयोग किया गया है. साथ ही इस गजक में शक्कर की बजाय पूरी तरह गुड़ का उपयोग किया गया है.

56 तरह की शाही गजक: वैसे तो ग्वालियर मुरैना में गैर शक्कर की गजक काफी प्रसिद्ध है, लेकिन अब अंचल में कई वैरायटी की गजक बनाई जा रही है. जिसमें सादा गुड़ और तिल्ली की गजक, गजक की पट्टी, मूंगफली वाली गजक, तिलकुट गुड़, खस्ता गजक, ड्राई फ्रूट रोल गजक, ड्राई फ्रूट गजक, काजू गजक,गुड पट्टी और गजक के समोसे सहित विभिन्न प्रकार की गजक उपलब्ध हैं. दुकानदारों ने बताया कि, मकर संक्रांति पर लोग गजक के साथ ही गुड़ के लड्डू को भी खासा पसंद कर रहे हैं और वह पार्सल करां कर अपने रिश्तेदारों को भेज रहे हैं साथ ही दुकानदार का कहना है कि इस समय उनके पास 56 तरह की गजक बनाई जा रही है. और इस मकर संक्रांति के बाहर पर लोग भारी संख्या में गजक अपने घर ले जाते हैं या फिर पार्सल करा कर अपने दूर के रिश्तेदारों को भेजते हैं.

चंबल-अंचल से गजक की शुरुआत: ग्वालियर चंबल अंचल की शाही गजक ठंड की प्रसिद्ध मिठाई है. यही कारण है कि जब ठंड की शुरुआत होती है तो चंबल में गजक बनना शुरू हो जाती है. दिसंबर के महीने की शुरुआत होती है और गजक बनने की शुरुआत हो जाती है. उसके बाद फरवरी महीने के अंत तक गजब का यहां पर कारवार जमकर होता है. ग्वालियर चंबल अंचल में लगभग 5000 से अधिक ऐसी दुकाने हैं जहां पर गजक बनाई जाती है. इसके साथ ही चंबल में गजक बनाने वाले कारीगर अलग-अलग राज्यों में जाकर गजक का निर्माण करते हैं, लेकिन कहा जाता है कि चंबल के मुरैना और ग्वालियर में बनने वाली गजक शाही होती है और यहां की गजक ही विश्व में प्रसिद्ध है. गजक देशभर के अलग-अलग राज्यों में सप्लाई की जाती है. चंबल में गजक बनाने का इतिहास लगभग 90 साल पुराना है. यह सबसे ज्यादा प्रसिद्ध गजक है.

चंबल के पानी से आता है स्वाद: कहा जाता है कि, चंबल के पानी में ऐसी तासीर है कि, गजक को शाही और स्वादिष्ट बनाता है. यहां बनने वाली गजक बेहद खस्ता और शरीर के लिए लाभकारी होती है. यही कारण है कि वैसे तो गजक ग्वालियर चंबल अंचल के हर जिलों में तैयार की जाती है, लेकिन असल में चंबल के मुरैना और ग्वालियर में बनने बाली गजक का जो स्वाद है वह कहीं दूसरी जगह की गजक में नहीं है. दूर-दूर बैठे लोग अपने रिश्तेदारों या परिचितों के माध्यम से शाही गजक मंगवाते हैं या फिर वह सीधे दुकानों पर ऑर्डर देकर पार्सल के जरिए गजक उपलब्ध करते हैं.

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गुड़ की गजक बनाने की विधि: गजक बनाने के लिए देसी शुद्ध घी और साफ तेल चाहिए जिसे बनाने के लिए सबसे पहले हम एक तरफ कढ़ाई में साफ और स्वच्छ तिल को धीमी आंच पर सेकते हैं, लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि तिल सेंकने के दौरान जलना नही चाहिए. तिल सेंकने के दौरान उसे अलग रख दे. इसके बाद पानी को गर्म कर उसमें साफ हो और मिलाया जाता है. इससे गुड़ की चाशनी तैयार की जाती है. 20 मिनट बाद चासनी को बड़ी प्लेट में ठंडा किया जाता है. इसे ठंडा करने के बाद लेयर बनाई जाती है और उस लेयर को दीवाल पर टांग कर लकड़ी के सहारे खींचा जाता है. उसे तब तक खींचते हैं जब तक चासनी का रंग पूरी तरह सफेद ना हो जाए. ऐसा करने में गजक खस्ता होती है. यह विधि लगभग 20 से 25 मिनट तक चलती है. उसके बाद चासनी को भुने हुए तेल में मिलाते हैं. उसके बाद उसकी जमकर पिटाई करते हैं. यह विधि लगभग 10 से 15 मिनट तक अच्छे से मिलाते हैं. ताकि तिल पूरी तरह मिल जाए. अच्छी तरह मिलने के बाद उसे किसी बड़ी पत्थर के पाट पर रखा जाता है. इसके बाद फिर साइज के हिसाब से गजक को काटते हैं. गजब बनकर तैयार हो जाती है. शक्कर की गजक बनाने के लिए भी यही विधि अपनाई जाती है.

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