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आदिवासी महोत्सव के इवेंट पर 6 करोड़ रु किये गये खर्च, कई और वजहों से भी चर्चा में रहा विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम

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Published : Aug 11, 2023, 6:55 PM IST

आदिवासी महोत्सव के इवेंट पर करीब 6 करोड़ रुपए खर्च किए गए. इवेंट मैनेजमेंट कंपनी से जब इस बाबत पूछा गया कि इतने पैसे कहां खर्च हुए तो उन्होंने नहीं बताया. इसके अलावा भी कई और वजहों से भी चर्चा में रहा विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम, पढ़ें रिपोर्ट

expenditure on tribal festival
expenditure on tribal festival

रांची: विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव ने खूब सूर्खियां बटोरी. आदिवासी साहित्य, जीवन दर्शन, कला-संस्कृति, खान-पान, वेशभूषा से लोग रूबरू हुए. हजारों लोग इस आयोजन का गवाह बने. पुराना जेल रोड स्थित भगवान बिरसा मुंडा मेमोरियल पार्क सह संग्रहालय में आयोजित कार्यक्रम की लोगों ने जमकर तारीफ की.

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हालांकि महोत्सव को सफल बनाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया. दो दिवसीय इवेंट के नाम पर 5.95 करोड़ रु. खर्च किए गये. इवेंट मैनेजमेंट का काम दिल्ली की कंपनी एक्सिस कम्यूनिकेशन को दिया गया था. ईटीवी भारत की टीम ने एक्सिस कम्यूनिकेशन की ओर से मीडिया मैनेजमेंट करने वाले रविंद्र झा के जरिए कंपनी के अधिकारियों से यह जानने की पूरी कोशिश की कि आखिर इतने पैसे कहां खर्च हुए. आश्चर्य की बात है कि इस सवाल के बाद रवींद्र झा ने फोन उठाना ही बंद कर दिया.

अब सवाल उठता है कि आदिवासी महोत्सव के इवेंट के लिए निकाले गये टेंडर में कितनी कंपनियां शामिल हुईं. सबसे कम रेट किस कंपनी ने डाला. कंपनियों का क्या प्रोफाइल था. इन सवालों के जवाब के बाद सबसे बड़ा सवाल यह होगा कि आखिर एक्सिस कम्यूनिकेशन को किस आधार पर इवेंट मैनेजमेंट का टेंडर दिया गया. जाहिर है कि एक्सिस कम्यूनिकेशन का रेट सबसे कम रहा होगा. लेकिन सवाल है कि इस बारे में कंपनी का कोई भी प्रतिनिधि कुछ भी बोलने से क्यों बच रहा है. अव्वल तो ये कि कल्याण आयुक्त का पद भी रिक्त पड़ा है. आपको बता दें कि टेंडर की पूरी प्रक्रिया अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अधीन कल्याण आयुक्त कार्यालय द्वारा किया गयी थी.

किन वजहों से चर्चा में रहा महोत्सव

वजह नंबर- 01: महोत्सव से कई आदिवासी संगठनों ने खुद को अलग रखा. उनकी दलील थी कि मणिपुर में जनजातीयों पर जुल्म और मध्य प्रदेश समेत देश के दूसरे राज्यों में आदिवासियों के साथ हुए अमानवीय व्यवहार के बीच कैसे खुशी मनाई जा सकती है. लिहाजा, कई संगठनों ने आक्रोश मार्च निकाला. हालांकि कई संगठन ऐसे भी थे, जो आयोजन में शामिल हुए.

वजह नंबर- 02: आमतौर पर राजकीय स्तर के कार्यक्रम में गवर्नर को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने की परिपाटी रही है. खास कर पांचवी अनुसूचि में आने वाले राज्य के लिहाज से राज्यपाल की भूमिका और भी ज्यादा खास हो जाती है. लेकिन इस आयोजन में राज्य के राज्यपाल सी.पी.राधाकृष्णन को कोई जगह नहीं दी गई. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सरकार के संचालन में सहयोग के लिए बनी राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन बनाए गये. खुद मुख्यमंत्री ने उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता की. यही नहीं आमंत्रण कार्ड में स्थानीय विधायक और सांसद का भी नाम नहीं दिखा. इसको लेकर भी चर्चा होती रही.

वजह नंबर- 03: उद्घाटन समारोह के वक्त मंच पर मुख्य अतिथि शिबू सोरेन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, एसटी-एसटी, पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री चंपई सोरेन, विधायक जयमंगल सिंह, विधायक बिनोद सिंह, विधायक राजेश कच्छप, मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, डीजीपी अजय कुमार सिंह, सीएम की प्रधान सचिव, सीएम के सचिव और विभागीय सचिव मौजूद थे. लेकिन विपक्ष की ओर से कोई भी नेता नजर नहीं आया. हालांकि जानकारी मिली कि स्थानीय विधायक समेत अन्य को आमंत्रण जरूर भेजा गया था.

वजह नंबर- 04: पिछले साल जनजातीय महोत्सव के समापन समारोह में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे. लेकिन इसबार समापन समारोह के मुख्य अतिथि की भूमिका भी खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ही निभाई. इस दौरान कार्यक्रम में मंत्री चंपई सोरेन, संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम, महिला एवं बाल विकास मंत्री जोबा मांझी, कृषि मंत्री बादल पत्रलेख, मंत्री हफीजुल हसन और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय नजर आए. समापन समारोह में विपक्ष नदारद रहा.

वजह नंबर- 05: पिछले साल जब विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर पहली बार जनजातीय महोत्सव हुआ तो समापन समारोह में खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद मांदर बजाकर झूमते दिखे. दरअसल, 10 अगस्त को मुख्यमंत्री का जन्मदिन भी है, लिहाजा, उनके लिए यह आयोजन और भी खास हो जाता है. लेकिन इस बार समापन समारोह के दिन मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन मंच पर मांदर बजाते नजर आईं.

वजह नंबर- 06: आदिवासी महोत्सव के प्रचार प्रसार पर जमकर फोकस किया गया. पूरी राजधानी बैनर-पोस्टर से पटी रही. राजभवन से बिरसा चौक और कार्यक्रम स्थल तक ज्यादातर होर्डिंग में सिर्फ मुख्यमंत्री नजर आए. चौक-चौराहों पर लगे होर्डिंग में सीएम के साथ गुरुजी की तस्वीर जरूर दिखी. लेकिन अन्य मंत्रियों को कोई जगह नहीं मिली. इसकी भी चर्ची होती रही.

दरअसल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पहल पर साल 2022 से विश्व आदिवासी दिवस को महोत्सव के रूप में सेलिब्रेट करने की शुरूआत हुई थी. पिछले साल जनजातीय महोत्सव-2022 नाम दिया गया था. इस बार आदिवासी महोत्सव-2023 का नाम दिया गया. सावन की रिमझिम फुहार के बीच आम लोगों ने आयोजन का जमकर लुत्फ उठाया. आयोजन की खूब चर्चा भी हो रही है लेकिन सवालों को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता.

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