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जल जीवन मिशन का असर, रांची में पहली बार ग्रामीणों ने आंगन में देखा नल से गिरता जल, बेइंतहा तकलीफ का हुआ अंत, देखें ग्राउंड रिपोर्ट

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Published : Jun 20, 2023, 5:32 PM IST

Water At Doorstep In Remote Villages
Water At Doorstep In Remote Villages

झारखंड में जल जीवन मिशन का असर अब जमीन पर दिखने लगा है. सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी नल से जल की सप्लाई हो रही है. ऐसे ही एक गांव का जायजा लिया ईटीवी भारत की टीम ने.

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रांची: झारखंड में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है. राजधानी के कई इलाकों में बोरिंग फेल हो गये हैं. पानी के लिए त्राहिमाम मचा हुआ है. तमाम छोटी-बड़ी नदियों का पानी सूख चुका है. शहरों में लोग लाइन लगाकर पानी लेने के लिए टैंकर का इंतजार करते हैं. अब कल्पना कीजिए कि ऐसी विकट स्थिति में झारखंड के ग्रामीण इलाकों में पेयजल के लिए लोगों को कितनी तकलीफ उठानी पड़ रही होगी. इसकी पड़ताल करने जब ईटीवी भारत की टीम रांची से करीब 65 किलोमीटर दूर अनगड़ा प्रखंड के सुदूरवर्ती गांवों में पहुंची तो वहां की तस्वीर देखकर लगा कि अगर सरकार और सिस्टम चाह ले तो क्या नहीं हो सकता.

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जल जीवन मिशन योजना की शुरूआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2019 में की थी. लोगों की बातों से लगा कि यह योजना 2024 के चुनाव पर भी असर डाल सकती है. आंगन में पानी पहुंचाने के लिए कोई मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को धन्यवाद दे रहा है तो कोई भगवान को. कोई कह रहा है कि गंगा मइया के दर्शन हो गये.

झारखंड के लिहाज से जल जीवन मिशन योजना क्यों चुनौती भरा है, इसको ग्राउंड पर जाने के बाद समझ में आया. रांची के प्रसिद्ध जोन्हा फॉल से करीब 17 किलोमीटर दूर जंगल और पहाड़ों के बीच बने रास्तों से होते हुए हमारी टीम गुरीडीह पंचायत के सारूगरी गांव के झुमराटोली और तारपबेड़ा टोला में पहुंची. इन टोलों तक पहुंचने के लिए रास्ता नहीं है. इन टोलों की महिलाओं से नल जल योजना के बारे में पूछा गया तो उनके चेहरे पर खुशी साफ नजर आई. महिलाओं ने बताया कि आंगन में नल लगने से पहले तक दूर दराज जाकर डाड़ी और नदी से पानी लाना पड़ता था. गंदे पानी को छानकर पीते थे. इससे बीमारी होती थी. अगर घर में किसी की शादी या कोई फंक्शन होता था तो सबसे बड़ी चिंता पानी को लेकर होती थी.

खतरों का सामना करती थीं महिलाएं: महिलाओं ने बताया कि इस इलाके में अक्सर जंगली हाथी चले आते हैं. उनकी जान को खतरा रहता है. जंगली भालू तो उत्पात मचाते रहते हैं. वैसी स्थिति में डाड़ी से पानी लाने के लिए झुंड बनाकर जाना पड़ता था. जान सांसत में फंसी रहती थी. लेकिन अब आंगन में पानी आ गया है. महिलाओं से पूछा गया कि क्या आपको मालूम है कि आपके घरों तक किसने पानी पहुंचाया है? इस सवाल के जवाब में ज्यादातर महिलाओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम लिया. गांव के पुरुषों ने भी सीएम के प्रति आभार जताया. ग्रामीणों ने कहा कि आपलोग खुद देखिए कि हमलोग किस हाल में रहते हैं. गांव में अगर कोई बीमार हो जाता है तो खाट पर लादकर सड़क तक लाना पड़ता है. बस, दोनों टोलों तक सड़क बन जाता तो बड़ी कृपा होती.

