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स्वतंत्रता सेनानियों का बिखरा सपना, पूरी तरह आजाद ना हो सका भारत अपना

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Published : Aug 15, 2020, 7:13 AM IST

गुलाम भारत में स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा आजादी की लड़ाई में ना केवल अंग्रेजों के खिलाफ लड़े, बल्कि अपने गांव में टोली बनाकर स्वाधीनता संग्राम का जन जागरण भी फैलाया, स्वतंत्रता की ज्योति जलाए इस 90 वर्षीय वृद्ध ने उस वक्त जिस आजाद भारत की परिकल्पना की थी वर्तमान में वह आज काफी अलग है.

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स्वतंत्रता सेनानियों का बिखरा सपना

सरायकेलः पूरा देश जश्न-ए-आजादी के गीत गा रहा है. हम उन करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहे हैं, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का आहुति दे दी और उन स्वतंत्रता सेनानियों का भी आभार प्रकट कर रहे हैं जो आज हमारे बीच हैं, हमारे साथ हैं. स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा भी उनमें से एक हैं. जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और देश को आजाद कराने के लिए लड़ाइयां लड़ीं, लोगों को जागरूक कर एकजुट किया. अखौरी बालेश्वर सिन्हा का जन्म बिहार राज्य के भोजपुर जिला अंतर्गत बक्सर के चुरामनपुर गांव में हुआ था. इनके दादा एक किसान थे और पिता अखौरी जगन्नाथ सिन्हा कुमारडुगी कोयला खदान में ठेकेदारी का काम करते थे. उनके आठ भाई और बहनों थीं.

स्वतंत्रता सेनानियों का बिखरा सपना

बड़े भाई को देख आजादी की लड़ाई में कूद पड़े

अखौरी बालेश्वर सिन्हा के बड़े चचेरे भाई अखौरी राम नरेश सिन्हा जो एडवोकेट थे और आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे. बड़े भाई भी आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए, तब आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने वाले उनके बड़े भाई राम नरेश सिन्हा को पकड़ने अंग्रेजी फौज अक्सर गांव आया करती थी और बड़े भाई को ना पाकर पूरे परिवार को तंग करती थी. जिसके बाद बालेश्वर ने 1942 में अपने बड़े भाई के साथ आंदोलन में सीधे कूद पड़े. सन 1942 में ही इन्होंने भाई और अपने अन्य स्वतंत्रता सेनानी मित्रों के साथ मिलकर बक्सर कचहरी में आग लगाने, टेलीफोन का तार काटने, रेल लाइन उखाड़ने जैसी घटना को अंजाम देकर अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन किया. जब महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा बुलंद किया तो देश में उत्साह की लहर पैदा हुई. उसके बाद बालेश्वर अपने भाई और स्वतंत्रता सेनानी मित्रों के आजादी के इस आंदोलन में आगे बढ़ते गए.

स्वतंत्रता संग्राम और आजाद देश का अनुभव

सन 1945 में बक्सर बाजार के पास घेराबंदी कर पहली बार स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा अंग्रेजों के हत्थे चढ़े थे. बक्सर बाजार के पास घेराबंदी कर उन्हें पकड़ा गया और वो 6 माह और 20 दिन तक जेल में रहे. जेल से छूटने के बाद बालेश्वर एक बार फिर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंक दिया. जेल से छूटने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के दौरान वो दोबारा पकड़े नहीं गए और फिर एक दिन अपनी आंखों के सामने गुलामी की बेड़ियों में जकड़े भारत को आजाद होते देखा.

नाज करता है पूरा परिवार

90 साल के स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा का आज भरा पूरा परिवार है. आजादी मिलने के कई वर्षों बाद वो जमशेदपुर पहुंचे. जहां उन्होंने टाटा स्टील (तब टिस्को) में नौकरी की. इसके बाद उनकी शादी आरा के स्वर्गीय कैलाश लाल की पुत्री प्रभावती देवी से हुई. दिवंगत पत्नी प्रभावती देवी जमशेदपुर में एमएलए का चुनाव भी लड़ चुकी थीं. आज 90 बसंत देख चुके अखौरी बालेश्वर सिन्हा के चार पुत्र और दो पुत्रियां हैं और सभी सफल जीवन जी रहे हैं. सबसे बड़े बेटे डॉक्टर अखौरी मिंटू सिन्हा ने रांची मेडिकल कॉलेज से एमडी शिशु रोग विशेषज्ञ कर ईएसआइसी अस्पताल में कार्यरत हैं. जबकि इनकी पुत्रवधू डॉ रश्मि वर्मा एक सफल स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, पौत्र अनीश अखौरी फिलहाल स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुका है, जो अपने दादा को अपना रोल मॉडल मानता है. आज अखौरी बालेश्वर सिन्हा का पूरा परिवार उन पर नाज करता है. अनीश अखौरी बताते हैं कि बचपन से ही स्कूली किताबों में स्वतंत्रता सेनानियों के बारे पढ़ा, लेकिन अपने दादा को स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने पर गौरव महसूस करते हैं. स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा को वर्ष 2008 में स्वाधीनता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

'देश गलत दिशा में भटक गया, अब देश भक्ति मात्र दिखावा है'
स्वतंत्रता सेनानियों की एक ही तमन्ना थी देश आजाद हो, अखौरी बालेश्वर सिन्हा बताते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों ने सोचा था कि आजादी के बाद देश में राम राज्य कायम होगा, भारत समृद्ध, खुशहाल और भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनेगा. आंदोलन में देश के हर वर्ग के लोगों ने निःस्वार्थ भाव से आजादी की लड़ाई लड़ी. उस वक्त जातिवाद, क्षेत्रवाद और आतंकवाद का नामोनिशान नहीं था, लेकिन आज देश की वर्तमान हालात देखकर दिल पसीज जाता है. आजादी तो मिली पर जो कल्पना इन्होंने किया था, वह टूट कर चकनाचूर हो गया है. आजादी के बाद भी आज देश के करोड़ों लोग दो वक्त की रोटी ठीक से नहीं जुटा पाते, जिस तरफ देखो उस तरफ जातिवाद, क्षेत्रवाद और आतंकवाद का साया है. आज लोग अपने छोटे से छोटे स्वार्थ के लिए देश के स्वाभिमान को गिरवी रखते हैं और देश से खिलवाड़ करते हैं. देश आज आतंकवाद, भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंस गया है पहले जहां लोग अंग्रेज से डरते थे, वहीं आज अपने ही लोगों से डर लगने लगा है. स्वतंत्रता सेनानी मन ही मन सोचते हैं कि देश गलत दिशा में बढ़ रहा है, आज आजाद भारत के नेता चरित्रहीन है इस कारण देश गलत मार्ग पर निकल रहा है और यह चिंता का विषय है. कभी सोने की चिड़िया के नाम से प्रसिद्ध है भारत आज अपने ही लोगों के बीच फिर से गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा जा रहा है, ऐसे में इन्हें कहीं ना कहीं आज भी एक उम्मीद की किरण दिखाई देती है कि शायद देश फिर से आजाद होगा.

देश की मौजूदा हालात से स्वसंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्रर असंतुष्ट हैं

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