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झारखंड के लिए अब जल उलगुलान की जरूरत, धरती में दरार से सूख गई किसानों कि किस्मत

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Published : Jan 9, 2023, 8:21 PM IST

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2022 में हुई कम बारिश ने झारखंड को आकाल के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया. कुदरत ने किसानों से मेहनत करने का हक छीन लिया, परिणाम हुआ कि कम बारिश के कारण खेतों में आई दरार के करण अन्नदाता के किस्मत की हरियाली ही सूख गई. मौसम की बेरूखी की मार ने किसानों के सामने उनकों जिंदा रहने के लिए संघर्ष की ऐसी त्रासदी दे दिया जिसमें बरसात के पानी की सूखी धार ने जिंदगी को पानी बचाने के लिए दिन रात की एक जैसी ही कहानी है.

रांच: 9 जनवरी झारखंड की तारीख में उसके हौसले की अमिट कहानी के साथ दर्ज है. भगवान बिरसा मुंडा के उलगुलान की कहानी की एक बड़ी तारीख और आदिवासी मूलवासी के हिम्मत की अमिट दास्तां. 9 जनवरी 2023 को केंद्रीय टीम बिहार के सूखे का जायजा लेने के लिए झारखंड पहुंची है. मूलवासी के नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा देने की जांच होगी. झारखंड कितना सूखा है इसकी रिपोर्ट बनेगी, मुआवजा की राशि तय कर दी जाएगी. सूखे खेत के मुआवजे की राशि से जिंदगी एक बार पटरी पर आ सकती है लेकिन झारखंड के किसानों के खेत का पानी बचा रहे उसमें दरार न आए इसके लिए झारखंड को मजबूत योजना बनानी होगी. झारखंड की धरती में आई दरार को हमेशा के लिए भरना होगा और इसके लिए एक और उलगुलान की जरूरत हैं. झारखंड का "जल उलगुलान" और इसके लिए सभी को खड़ा होना होगा.


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120 दिन से ज्यादा की फसल पर लगी रोक: 2022 की बात करें तो राज्य के पूर्वी सिंहभूम और सिमडेगा को छोड़कर राज्य के 22 जिलों के 226 प्रखंड सूखा ग्रस्त घोषित किए गए हैं. झारखंड में धान मुख्य फसल है और राज्य के 25 लाख हेक्टेयर कुल जमीन में 19 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र धान की फसल की खेती होती है. बारिश कम हुई तो खेतों में धान की फसल लगी ही नहीं. किसानों के इस बात की उम्मीद थी कि बारिश होगी और इसके लिए किसानों का धान का बिचड़ा भी डाला था लेकिन सूखे की स्थिति और कम बारिश को देखते हुए राज्य कृषि निदेशक निशा उरांव ने सभी जिलों के अधिकारियों को 120 दिन से ज्यादा समय लेकर पैदा होने वाले धान के बीजों की बिक्री और फसल लगाने पर रोक लगा दी.



सूख गया सूबा: जुलाई 2022 के अंतिम सप्ताह में सरकार से जारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में सामान्य से 51 फीसदी कम बारिश हुई. जिसकी वजह से राज्य में 10 प्रतिशत से भी कम बुआई हुई, जबकि 65% बिचड़ा किसानों ने लगाया था. 20 अगस्त तक के लिए जारी हुए आंकड़ों के अनुसार पूरे झारखंड के 226 प्रखंड पूरी तरह सूखे की चपेट में आ गए. जिले के अनुसार बात करें तो चतरा में 2 प्रखंड, देवघर में 10, धनबाद में 10, दुमका में 10, गढ़वा में 20, गिरिडीह में 13, गोड्डा में 9, गुमला में 2, हजारीबाग में 13, जामताड़ा में 6, खूंटी में 6, कोडरमा में 5, लातेहार में 7, पाकुड़ में 6, पलामू में 21, रांची में 2, साहिबगंज में 9, पश्चिमी सिंहभूम में 3 प्रखंड पूरी तरह सूखे के चपेट में रहे और यहां की धान की किसानी चौपट हो गई.