जुमरा टोली में पानी नहीं गंगा मइया पहुंची: इस टोली तक जाने के लिए हमारी टीम ने बाइक का सहारा लिया. पगडंडियों और ऊंची-नीचे पथरीले चट्टानों से होकर किसी तरह जुमरा टोली पहुंचे. वहां सोलर आधारित टंकी नजर आई. पास में ही नल लगा था, जिसका पानी एक बुजुर्ग पी रहे थे. उन्होंने स्थानीय भाषा में कहा कि पहले बड़ी तकलीफ उठाते थे. भगवान के आशीर्वाद से गांव में पानी पहुंचा है. ग्रामीणों की बातों से साफ लग गया है कि यह योजना आगामी चुनाव को जरूर प्रभावित करेगी.

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इस टोला की एक महिला ने बताया कि सपने में भी नहीं सोचे थे कि दरवाजे पर नल से पानी मिलेगा. यह गंगा मइया के आंगन तक पहुंचने जैसा है. उन्होंने कहा कि आपलोग को बाइक से पहुंचने पर इतनी दिक्कत हुई. अब सोचिए कि बोरिंग गाड़ी कैसे आई होगी. क्योंकि उस टोला तक पहुंचने से पहले एक नाला भी था. महिला ने बताया कि जब बोरिंग गाड़ी पहुंची तो पूरे गांव वाले रात भर जागते रहे. लकड़ी काटकर नाले पर रास्ता बनाया. फिर भी बोरिंग गाड़ी नहीं जा पा रही थी तो ट्रैक्टर मंगवाकर खिंचवाया गया. उन्होंने कहा कि बहुत बड़ी चिंता से मुक्ति मिल गई है. नल लगने से पहले सुबह होते ही पानी की फिक्र सताने लगती थी. महिलाओं ने उस डाड़ी को भी दिखाया, जहां से बरसात के समय पानी ढोया जाता था.

क्या कहते हैं विभागीय मंत्री मिथिलेश ठाकुर: झारखंड के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के मंत्री मिथिलेश ठाकुर कहीं व्यस्त थे. उन्होंने इस योजना को लेकर फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि झारखंड की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि गांवों तक नल से जल पहुंचाना बहुत मुश्किल भरा काम है. फिर भी मिशन मोड पर इस काम को किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि फिलहाल लक्ष्य का करीब 40 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. अब गांव स्तर पर फोकस कर काम किया जा रहा है. आने वाले समय में कार्य प्रगति रिपोर्ट में अप्रत्याशित बदलाव नजर आएगा. उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में कई बार डीप बोरिंग के बावजूद पानी नहीं मिल पाता है. इसलिए जगह बदलकर फिर बोरिंग कराना पड़ता है. उन्होंने खुशी जतायी की गांव के लोग इस काम में पूरा सहयोग करते हैं. उन्होंने कहा कि संवेदकों को निर्देशित किया गया है कि वह गांव के लोगों से ही काम कराएं ताकि उन्हें घर बैठे रोजगार भी मिल सके.

राज्य सरकार का प्रोग्रेस रिपोर्ट: राज्य सरकार के डाटा के मुताबिक FHTC यानी फंक्शनल हाउसहोल्ड टैब कनेक्शन योजना के तहत 14 जून 2023 तक कुल 61.20 लाख हाउसहोल्ड के लक्ष्य की तुलना में 22.40 लाख हाउसहोल्ड तक पानी पहुंच चुका है. कुल 29595 गांव में एफएचटीसी के मध्यम से जल उपलब्ध कराने के लक्ष्य को साधते हुए 1974 गांव में 100 प्रतिशत, 2447 गांव में 90 प्रतिशत, 1505 गांव में 80 प्रतिशत और 8490 गांव में शून्य से 50 प्रतिशत योजना का लाभ दिया गया है. इस तरह 37 पंचायत में 100 प्रतिशत योजना का लाभ मिल चुका है हर घर जल योजना के तहत कुल 661 गांव को आच्छादित किया जा चुका है और 156 गांव योजना के तहत सर्टिफाइड हो चुके हैं. स्कूलों और आंगनबाड़ी पर भी फोकस किया जा रहा है. कुल 41408 विद्यालयों में से 34215 विद्यालयों में टैप के माध्यम से जल पहुंच रहा है, जिसका प्रतिशत 82.63 प्रतिशत है. वहीं 38432 आंगनबाड़ी केंद्रों में से 25980 आंगनबाड़ी केंद्रों तक पानी पहुंचने लगा है.

बेशक डाटा बता रहा है कि इस दिशा में काम हो रहा है. लेकिन गति धीमी है. इस सवाल पर विभागीय मंत्री ने कहा कि कोरोना काल में इसपर काम नहीं हो पाया. अब इसको मिशन मोड पर पूरा किया जा रहा है.

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