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साहिबगंज: नहाय खाय के साथ जिउतिया महापर्व हुआ शुरू, मां कर रही हैं संतान की दीर्घायु की कामना

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Published : Sep 9, 2020, 1:10 PM IST

Updated : Sep 9, 2020, 3:02 PM IST

साहिबगंज जिले में नहाय खाय के साथ जिउतिया महापर्व की शुरुआत बुधवार से हो गई है, वहीं 24 घंटे तक संतान की दीर्घायु और समृद्धि की मंगल कामना के लिए माता निर्जला उपवास रहती हैं.

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साहिबगंज में बनाया गया जिउतिया महापर्व

साहिबगंज: नहाय खाय के साथ जिउतिया महापर्व शुरू हो गई है. माता अपनी संतान की दीर्घायु के लिए यह उपवास रखती हैं. वहीं समृद्धि की मंगल कामना के लिए निर्जला उपवास रखेंगी और नवमी को पारण करेंगी.

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जिउतिया पर्व की शुरुआत
बता दें कि धार्मिक कर्मकांड में जिउतिया पर्व को अहम दर्जा प्राप्त है. यह प्रयेक वर्ष अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जिउतिया का व्रत किया जाता है. यह व्रत 24 घंटे के लिए निर्जल उपवास महिला रखती है. संतान की सुरक्षा, स्वास्थ्य, दीर्घायु, समृद्धि की मंगल कामना को पूर्ण करने करने वाला लोकपर्व है.

जिउतिया महापर्व का निर्जला उपवास
जिउतिया महापर्व निर्जला उपवास होता है. महिला अपनी संतान के कष्टों को बचाने और उनके लंबी आयु को मनोकामना को पूर्ति करने के लिए यह करती हैं. इस पर्व को जितिया या जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है.


संतान की दीर्घायु और सुरक्षा कवच के लिए व्रत
साहिबगंज के मुक्तेश्वर, शकुंतला सहाय, ओझा टोली सहित राजमहल के विभिन्न गंगा घाटों पर महिलाओं की भीड़ स्नान करने को लेकर देखा गया. लोग स्नान कर तिल, चावल, फूल से पूजा करती हैं. महिला गंगा जल से घर की अच्छी तरह साफ सफाई कर सात तरह की सब्जी के साथ भोजन करेंगी और आधी रात के बाद अखंड निर्जला उपवास पर रहेंगी. एक कण दान यूं कहें तो मुंह का लार तक नहीं घोटती हैं. यह पर्व संतान की दीर्घायु और सुरक्षा कवच के लिए लक्ष्मण रेखा की तरह काम करता है.

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प्रत्येक वर्ष होता है इस पर्व का इंतजार
महिलाओं ने कहा कि प्रत्येक साल इस पर्व को मानने के लिए इंतजार रहता है, वर्षों से यह पर्व मना रहे हैं. धूप अधिक रहता है तो थोड़ी बहुत प्यास लगता है लेकिन मौसम ठंडा रहा तो तो 24 घंटे का पता नहीं चलता है. किस तरह यह कठिन पर्व गुजरा कहा कि सुबह-सुबह स्नान कर गंगा मैया की पूजा अर्चना किया, कल 10 सितंबर को दिन रात उपवास रखकर अगले दिन पारण करेंगे.

पुरोहित ने बताई वर्त की कथा
पुरोहित ने कहा कि इस व्रत के कई पौराणिक कथाएं हैं. उसी में से एक कथा है कि जब महाभारत युद्ध हुआ था तो अश्वत्थामा नाम का हाथी मारा गया लेकिन चारों तरफ खबर फैल गयी कि अश्वथामा मारा गया. यह सुनकर पिता द्रोणाचार्य ने शोक में अस्त्र डाल दिया तब द्रोपदी के भाई ने उसका वध कर दिया. क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने रात्रि के अंधेरे में पांडव के पांच पुत्रों की हत्या कर दी, पांडव अधिक क्रोधित हुए, श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा का मणि छीन लिया, अश्वत्थामा और क्रोधित हो गया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी जान से मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया. भगवान श्रीकृष्ण यह जानते थे कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना असंभव है इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सभी पुण्यों का फल से उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को बचाया. यह बच्चा पुनर्जीवित हो गया जो बड़ा होकर राजा परीक्षित बना. बच्चे को दोबारा जीवित हो जाने के कारण ही जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है.

Last Updated : Sep 9, 2020, 3:02 PM IST
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