मौसम की बेरुखी: सूखे पर नजर रखने वाली संस्थाओं, ईडब्ल्यूएस, गंगा बेसिन और सेंट्रल वाटर बोर्ड के 2022 के जारी आंकड़ों के अनुसार खेत के लिए पानी की बात तो दूर, सूखे के जो हालत रहे इसमें उत्तर प्रदेश के 41 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल के 17 प्रतिशत, उत्तराखंड के 84 प्रतिशत, बिहार के 35 प्रतिशत और झारखंड के 86 प्रतिशत जलाशय सूख गए. महीनों बाद बदले मौसम में बाकी राज्यों में मानसून ने राहत दी लेकिन झारखंड के हिस्से बदहाली ही आई. राहत बस इतना रहा कि राज्य के 22 जिलों के 226 प्रखंडों को सूखा प्रभावित प्रखंड घोषित हैं और राज्य सरकार इन प्रखंडों के हर किसान को 3500 रुपये डीबीटी के माध्यम दे रही है.


मछली पालक क्या करें: राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार राज्य बनने के वक्त गिनती के टन में मछली उत्पादन करने वाले झारखंड ने वर्ष 2020-21 में राज्य में 2.38 लाख टन मछली का उत्पादन किया. 2024-25 तक इसके अलावा 1.5 लाख टन अतिरिक्त मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. यह सरकार की योजना में है. लेकिन बारिश नहीं होने और सूखे जल स्रोत ने मछली पालक किसानों को तीन साल के लिए बेरोजगार कर दिया. 2022 में पानी नहीं होने से मछली का बीज पड़ा नहीं और 2023 के पानी के इंतजार में झारखंड इस उम्मीद से बैठा है कि 24 के लिए पैदावार दे सके लेकिन हालता बदतर है.


अखिल भारतीय बाढ़ सुखाड़ राहत मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामभजन सिंह यादव ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि यह टीम इस साल ही नहीं आ रही है हर साल और साल दर साल इसे आना होगा. राज्य सरकार जब मजबूत मानसिकता के साथ काम ही नहीं करेगी तो यह हालात बने ही रहेंगे. झारखंड में औसतन 1200 से 1400 mm बारिश के पानी में से 70-80% पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है (Save Water). इस पानी को बचाने के लिए कोई ठोस काम किया ही नहीं जा रहा है. उन्होंने कहा कि 25 लाख हेक्टेयर कुल जमीन में से जिस राज्य में 19 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र धान की फसल की खेती होती हो और उस राज्य की आर्थिक संरचना और जीएसडीपी का आधार वही हो उस राज्य की सरकार अगर अपने 70 फीसदी पानी को बर्बाद कर रही है तो उस राज्य के किसान बेचारे ही रहेंगे.


रामभजन सिंह यादव ने कहा कि धान और गेहूं की फसल की खेती करने वाले लोगों को सरकार राहत देने के लिए जांच टीम भेज रही है लेकिन जो लोग पानी के भीतर अपनी फसल लगाते हैं उनके जीवन का क्या होगा? जल जंगल की बात करना, आदिवासी की राजनीति करना और उसके लिए दावे करना बहुत आसान सी बात है, उसके लिए उसके घर में खाने भर का इंतजाम करना और मुफ्त में राशन देने की राजनीति करने से राज्य में कुछ नहीं होगा. भाजपा हो दूसरे दल सत्ता में आने से पहले उनकी जो बात रहती है वह सत्ता में आने के बाद बदल जाती है. झारखंड को बचाना है तो पानी पर बहुत फोकस होकर काम करना होगा.


जल बचाओ समिति के अध्यक्ष बलिकरन दास भंजी ने कहा हम जल ही जीवन है (Water is life) का नारा देते है, यह दीवार पर लिखा जाता है. जल है तो कल है, Save Water हर नेता की जुबान पर है. केन्द्र की योजना हर घर नल का जल पानी देने की राजनीति का हिस्सा बना हुआ है लेकिन खेत में पड़ रही दरार सूख रही किसानों कि किस्मत को कौन देख रहा है. झारखंड में इस साल धान की जितनी कम खेती हुई है उसका आकलन किया जाय तो लगभग 800 करोड़ रुपए का नकद नुकसान झारखंड को हुआ है जो धान की ठीक उपज से किसानों के खाते में आती. जो आंकड़े सरकार ने दिए हैं वह किसी भी राज्य सरकार के लिए रेड अलर्ट है. झारखंड के भगवान बिरसा का नाम लेकर एक और उलगुलान करना होगा जिसे जल उलगुलान का नाम दिया जाए तभी झारखंड का कल सुरक्षित होगा.

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